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क्या हाथों में अंगूठियां पहनने से भाग्य बदलता है? जानिए Premanand Maharaj के विचार

प्रेमानंद जी महाराज का मानना है कि अंगूठियां या धातु जीवन का भाग्य नहीं बदलतीं. साथ ही दुख या कष्ट किसी रत्न या अंगूठी से दूर नहीं होते, क्योंकि प्रारब्ध को कोई धातु नहीं काट सकता.

Written by Updated : December 29, 2025 4:21 PM IST
क्या हाथों में अंगूठियां पहनने से भाग्य बदलता है? जानिए Premanand Maharaj के विचार
प्रेमानंद जी महाराज
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Premanand Maharaj Ji: जीवन में सुख-दुख और भाग्य को लेकर लोग कई तरह के उपाय अपनाते हैं. उनमें से एक है अलग-अलग धातुओं और रत्नों की अंगूठियां पहनना. आम धारणा है कि ग्रह नक्षत्रों के प्रभाव से मुक्ति पाने या भाग्य सुधारने के लिए ऐसी अंगूठियां मददगार होती हैं. लेकिन इस मान्यता पर आध्यात्मिक विचारक प्रेमानंदजी महाराज (Premanandji Maharaj Ke Pravachan) ने एक अलग दृष्टिकोण रखते हुए कहा है कि जीवन में जो कुछ भी होता है, वो केवल कर्मों और प्रारब्ध के कारण होता है न कि किसी धातु या अंगूठी की शक्ति से.

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भाग्य बदलता है कर्म से, न कि अंगूठी से 

प्रेमानंदजी महाराज के अनुसार, यदि भाग्य केवल अंगूठी पहनने से बदलता, तो अंगूठियां बनाने वाला व्यक्ति ही सबसे ज्यादा सुखी होना चाहिए क्योंकि उसके पास तो सैकड़ों अंगूठियां होती हैं. महाराज जी कहते हैं कि अंगूठी ऊपर उंगली में पहन ली जाती है. लेकिन जीवन में परिवर्तन भीतर के कर्मों और विचारों से आता है. उन्होंने एक प्रसंग का जिक्र करते हुए कहा कि किसी व्यक्ति ने उन्हें बताया कि शनि की साढ़ेसाती से बचने के लिए उसे किसी ने घोड़े की नाल की अंगूठी पहनाने की सलाह दी. उन्होंने सहज हास्य में जवाब दिया कि घोड़े पर ही साढ़ेसाती चढ़ी रहती है, वो तो दिन-भर दौड़ता-भागता है, फिर भी उसके कष्ट नहीं उतरते, फिर उसकी नाल से दूसरे का भला कैसे हो सकता है.

कोई भी धातु प्रारब्ध खत्म नहीं कर सकती

महाराज जी का स्पष्ट मत है कि किसी भी धातु, रत्न या अंगूठी में प्रारब्ध को नष्ट करने की शक्ति नहीं होती. जीवन में जो लिखा है, उसे भोगना ही पड़ता है. उनके शब्दों में, 'किसी भी प्रकार की अंगूठी से दुख नष्ट हो जाए, ऐसा संभव नहीं है. प्रारब्ध को काटने की शक्ति केवल परमात्मा के हाथ में है.'

ईश्वर का नाम, अच्छे कर्म ही है सच्चा उपाय

प्रेमानंदजी महाराज लोगों से बाहरी उपायों, यंत्रों और आडंबरों से दूरी बनाने की बात करते हुए कहते हैं, 'एक ही खुला मार्ग है. भगवान की शरण में जाओ, नाम जप करो, अच्छे कर्म करो. किसी से आशीर्वाद मांगने या विशेष यंत्र बनवाने की जरूरत नहीं.' उनका मानना है कि यदि अंगूठी पहननी ही है, तो उसे केवल सौंदर्य और शोभा के लिए पहनें, समाधान के भरोसे पर नहीं.

आस्था के साथ विवेक भी जरूरी 

महाराज जी के विचार धार्मिक आस्था के साथ एक संतुलित संदेश देते हैं. भाग्य बदलने का असली रास्ता कर्म, सद्भाव, भक्ति और आत्मचिंतन से होकर गुजरता है.

Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.