जातिगत जनगणना पर बिहार के नेताओं की PM के साथ अहम बैठक से ठीक पहले BJP के सुर बदले

सुशील मोदी के ट्वीट का सीधा अर्थ ये लगाया जा रहा है कि पार्टी में जो ऊहापोह की स्थिति हैं उससे निकलकर पार्टी इस मुद्दे पर नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव की बढ़ती आक्रामकता के मद्देनज़र अब पीछे नहीं रहना चाहती.

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बीजेपी ने जातिगत जनगणना का पुरजोर समर्थन किया (फाइल फोटो)
पटना:

जातिगत जनगणना (Caste Census) के मुद्दे पर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) के नेतृत्व में राज्य के दस दलों के नेता, जिसमें विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) और भाजपा के मंत्री जनक राम शामिल हैं, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) से सोमवार को मिलेंगे. इस मुलाक़ात के ठीक पहले रविवार शाम भाजपा ने साफ़ किया कि वो जातिगत जनगणना के मुद्दे पर सैद्धांतिक रूप से समर्थन में हैं. हालांकि, इसे कराने में अनेक व्यावहारिक और तकनीकी कठिनाइयां हैं. बिहार भाजपा के वरिष्ठ नेता और राज्यसभा सांसद सुशील कुमार मोदी ने रविवार को एक साथ इस मुद्दे पर कई ट्वीट कर सफ़ाई दी.  

सुशील मोदी ने याद दिलाया कि इस मुद्दे पर बिहार विधानसभा हो या बिहार विधान परिषद भाजपा ने अपना समर्थन दिया. इसके अलावा मोदी ने कहा कि लोकसभा में भी 2011 में स्वर्गीय गोपीनाथ मंडे ने पार्टी का स्टैंड साफ़ कर दिया था. 

सुशील मोदी ने अपने ट्वीट में लिखा, "भाजपा कभी जातीय जनगणना के विरोध में नहीं रही, इसीलिए हम इस मुद्दे पर विधानसभा और विधान परिषद में पारित प्रस्ताव का हिस्सा रहे हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिलने वाले बिहार के प्रतिनिधिमण्डल में भी भाजपा शामिल है. साल 2011 में भाजपा के गोपीनाथ मुंडे ने जातीय जनगणना के पक्ष में संसद में पार्टी का पक्ष रखा था. उस समय केंद्र सरकार के निर्देश पर ग्रामीण विकास और शहरी विकास मंत्रालयों ने जब सामाजिक, आर्थिक, जातीय सर्वेक्षण कराया, तब उसमें करोड़ों त्रुटियां पायी गईं. जातियों की संख्या लाखों में पहुंच गई. भारी गड़बड़ियों के कारण उसकी रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं की गई. वह सेंसस या जनगणना का हिस्सा नहीं था." 

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उन्होंने कहा कि ब्रिटिश राज में 1931 की अंतिम बार जनगणना के समय बिहार, झारखंड और ओडिशा एक थे. उस समय के बिहार की लगभग 1 करोड़ की आबादी में मात्र 22 जातियों की ही जनगणना की गई थी. अब 90 साल बाद आर्थिक, सामाजिक, भौगोलिक और राजनीतिक परिस्तिथियों में बड़ा फर्क आ चुका है. जातीय जनगणना कराने में अनेक तकनीकि और व्यवहारिक कठिनाइयां हैं, फिर भी भाजपा सैद्धांतिक रूप से इसके समर्थन में है. 

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सुशील मोदी के इन ट्वीट का सीधा अर्थ ये लगाया जा रहा है कि पार्टी में जो ऊहापोह की स्थिति हैं उससे निकलकर पार्टी इस मुद्दे पर नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव की बढ़ती आक्रामकता के मद्देनज़र अब पीछे नहीं रहना चाहती. उसे मालूम हैं कि ये आने वाले समय में बिहार में एक बड़ा मुद्दा रहेगा और भाजपा अपनी छवि ओबीसी विरोधी नहीं होने देना चाहती. पार्टी के कमोबेश हर ओबीसी नेता की चाहत है कि जनगणना होनी चाहिए और पार्टी को खुल कर इसके समर्थन में आना चाहिए. हालांकि, सुशील मोदी ने अपने ट्वीट में इस बात के संकेत दिए कि आख़िर केंद्र सरकार की क्या मजबूरियां हो सकती हैं जिसके आधार पर वो इस सम्बंध में आवश्यक आदेश नहीं दे रही है.

सुशील मोदी के स्टैंड के बाद पार्टी नेताओं को उम्मीद हैं कि फ़िलहाल इस मुद्दे पर क्रेडिट मिले या ना लेकिन उसको नुक़सान नहीं उठाना पड़ेगा. हालांकि पार्टी ने इस मुद्दे पर जब दिल्ली में बैठक में भाग लेने के लिए अपने किसी ओबीसी मंत्री की जगह जनक राम- जो पहली बार मंत्री बने हैं- उनको भेजा है, जिसके चलते पार्टी में इस मुद्दे पर असमंजस की निशानी माना जा रहा है.

वीडियो: जातिगत जनगणना पर पीएम से मिलेंगे बिहार के नेता, नीतीश कुमार ने दोहराई अपनी बात

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