मर्सिडीज-बेंज को कैसे मिला उसका नाम? CEO ने खुद बताया दिलचस्प किस्सा

एक वायरल सोशल मीडिया क्लिप ने इस बात पर प्रकाश डाला कि प्रसिद्ध कार ब्रांड मर्सिडीज-बेंज (Mercedes Benz) को इसका नाम कैसे मिला.

Advertisement
Read Time: 3 mins

किसी भी उत्पाद का ब्रांड नाम एक महत्वपूर्ण और व्यापक रूप से मान्यता प्राप्त पहलू है, क्योंकि किसी भी उत्पाद की पहचान उसके ब्रांड नेम से ही होती है और कई प्रतिष्ठित ब्रांडों के पीछे दिलचस्प कहानियां हैं. हाल ही में, एक वायरल सोशल मीडिया क्लिप ने इस बात पर प्रकाश डाला कि प्रसिद्ध कार ब्रांड मर्सिडीज-बेंज (Mercedes Benz) को इसका नाम कैसे मिला.

अमेरिकी वकील और व्यवसायी डेविड रूबेनस्टीन (David Rubenstein) से बात करते हुए, मर्सिडीज-बेंज के सीईओ स्टेन ओला कलेनियस (Mercedes-Benz CEO Sten Ola Kallenius) ने बताया कि प्रसिद्ध ब्रांड को इसका नाम कैसे मिला. उन्होंने कहा कि कार कंपनी का नाम शुरू में डेमलर (Daimler) था जब 1886 में इसकी स्थापना गोटलिब डेमलर ने की थी. उस समय डेमलर के चीफ इंजीनियर विल्हेम मेबैक (Wilhelm Maybach)थे.

15 साल बाद, ऑस्ट्रियाई उद्योगपति एमिल जेलिनेक (Austrian industrialist Emil Jellinek)ने रेसिंग उद्देश्यों के लिए एक इंजन डिजाइन करने के लिए डेमलर और मेबैक को नियुक्त किया. जेलिनेक फ्रांस के नीस में एक दौड़ में भाग लेना चाहते थे और दौड़ का विजेता बनना चाहते थे.

डेमलर और मेबैक ने वास्तव में जेलिनेक की इच्छा पूरी की; उन्होंने उसे एक शक्तिशाली इंजन वाला वाहन दिया. जेलिनेक दौड़ में विजयी हुए और उन्होंने एक शर्त रखी: कार का नाम उनकी बेटी 'मर्सिडीज' के नाम पर रखा जाएगा.

देखें Video:

इस प्रकार, डेमलर को नाम पसंद आया और उसने कार को 'मर्सिडीज' नाम देने का फैसला किया, हालांकि इसने अपनी कंपनी का मूल नाम बरकरार रखा. कलेनियस के अनुसार, इस तरह के नाम को चुनने का कारण स्वयं डेमलर द्वारा इसे पसंद किया जाना था, और यह विश्व स्तर पर लोकप्रिय ब्रांड, मर्सिडीज-बेंज का हिस्सा बन गया.

Advertisement
एक ब्रांड नाम के रूप में 'मर्सिडीज'

मर्सिडीज-बेंज की वेबसाइट के अनुसार, 23 जून, 1902 को 'मर्सिडीज' को एक ब्रांड नाम के रूप में पंजीकृत किया गया था, और 26 सितंबर को कानूनी रूप से संरक्षित किया गया था.

जून 1903 में एमिल जेलिनेक ने भविष्य में खुद को जेलिनेक-मर्सिडीज कहने की अनुमति प्राप्त की. सफल व्यवसायी ने उस समय कहा, 'यह शायद पहली बार है जब किसी पिता ने अपनी बेटी का नाम रखा है.'

Advertisement

1907 में जेलिनेक को ऑस्ट्रो-हंगेरियन कॉन्सल जनरल नियुक्त किया गया, जो कुछ ही समय बाद मैक्सिकन कॉन्सल बन गए. 1909 में जेलिनेक ऑटोमोटिव व्यवसाय से हट गए और मोनाको में ऑस्ट्रो-हंगेरियन वाणिज्य दूतावास के प्रमुख के रूप में अपने कर्तव्यों के प्रति समर्पित हो गए. 21 जनवरी, 1918 को अपनी मृत्यु तक एमिल जेलिनेक ऑटोमोटिव इंजीनियरिंग के इच्छुक पर्यवेक्षक बने रहे.

ये Video भी देखें:

Featured Video Of The Day
आखिर कहां से आया Tumbbad का हस्तर, जानें कैसे आम से खास बनी छोटे बजट की बड़ी फिल्म?
Topics mentioned in this article