जेलेंस्की और ट्रंप के बीच हुई तीखी बहस से क्यों बढ़ी नाटो की चिंता, पढ़ें हर एक बात

बीते तीन साल के रूस-यूक्रेन युद्ध ने न सिर्फ यूक्रेन को बल्कि पूरे यूरोप के सामने एक बड़ा संकट खड़ा कर दिया है. जिस तरह यूक्रेन का भविष्य अंधेरे में दिख रहा है उसी तरह उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (NATO) का क्या होगा यह भी सवालों के घेरे में आ गया है.

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अंधेरे में दिख रहा NATO का भविष्‍य...

वाशिंगटन:

यूक्रेन के राष्‍ट्रपति वलोदिमीर जेलेंस्की और अमेरिका के राष्‍ट्रपति डोनाल्‍ड ट्रंप के बीच हुई तीखी बहस के बाद रूस जहां गदगद नजर आ रहा है, वहीं नाटो (NATO) की चिंता बढ़ गई है. नाटो चीफ ने जेलेंस्‍की को सलाह दी है कि वह जल्‍द से जल्‍द अमेरिका से अपने रिश्‍ते से सुधारे, क्‍योंकि इसी में सबकी भलाई है. दरअसल, व्हाइट हाउस में डोनाल्ड ट्रंप और वोलोदिमीर जेलेंस्की की तीखी बहस ने दो अहम सवाल खड़े हो गए हैं. पहला- बिना अमेरिकी मदद यूक्रेन, रूस से जंग कैसे लड़ेगा. दूसरा- नाटो का भविष्य क्या होगा, जिसमें शामिल होने के लिए जेलेंस्की ने रूस के साथ वो जंग मोल ले ली, जो आज यूक्रेन के लिए अस्तित्व का सवाल बन गई. हालांकि, ट्रंप ने कुछ दिनों पहले ही साफ कर दिया था कि वह यूक्रेन को नाटो का हिस्‍सा बनते हुए नहीं देखना चाहते हैं, लेकिन क्‍या यूरोपीय देखों की भी यही सोच है.    

NATO की चिंता

ओवल ऑफिस में डोनाल्ड ट्रंप और यूक्रेन के राष्ट्रपति के बीच हुई बहस को नाटो चीफ मार्क रूटे ने दुर्भाग्यपूर्ण करार दिया है. उन्होंने कहा कि इस घटना के बाद से वह दो बार राष्‍ट्रपति जेलेंस्की से बात कर चुके हैं. यूक्रेन में स्थायी शांति के लिए अमेरिका, यूरोप और यूक्रेन को एकसाथ रहना चाहिए. साथ ही उन्होंने जेलेंस्की को नसीहत दी कि यूक्रेन के लिए ट्रंप ने जो किया है, उसका सम्मान करें. अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप कीव में शांति लाने और नाटो, दोनों के लिए प्रतिबद्ध हैं.

NATO में शामिल देश 

  • संयुक्त राज्य अमेरिका
  • स्पेन
  • स्वीडन
  • तुर्किये (तुर्की)
  • यूनाइटेड किंगडम
  • अल्बानिया
  • बेल्जियम
  • बुल्गारिया
  • कनाडा
  • क्रोएशिया
  • चेकिया
  • डेनमार्क
  • एस्टोनिया
  • फ़िनलैंड
  • फ़्रांस
  • जर्मनी
  • ग्रीस
  • हंगरी
  • आइसलैंड
  • इटली
  • लातविया
  • लिथुआनिया
  • लक्ज़मबर्ग
  • मोंटेनेग्रो
  • नीदरलैंड
  • उत्तरी मैसेडोनिया
  • नॉर्वे
  • पोलैंड
  • पुर्तगाल
  • रोमानिया
  • स्लोवाकिया
  • स्लोवेनिया

US-यूक्रेन गठबंधन भरभरा कर गिर!

पूर्व राष्ट्रपति जो बाइडेन के शासनकाल में जो यूएस-यूक्रेन गठबंधन मजबूती से खड़ा था वो अब भरभरा कर गिर गया है. सभी जानकार इस बात पर सहमत है कि बिना अमेरिकी मदद के यूक्रेन के लिए रूस से युद्ध जीतना करीब-करीब असंभव है. जेलेंस्की ने शायद अपने राष्ट्रपति काल की सबसे बड़ी चुनौती को शुक्रवार को झोला. अब उनके सामने क्या विकल्प हैं? जानकार मानते हैं आगे की राह बहुत मुश्किल है- उन्हें या तो जादुई तरीके से अमेरिका-यूक्रेन रिश्तों में आई दरार को भरना होगा, या किसी तरह अमेरिका के बिना अपने देश को बचना होगा.

