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Shaniwar ke Upay: शनिदेव को करना है प्रसन्न तो शनिवार के दिन कर लें ये सरल सा काम, कष्ट होंगे दूर, साढ़ेसाती-ढैय्या का बुरा प्रभाव होगा कम

Shaniwar Upay: शनि व्यक्ति को उसके अच्छे या बुरे कर्मों के अनुसार फल देते हैं और न्याय करते हैं जिस वजह से उन्हें कर्मफल दाता भी कहा जाता है. आइए जानते हैं आप शनिदेव को प्रसन्न कैसे कर सकते हैं.

Written by Updated : December 20, 2025 7:47 AM IST
Shaniwar ke Upay: शनिदेव को करना है प्रसन्न तो शनिवार के दिन कर लें ये सरल सा काम, कष्ट होंगे दूर, साढ़ेसाती-ढैय्या का बुरा प्रभाव होगा कम
शनिदेव को कैसे प्रसन्न करें?
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Shaniwar ke Upay: हिन्दू धर्म में शनिवार का दिन शनिदेव को समर्पित होता है. इस दिन शनिदेव की पूजा-अर्चना करने से साढे़साती और ढैय्या से छुटकारा मिलता है साथ ही जीवन में सुख-समृद्धि भी बनी रहती है. आपको बता दें कि शनि व्यक्ति को उसके अच्छे या बुरे कर्मों के अनुसार फल देते हैं और न्याय करते हैं जिस वजह से उन्हें कर्मफल दाता भी कहा जाता है. आइए जानते हैं आप शनिदेव को प्रसन्न कैसे कर सकते हैं.

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शनिवार को कैसे करें शनिदेव को प्रसन्न? (shanidev ko prasann kaise karen)

शनिवार का दिन न्यायदेवता को प्रसन्न करने के लिए सर्वश्रेष्ठ माना जाता है. मान्यता है कि जो भी व्यक्ति इस दिन श्रद्धाभाव से शनिदेव की चालीसा का पाठ करता है उसके जीवन से रोग-कष्ट तो दूर होते ही हैं साथ में साढ़ेसाती-ढैय्या का बुरा प्रभाव भी कम होता है. इसके अलावा कारोबार में आ रही समस्याओं से छुटकारा पाने के लिए भी ये सरल सा उपाय बहुत ज्यादा लाभकारी माना जाता है. 

यहां पढ़ें शनि चालीसा (Shani Chalisa Lyrics in Hindi)

॥दोहा॥

जय गणेश गिरिजा सुवन, मंगल करण कृपाल।
दीनन के दुख दूर करि, कीजै नाथ निहाल॥
जय जय श्री शनिदेव प्रभु, सुनहु विनय महाराज।
करहु कृपा हे रवि तनय, राखहु जन की लाज''॥

चौपाई

जयति जयति शनिदेव दयाला। करत सदा भक्तन प्रतिपाला॥
चारि भुजा, तनु श्याम विराजै। माथे रतन मुकुट छबि छाजै॥

परम विशाल मनोहर भाला। टेढ़ी दृष्टि भृकुटि विकराला॥
कुण्डल श्रवण चमाचम चमके। हिय माल मुक्तन मणि दमके॥

कर में गदा त्रिशूल कुठारा। पल बिच करैं अरिहिं संहारा॥
पिंगल, कृष्णो, छाया नन्दन। यम, कोणस्थ, रौद्र, दुखभंजन॥

सौरी, मन्द, शनी, दश नामा। भानु पुत्र पूजहिं सब कामा॥
जा पर प्रभु प्रसन्न ह्वैं जाहीं। रंकहुँ राव करैं क्षण माहीं॥

पर्वतहू तृण होई निहारत। तृणहू को पर्वत करि डारत॥
राज मिलत बन रामहिं दीन्हयो। कैकेइहुँ की मति हरि लीन्हयो॥

बनहूँ में मृग कपट दिखाई। मातु जानकी गई चुराई॥
लखनहिं शक्ति विकल करिडारा। मचिगा दल में हाहाकारा॥

रावण की गति-मति बौराई। रामचन्द्र सों बैर बढ़ाई॥
दियो कीट करि कंचन लंका। बजि बजरंग बीर की डंका॥

नृप विक्रम पर तुहि पगु धारा। चित्र मयूर निगलि गै हारा॥
हार नौलखा लाग्यो चोरी। हाथ पैर डरवायो तोरी॥

भारी दशा निकृष्ट दिखायो। तेलिहिं घर कोल्हू चलवायो॥
विनय राग दीपक महं कीन्हयों। तब प्रसन्न प्रभु ह्वै सुख दीन्हयों॥

हरिश्चन्द्र नृप नारि बिकानी। आपहुं भरे डोम घर पानी॥
तैसे नल पर दशा सिरानी। भूंजी-मीन कूद गई पानी॥

श्री शंकरहिं गह्यो जब जाई। पारवती को सती कराई॥
तनिक विलोकत ही करि रीसा। नभ उड़ि गयो गौरिसुत सीसा॥

पाण्डव पर भै दशा तुम्हारी। बची द्रौपदी होति उघारी॥
कौरव के भी गति मति मारयो। युद्ध महाभारत करि डारयो॥

रवि कहँ मुख महँ धरि तत्काला। लेकर कूदि परयो पाताला॥
शेष देव-लखि विनती लाई। रवि को मुख ते दियो छुड़ाई॥

वाहन प्रभु के सात सुजाना। जग दिग्गज गर्दभ मृग स्वाना॥
जम्बुक सिंह आदि नख धारी। सो फल ज्योतिष कहत पुकारी॥

गज वाहन लक्ष्मी गृह आवैं। हय ते सुख सम्पति उपजावैं॥
गर्दभ हानि करै बहु काजा। सिंह सिद्धकर राज समाजा॥

जम्बुक बुद्धि नष्ट कर डारै। मृग दे कष्ट प्राण संहारै॥
जब आवहिं प्रभु स्वान सवारी। चोरी आदि होय डर भारी॥

तैसहि चारि चरण यह नामा। स्वर्ण लौह चाँदी अरु तामा॥
लौह चरण पर जब प्रभु आवैं। धन जन सम्पत्ति नष्ट करावैं॥

समता ताम्र रजत शुभकारी। स्वर्ण सर्व सर्व सुख मंगल भारी॥
जो यह शनि चरित्र नित गावै। कबहुं न दशा निकृष्ट सतावै॥

अद्भुत नाथ दिखावैं लीला। करैं शत्रु के नशि बलि ढीला॥
जो पण्डित सुयोग्य बुलवाई। विधिवत शनि ग्रह शांति कराई॥

पीपल जल शनि दिवस चढ़ावत। दीप दान दै बहु सुख पावत॥
कहत राम सुन्दर प्रभु दासा। शनि सुमिरत सुख होत प्रकाशा''॥

दोहा

पाठ शनिश्चर देव को, की हों 'भक्त' तैयार।
करत पाठ चालीस दिन, हो भवसागर पार॥

Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.