जम्मू के लोकसंगीत को ख़ूबसूरत आवाज़ में पूरे देश के सामने पेश किया है संगीतकार Rohil Bhatia ने

जम्मू के हिमालय पर्वतों के बीच से बहती तवी नदी अपने साथ सालों से स्थानीय संस्कृति, बोली, भाषा और संगीत को अपने साथ लिए चलती है. जम्मू कश्मीर की वादियों में गूंजती हुए संगीत बाहरी दुनिया से आज भी छुपे हुए हैं. 

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जम्मू के हिमालय पर्वतों के बीच से बहती तवी नदी अपने साथ सालों से स्थानीय संस्कृति, बोली, भाषा और संगीत को अपने साथ लिए चलती है. जम्मू कश्मीर की वादियों में गूंजती हुए संगीत बाहरी दुनिया से आज भी छुपे हुए हैं. संगीतकार रोहिल भटिआ इन्ही खोई हुई सुरो को देश के सामने लाने के प्रयास कर रहे हैं. अपने नए संयोजन "द लॉस्ट साउंड्स ऑफ़ तवी" के द्वारा रोहिल जम्मू की डोगरी भाषा को एक बड़े परदे पर ला रहे हैं.  इस संयोजन के अंतर्गत चार लोकसंगीत का मिलाप किया गया है. पुराने लोक संगीत को एक नया रूप देते हुए, रोहिल भटिआ ने दो गानों को अपने यूट्यूब चैनल पर रिलीज़ किया है.

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इस एल्बम का पहले गाना "अपनी बोली बोल" डोगरी और जम्मू की अनेक क्षेत्रीय भाषाओँ  को प्रमुखता से दिखता है. रोहिल भटिआ ने ये प्रस्तुति सेल्जो जॉन,  राजकुमार बहरूपिया, प्रिय दत्ता और राहत काज़मी के संग की है.  एल्बम का दूसरा गाना "तवी पानी" क्षेत्र की मशहूर और महत्वपूर्ण नदी को सम्बोधित करता है. गूंज की आवाज़ के साथ बहती तवी नदी पर आधारित गान की प्रस्तुति रोहिल भटिआ और सेल्जो जॉन ने सुभाव ब्रह्माणु, अरविन्द ब्रह्माणु, और यश ब्रह्माणु के साथ किया है. श्रृंखला में तीसरे गाने  'पल भर' के लिए रोहिल ने  रिप्पलदृफ्त का  सहयोग लिया है. यह भी लोकसंगीत को एक इलेक्टॉनिक फ्यूज़न के रूप पेश करता है.

अपनी संयोजन के बारे में बात करते हुए रोहिल ने अपनी प्रेरणा के बारे में बात की. उन्होंने कहा, "मुझे ऐसा लगता है कि शिवालिक के संगीत इस विश्व की  छुपे रत्न हैं। इनमे एक गहरायी है जो क्षेत्र के भूगोल, भाषा और भाव से मिलती है. बहुत से लोग आज भी डोगरी भाषा के संगीत और इतिहास के  बारे में नहीं जानते है. मेरी उम्मीद और अपेक्षा है मेरे इस परियोजना से डोगरी भाषा और लोक सनगीत को वही सम्मान और मान्यता मिले जो आज बाकी भाषा को मिलती है. 

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