150 साल से चल रहा वैज्ञानिकों का रहस्यमयी प्रयोग, रात में जमीन से निकाली जाती हैं बोतलें, 2100 में होगा खत्म

1879 में शुरू हुआ एक ऐसा ही अनोखा प्रयोग आज भी जारी है, जिसमें जमीन के नीचे दबी बोतलों में रखे गए बीजों को हर 20 साल में निकाला जाता है. यह प्रयोग न सिर्फ विज्ञान का धैर्य दिखाता है, बल्कि भविष्य की खेती और दुनिया के खाद्य संकट से भी जुड़ा है.

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150 साल पुराना रहस्यमयी साइंस एक्सपेरिमेंट आज भी क्यों है जारी...

Oldest Science Experiment: क्या आपने कभी सोचा है कि कोई वैज्ञानिक प्रयोग डेढ़ सौ साल तक चल सकता है? 1879 में शुरू हुआ एक ऐसा ही अनोखा प्रयोग आज भी जारी है, जिसमें जमीन के नीचे दबी बोतलों में रखे गए बीजों को हर 20 साल में निकाला जाता है. यह प्रयोग न सिर्फ विज्ञान का धैर्य दिखाता है, बल्कि भविष्य की खेती और दुनिया के खाद्य संकट से भी जुड़ा है.

इस प्रयोग की शुरुआत कैसे हुई?

1879 में वनस्पति वैज्ञानिक जेम्स बील ने एक सवाल का जवाब ढूंढने के लिए यह प्रयोग शुरू किया, आखिर अलग-अलग किस्म के बीज मिट्टी में कितने साल तक जिंदा रह सकते हैं? इस सवाल का जवाब कृषि, फूड सिक्योरिटी और जैव विविधता को समझने के लिए बेहद अहम था. जेम्स बील ने 20 कांच की बोतलों में 21 अलग-अलग पौधों की प्रजातियों के बीज भरे. हर बोतल में करीब 1,000 से ज्यादा बीज थे, जिन्हें रेत के साथ मिलाया गया था. इन बोतलों को इस तरह जमीन में दबाया गया कि मिट्टी और नमी अंदर जा सके. लेकिन पानी भर न पाए, बीज जिंदा रहें, पर अंकुरित न हों. योजना थी कि हर 5 साल में एक बोतल निकाली जाएगी.

समय के साथ बदला प्रयोग का नियम

कुछ साल तक खुद जेम्स बील ने यह प्रयोग संभाला. 1910 में रिटायरमेंट के बाद यह जिम्मेदारी दूसरे वैज्ञानिकों को सौंप दी गई. इसके बाद पहले 5 साल की जगह 10 साल. फिर 20 साल में एक बोतल निकालने का फैसला किया गया. आज यह प्रयोग दुनिया के सबसे लंबे समय तक चलने वाले सक्रिय वैज्ञानिक प्रयोगों में से एक बन चुका है. यह प्रयोग अब मिशिगन स्टेट यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों के पास है. आखिरी बार 2021 में एक बोतल निकाली गई थी, जिसमें कोविड महामारी के कारण एक साल की देरी हुई. बीज निकालने का काम रात के अंधेरे में किया गया, ताकि सूरज की रोशनी से प्रयोग पर कोई असर न पड़े.

कौन से बीज सबसे ज्यादा मजबूत?

निकाले गए बीजों को नई मिट्टी में लगाया जाता है और देखा जाता है कि वे अंकुरित होते हैं या नहीं. वैज्ञानिकों के मुताबिक, खरपतवार (वीड्स) के बीज सबसे ज्यादा टिकाऊ साबित हुए. कुछ बीज बेहद नाजुक निकले. जो बीज नहीं उगते, उन्हें मरा हुआ मानकर फेंका नहीं जाता. बीजों को ‘जिंदा' करने की कोशिश . वैज्ञानिक बीजों को दोबारा सक्रिय करने के लिए अलग-अलग तकनीकें अपनाते हैं, जैसे- कड़ाके की ठंड का झटका देकर सर्दी का एहसास कराना. आग के धुएं जैसी परिस्थितियां बनाना. नए एक्सपेरिमेंटल ट्रीटमेंट. कई बार बीज सही हालात मिलने पर सालों बाद भी अंकुरित हो जाते हैं.

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आज भी क्यों जरूरी है यह प्रयोग?

करीब 150 साल बाद भी यह प्रयोग बेहद अहम है. वैज्ञानिक मानते हैं कि बीजों की उम्र और मजबूती को समझना भविष्य की खेती के लिए जरूरी है. रिसर्च के मुताबिक, बीजों की लंबी उम्र के पीछे छिपे जीन को समझकर. बदलते मौसम के हिसाब से मजबूत फसलें तैयार की जा सकती हैं. ग्लोबल फूड क्राइसिस से बचाव संभव है . सीड बैंक को और प्रभावी बनाया जा सकता है. 

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बीज ही हैं भविष्य की कुंजी

अगर भविष्य में तापमान बढ़ता है और मौसम ज्यादा अनिश्चित होता है, तो दुनिया की खाद्य सुरक्षा इस बात पर निर्भर करेगी कि हमारे बीज कितने मजबूत हैं. जेम्स बील का यह प्रयोग आने वाली पीढ़ियों के लिए विज्ञान की अमानत बन चुका है. अगली बोतल करीब 2040 में निकाली जाएगी, और आखिरी बोतल 2100 के आसपास.

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