आखिर जंग में ईरान की मदद क्यों नहीं कर रहा रूस, आखिर क्या हैं पुतिन की मजबूरियां?

अमेरिका समर्थित इजराइल ने ईरान की कमर तोड़ दी है. इस सबके बावजूद एक सवाल हर किसी के मन में है कि ईरान की ऐसी बर्बादी के बावजूद उसका मित्र देश रूस उसकी मदद के लिए खुलकर आगे क्यों नहीं आ रहा? क्या वजह हैं, जो रूस के कदम रोक रही हैं?

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ईरान में अयातुल्ला अली खामेनेई की सत्ता पुतिन के लिए बहुत अहम है.
नई दिल्ली:

ईरान और इजराइल के बीच जंग को एक हफ्ता हो चुका है. इजराइल ने ईरान को ऐसी चोट दी है, जिससे उबरने में उसे दशकों लग सकते हैं. उसके अहम परमाणु ठिकाने तबाह हो चुके हैं. बड़े सैन्य अधिकारी और परमाणु वैज्ञानिक मारे जा चुके हैं. सैन्य प्रतिष्ठान और अन्य महत्वपूर्ण ठिकाने नेस्तनाबूद कर दिए गए हैं. अमेरिका समर्थित इजराइल ने ईरान की कमर तोड़ दी है. इस सबके बावजूद एक सवाल हर किसी के मन में है कि ईरान की ऐसी बर्बादी के बावजूद उसका मित्र देश रूस उसकी मदद के लिए खुलकर आगे क्यों नहीं आ रहा? क्या वजह है, जो रूस सिर्फ बयान पर बयान दे रहा है, ईरान की सैन्य और अन्य तरीकों से मदद नहीं कर रहा? क्या रूस ईरान की तरफ इजराइल से टक्कर लेने उतरेगा? 

रूस के लिए ईरान इतना अहम क्यों?

ईरान में अयातुल्ला अली खामेनेई की सत्ता रूस के लिए बहुत अहम है. एक्सपर्ट्स बताते हैं कि ईरान की बर्बादी रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के लिए न सिर्फ सामरिक झटका होगी बल्कि उनकी इज्जत पर एक बदनुमा दाग भी लगा देगी. ईरान रूस का अहम आर्थिक और सैन्य साझेदार है. रूस ने ईरान में अरबों डॉलर का निवेश कर रखा है. खामेनेई की सत्ता रूस को मध्य पूर्व में एक विश्वसनीय आधार प्रदान करती है. अमेरिका और उसके सहयोगियों के खिलाफ दोनों ने साझा मोर्चा बना रखा है. खामेनेई का शासन रूस की भू-राजनीतिक और आर्थिक रणनीति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है. ईरान का अगर पतन होता है तो रूस के लिए यह सीरिया से भी बड़ा झटका होगा. 

ईरान की तबाही से रूस को ये नुकसान होंगे:

  • सामरिक नुकसान: ईरान रूस का प्रमुख क्षेत्रीय सहयोगी है. उसका पतन हुआ तो मध्य पूर्व में रूस का प्रभाव भी कम हो जाएगा.

  • आर्थिक नुकसान: रूस ने ईरान में गैस, ऊर्जा और बुनियादी ढांचे में अरबों डॉलर का निवेश किया है. ईरान में सत्ता परिवर्तन से ये निवेश खतरे में पड़ सकते हैं.
  • इज्जत पर दाग: छह महीने पहले सीरिया में बशर अल-असद के पतन रूस मध्य-पूर्व में अपना एक अहम साथी खो चुका है. अब ईरान का पतन हुआ तो रूस की विश्वसनीयता और घट जाएगी.
  • भू-राजनीतिक नुकसान: ईरान के पतन से मध्य-पूर्व में अमेरिका समर्थित ताकतों का वर्चस्व बढ़ जाएगा, जो रूस के लिए एक तरह  से रणनीतिक हार होगी.

ईरान की सीधी मदद क्यों नहीं कर रहा रूस?

