भोरे विधानसभा सीट: गोपालगंज की सबसे कांटे की लड़ाई, जहां जेडीयू ने सिर्फ 462 वोटों से बचाई थी अपनी सीट

भोरे सीट पर 2020 में जेडीयू और सीपीआई (एमएल) के बीच मुकाबला बेहद कांटे का रहा था. सुनील कुमार ने सिर्फ 462 वोटों से जितेंद्र पासवान को हराकर मुश्किल जीत हासिल की थी.

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  • भोरे विधानसभा सीट गोपालगंज लोकसभा क्षेत्र के तहत आती है और एनडीए का मुकाबला वाम दल से होता है
  • 2020 के चुनाव में जेडीयू के सुनील कुमार ने सीपीआई (एमएल) के जितेंद्र पासवान को मामूली अंतर से हराया था
  • भोरे क्षेत्र में दलित, पिछड़ा, अति पिछड़ा और मुस्लिम समुदाय के वोटर्स अधिक हैं
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गोपालगंज:

गोपालगंज जिले की भोरे विधानसभा सीट बिहार की राजनीति में हमेशा रोमांचक मुकाबले के लिए जानी जाती है. यह सीट गोपालगंज लोकसभा क्षेत्र के तहत आती है और राजनीतिक रूप से एनडीए और वाम दलों के बीच संघर्ष का केंद्र रही है. ऐतिहासिक रूप से देखा जाए तो 1977 में यहां जनता पार्टी के जमुना राम ने जीत दर्ज की थी. तब से लेकर अब तक इस सीट पर कई बार समीकरण बदले, लेकिन 2020 का चुनाव सबसे करीबी मुकाबलों में से एक रहा.

2020 में जेडीयू के सुनील कुमार ने यहां बेहद मुश्किल जीत हासिल की थी. उन्होंने सीपीआई (एमएल) लिबरेशन के जितेंद्र पासवान को सिर्फ 462 वोटों के बेहद मामूली अंतर से हराया. सुनील कुमार को कुल 74,067 वोट मिले, जबकि जितेंद्र पासवान को 73,605 वोट हासिल हुए. यह नतीजा इस बात का सबूत था कि भोरे में मतदाता किसी एक दल के साथ स्थायी रूप से नहीं, बल्कि मुद्दों और उम्मीदवार की लोकप्रियता के आधार पर वोट करते हैं.

भोरे विधानसभा क्षेत्र की सामाजिक बनावट भी इसकी राजनीति को दिलचस्प बनाती है. यहां दलित, पिछड़ा, अति पिछड़ा और मुस्लिम समुदाय की मजबूत उपस्थिति है. सीपीआई (एमएल) की जमीनी पकड़ और संगठन क्षमता ने इस सीट को कई बार करीबी मुकाबले का गवाह बनाया है. वहीं, जेडीयू के लिए यह सीट राजनीतिक प्रतिष्ठा का प्रतीक है क्योंकि यह नीतीश कुमार के विकास मॉडल और सामाजिक संतुलन की राजनीति की परीक्षा भी मानी जाती है.

राजनीतिक जानकारों का मानना है कि 2025 का विधानसभा चुनाव भोरे में फिर से हाई-वोल्टेज मुकाबला लेकर आएगा. महागठबंधन वामपंथी एकता के सहारे वापसी की कोशिश करेगा, जबकि एनडीए अपने विकास और सुशासन के एजेंडे के साथ मैदान में उतरेगा.
 

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