- कैलाश पर्वत तिब्बत के न्गारी प्रांत में स्थित है और भारत, नेपाल, चीन की सीमाओं के पास आता है
- कैलाश पर्वत की चोटी तक कोई भी इंसान आज तक नहीं पहुंच पाया क्योंकि धार्मिक मान्यताएं चढ़ाई को मना करती हैं
- बर्फीले तूफान के साथ-साथ चुंबकीय क्षेत्र की मौजूदगी से कंपास और इलेक्ट्रॉनिक उपकरण प्रभावित करते हैं
कैलाश पर्वत दुनिया की सबसे रहस्यमयी और पवित्र चोटियों में से एक है. यह तिब्बत के न्गारी प्रांत में स्थित है और भारत, नेपाल और चीन की सीमाओं के पास पड़ता है. हिंदू धर्म में माना जाता है कि यही वो स्थान है, जहां भगवान शिव ध्यान और समाधि में लीन रहते हैं. इसे बौद्ध, जैन और बॉन धर्म के लोग भी बेहद पवित्र मानते हैं. इसकी ऊंचाई लगभग 6,638 मीटर है, लेकिन हैरानी की बात यह है कि आज तक कोई भी इंसान इसकी चोटी तक नहीं पहुंच पाया है. कैलाश पर्वत की आकृति बिल्कुल पिरामिड जैसी है, जो इसे और भी रहस्यमयी बनाती है.
कहा जाता है कि यह पर्वत धरती का केंद्र है, जहां से पूरी सृष्टि की ऊर्जा फैलती है. हर साल हजारों श्रद्धालु यहां कैलाश मानसरोवर यात्रा के लिए आते हैं. इस यात्रा में करीब 52 किलोमीटर की पैदल परिक्रमा करनी पड़ती है, जो तीन दिनों में पूरी होती है. ऊंचाई, ऑक्सीजन की कमी और ठंड के कारण यह यात्रा आसान नहीं होती.
अब सवाल उठता है कि आज तक कोई कैलाश पर्वत पर क्यों नहीं चढ़ पाया? तो इसके कई कारण हैं.
- सबसे पहले तो धार्मिक मान्यता है कि कैलाश पर चढ़ना भगवान शिव की मर्यादा का उल्लंघन माना जाता है. यही वजह है कि श्रद्धालु सिर्फ इसकी परिक्रमा करते हैं, चढ़ाई नहीं.
- दूसरा कारण है मौसम. यहां पलभर में बर्फीले तूफान आ जाते हैं, जिससे जान का खतरा बना रहता है.
- वैज्ञानिकों का कहना है कि कैलाश के आसपास चुंबकीय क्षेत्र बहुत अधिक है, जिसके कारण कंपास और इलेक्ट्रॉनिक उपकरण काम करना बंद कर देते हैं. दिशा का अंदाजा न लगने से पर्वतारोहियों का आगे बढ़ना मुश्किल हो जाता है.
- कुछ पर्वतारोहियों का दावा है कि कैलाश के पास पहुंचते ही उन्हें अजीब ऊर्जा का एहसास होता है, सिर घूमने लगता है और शरीर बेहद थका हुआ महसूस करता है.
- कुछ लोगों ने तो यह भी दावा किया है कि यहां समय की गति तेज है और कुछ ही घंटों में उनके बाल-नाखून बढ़ जाते हैं. चीन सरकार ने भी इस पर्वत की चढ़ाई पर पूरी तरह प्रतिबंध लगाया हुआ है ताकि इसकी पवित्रता बनी रहे.