अब सवाल ये उठता है कि इतना सबकुछ होते हुए भी रूस ईरान की सीधी मदद क्यों नहीं कर रहा है. जानकारों के मुताबिक, इसकी पहली और बड़ी वजह ये है कि रूस इजराइल और उसके पीछे खड़े अमेरिका से सीधे टकराव से बचना चाहता है. अगर रूस ईरान की तरफ से युद्ध के मैदान में उतरता है तो यह एक बड़ा फैसला होगा. ट्रंप खुद इसके लिए आगाह कर चुके हैं. दूसरी वजह ये है कि रूस का फोकस फिलहाल यूक्रेन युद्ध पर है. उसने अपने सैन्य और आर्थिक संसाधन यूक्रेन में चल रही जंग पर केंद्रित कर रखे हैं. यूक्रेन युद्ध के कारण रूस की सैन्य और आर्थिक स्थिति पहले के मुकाबले कमजोर हो चुकी है. जानकार कहते हैं कि अब वह ईरान के लिए जंग के अखाड़े में उतरने का जोखिम तब तक नहीं लेगा, जब तक सीधे उसके ऊपर बात न आए. वह जंग का एक नया मोर्चा नहीं खोलना चाहता. इसके अलावा रूस सऊदी अरब जैसी अन्य क्षेत्रीय ताकतों से भी अपने संबंध बनाए रखना चाहता है जो ईरान के खिलाफ हैं.

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ईरान की जंग में रूस का क्या फायदा?

वैसे देखा जाए तो ईरान और इजराइल की जंग से रूस को शॉर्ट टर्म में कुछ फायदे भी हो रहे हैं. इस संघर्ष की वजह से तेल की कीमतें चार महीने के उच्चतम स्तर पर पहुंच गई हैं. यह संकटग्रस्त रूसी अर्थव्यवस्था के लिए संजीवनी की तरह है. एक लाभ ये भी हो रहा है कि पूरी दुनिया का फोकस अब यूक्रेन युद्ध से काफी कुछ हटकर मध्य पूर्व पर हो गया है. इससे यूक्रेन युद्ध पर अंतरराष्ट्रीय दबाव कम हुआ है. ट्रंप अब यूक्रेन की कम, मध्य पूर्व की ज्यादा बात कर रहे हैं. हालांकि ये सभी अल्पकालिक फायदे हैं, लेकिन लंबे चले युद्ध में ईरान कमजोर हुआ तो यह रूस के लिए नुकसानदेह ही होगा.

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ईरान को बर्बाद करने पर क्यों तुला है अमेरिका?

अमेरिका इजराइल के समर्थन से ईरान की कमर तोड़ने पर तुला है. उसे इसमें अपने कई फायदे नजर आ रहे हैं. अमेरिका और इजराइल ईरान के परमाणु कार्यक्रम को एक खतरा मानते हैं और किसी भी कीमत पर इसे रोकना चाहते हैं. एक्सपर्ट्स कहते हैं कि ईरान में मौजूदा खामेनेई शासन के कमजोर होने से मध्य पूर्व में अमेरिका का रुतबा बढ़ जाएगा. अमेरिका के इजराइल और सऊदी अरब जैसे सहयोगियों का दबदबा बढ़ेगा. यही वजह है कि ट्रंप प्रशासन ईरान के वर्तमान शासन पर बिना शर्त सरेंडर करने के लिए दबाव डाल रहा है ताकि वहां अमेरिका समर्थित सरकार स्थापित हो सके. ईरान के कमजोर होने से उसके समर्थित हिज्बुल्लाह जैसे समूह जैसे भी कमजोर होंगे जो इजराइल और अमेरिका के लिए फायदे की बात होगी. 

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ऐसी ही कुछ वजहों से रूस ईरान-इजराइल युद्ध में संघर्षविराम पर जोर दे रहा है. उसने मध्यस्थता का प्रस्ताव भी रखा है, जिसे अमेरिका ने फिलहाल खारिज कर दिया है. ट्रंप ने खुलासा किया है कि हाल ही में पुतिन ने उनसे संपर्क किया था और मध्यस्थता की पेशकश की थी. लेकिन ट्रंप ने दोटूक कह दिया कि रूस पहले यूक्रेन वाला अपना मसला सुलझाए, मिडिल ईस्ट की चिंता बाद में करे. रूस इस मध्यस्थता के जरिए दो तरह से अपना फायदा करना चाहता है. पहला वह ट्रंप प्रशासन के साथ अपना तनाव कम करने के लिए कूटनीति रूप से आगे बढ़ाना चाहता है. दूसरा, वह ईरानी शासन को तबाह होने से बचाने की कोशिश कर रहा है जो उसका रणनीतिक साझेदार है. अब देखना ये है कि रूस की ये कवायद कितना रंग लाती है और ईरान-इजराइल युद्ध का ऊंट किस करवट बैठता है. 

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