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क्‍या जेलेंस्‍की को पद छोड़ देना चाहिए?

जेलेंस्‍की के पास एक रास्ता ये है कि वह पद छोड़ दें. इसके बाद किसी और को यूक्रेन का नेतृत्व करने का मौका मिले. बाकी ऑप्शन के मुकाबले यह आसान विकल्‍प है. लेकिन इसमें खतरे भी बहुत हैं. सत्ता से हटना मॉस्को को फायदा पहुंचा सकता है, क्योंकि ऐसा करने से अग्रिम मोर्चे पर संकट पैदा हो सकता है, राजनीतिक स्पष्टता खत्म हो सकती है, कीव में सरकार की वैधता भी प्रभावित हो सकती है, युद्ध के दौरान एक पारदर्शी चुनाव कराना भी बहुत बड़ी चुनौती है, जिससे पार पाना मुश्किल है.

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क्‍यों बना था NATO

  • नाटो (उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन) उत्तरी अमेरिका और यूरोप के देशों का एक सुरक्षा गठबंधन है.
  • नाटो का मूल सिद्धांत सामूहिक रक्षा है, जिसका अर्थ है कि एक सदस्य के खिलाफ हमला सभी सदस्यों के खिलाफ हमला माना जाता है.
  • इसे ऐसे भी समझ सकते हैं कि अगर कोई इटली पर हमला करता है, तो ये अमेरिका पर हमला माना जाएगा.
  • नाटो यूरोप और उत्तरी अमेरिका में स्थिरता और शांति बनाए रखने के लिए काम करता है.
  • यह विवादों के शांतिपूर्ण समाधान को बढ़ावा देता है और संघर्षों को रोकने के लिए काम करता है. 
  • नाटो सदस्य देशों के बीच रक्षा और सुरक्षा मामलों पर सहयोग और परामर्श के लिए एक मंच प्रदान करता है. 
  • स्वीडन नाटो में शामिल होने वाला सबसे नया देश है, जो 2024 में शामिल हुआ था और फ़िनलैंड 2023 में नाटो में शामिल हुआ.

NATO का भविष्‍य अंधेरे में...!

जिस तरह यूक्रेन का भविष्य अंधेरे में दिख रहा है उसी तरह उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (NATO) का क्या होगा यह भी सवालों के घेरे में आ गया है. यूक्रेन के बाहर यूरोपीय सुरक्षा के लिए अमेरिका की प्रतिबद्धता के बारे में कई संदेह और सवाल खड़े हो गए हैं. सबसे बड़ा प्रश्न यह है कि क्या राष्ट्रपति ट्रंप अपने पूर्ववर्ती हैरी ट्रूमैन की तरफ से 1949 में किए गए उस वादे को निभाएंगे कि नाटो सहयोगी पर हमले को अमेरिका पर हमला माना जाएगा. संयुक्त राज्य अमेरिका नाटो का अग्रणी और संस्थापक सदस्य रहा है. नाटो के गठन ने संयुक्त राज्य अमेरिका की पारंपरिक विदेश नीति को उलट दिया, जो अलग-थलग रहने पर आधारित थी. इसी नीति की वजह से अमेरिका जितना संभव हो सका प्रथम विश्व युद्ध और द्वितीय विश्व युद्ध से बाहर रहा. दोनों ही अवसरों पर, उसकी नौसैनिक परिसंपत्तियों पर हमले ने अंततः उसे युद्ध की स्थिति में धकेल दिया. हालांकि डोनाल्ड ट्रंप बिल्कुल अलग राह पर चल रहे हैं. उन्होंने पिछले दिनों सष्पट कहा था कि यूक्रेन को नाटो मेंबरशिप भूल जानी चाहिए. उन्होंने कहा था- नाटो, आप इसके बारे में भूल सकते हैं. मुझे लगता है कि शायद यही कारण है कि यह सब शुरू हुआ.

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