कहते हैं डॉक्टर भगवान का दूसरा रूप होते हैं. लेकिन डॉक्टर की मदद लेना सबके बस की बात नहीं होती. उसकी वजह होती है अस्पतालों की भारी भरकम फीस और इलाज का इतना खर्चा कि आम आदमी उसे आसानी से वहन नहीं कर पाता. ऐसे समय में कुछ लोग मसीहा बनकर लोगों को जीवन में आते हैं. और, लोगों को जीवन दान देने में मदद करते हैं. ऐसे ही लोगों में से एक हैं बिहार की शाम्भवी शर्मा. जिन्होंने अपनी नृत्य कला के जरिए वो कर दिखाया है. जिसके बारे में सोच पाना भी सबके बस की बात नहीं होती. शाम्भवी की कला बहुत से लोगों के लिए नई जिंदगी की वजह बन रही है.
'नृत्यमृत' की पहल
बेतिया की रहने वाली शाम्भवी शर्मा ने कुचिपुड़ी नृत्य को एक नई पहचान दी है. उनके लिए यह सिर्फ मंच पर किया जाने वाला नृत्य नहीं, बल्कि लोगों के दिल और दिमाग को सुकून देने का एक तरीका है. पद्मश्री गुरु राजा राधा रेड्डी से नौ साल तक गहन प्रशिक्षण लेने के बाद उन्होंने अपनी पहल ‘नृत्यमृत' शुरू की. इसका मकसद है, शास्त्रीय नृत्य के जरिए लोगों के भावनात्मक और मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाना. शाम्भवी का मानना है कि नृत्य केवल शरीर की हरकत नहीं, बल्कि भावनाओं और आत्मा की भाषा है. इसी सोच के साथ वह बच्चों, रोगियों और जरूरतमंद लोगों के बीच जाती हैं और उन्हें नृत्य के जरिए खुद से जुड़ना सिखाती हैं. जिसकी वजह से लोग इमोशनल और मेंटल पीस का अनुभव करते हैं.
डांस मन को सुकून देता है
शाम्भवी का कहना है कि ये नृत्य उन्हें खुशी देता है. जब भी वह निराश महसूस करती हैं ऐसे में कुचिपुड़ी डांस उनके मन को सुकून देता है. उन्होंने बताया कि इस डांस के लिए उन्हें उनके पिता ने प्रेरित किया था और आज ये डांस उनके जीवन का सबसे जरूरी हिस्सा बन चुका है. शाम्भवी अपने भविष्य में पढ़ाई के साथ-साथ अपने इस डांस को भी जारी रखना चाहती हैं और इसके जरिए वो लोगों को खुशी देना चाहती हैं. शाम्भवी इन दिनों दिल्ली में रहकर अपनी पढ़ाई भी कर रही हैं और साथ ही अपनी पहल 'नृत्यमृत' के जरिए लोगों को मानसिक और शारीरिक रूप से स्वस्थ रहने में मदद भी कर रही है. इसके अलावा शाम्भवी का सपना है कि वो भी अपने माता-पिता की तरह प्रशासनिक सेवा में जाएं.
बच्चों को सिखाया डांस
हाल ही में, दिल्ली की एक बस्ती में उन्होंने बिहार की सांस्कृतिक छाप लिए 13 वंचित बच्चों के साथ खास सत्र किया. इस दौरान उन्होंने कुचिपुड़ी की शुरुआती मुद्राएं— ‘समभंग' और ‘त्रिभंग' सिखाईं. इन भावमुद्राओं ने बच्चों के चेहरे पर मुस्कान ला दी और उनके अंदर आत्मविश्वास का संचार किया. शाम्भवी के हर कदम में वर्षों की मेहनत झलकती है. राजगीर में हुए G20 सम्मेलन में उनका प्रदर्शन इसकी गवाही देता है. उनका मानना है कि जब नृत्य में परंपरा और संवेदना का मेल होता है, तो यह सिर्फ एक कला नहीं, बल्कि जीवन को सकारात्मक दिशा देने वाला साधन बन जाता है. आने वाले दिनों में शाम्भवी दिल्ली में होने वाले एक कार्यक्रम में परफॉर्म करने वाली हैं. बिहार से जुड़ी अपनी जड़ों और गुरु से मिले आशीर्वाद के साथ शाम्भवी आज देशभर में यह संदेश फैला रही हैं कि नृत्य सिर्फ देखने की चीज नहीं, बल्कि जीने और महसूस करने की एक खूबसूरत प्रक्रिया है.
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