यमन में पूर्व राष्ट्रपति के बेटे को सजा-ए-मौत! कौन हैं अहमद अली अब्दुल्ला सालेह, क्‍या हैं हूतियों का आरोप?

अहमद अली 2013-2015 के बीच संयुक्त अरब अमीरात (UAE) में यमन के राजदूत भी रहे, लेकिन 2015 में हादी सरकार ने उन्हें पद से हटा दिया था.

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  • यमन के पूर्व राष्ट्रपति के बेटे अहमद अली को देशद्रोह, जासूसी और भ्रष्टाचार के आरोप में मौत की सजा सुनाई गई है.
  • हूती नियंत्रित सैन्य अदालत ने अहमद अली की संपत्ति जब्त करने और गबन की राशि वसूलने का भी आदेश दिया है.
  • अहमद अली सालेह यमन के रिपब्लिकन गार्ड के पूर्व कमांडर और 2013 से 2015 तक यूएई में यमन के राजदूत रह चुके हैं.
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यमन में हूती नियंत्रित शहर सना (Sanaa) में एक सैन्य अदालत ने यमन के पूर्व राष्ट्रपति के बेटे, ब्रिगेडियर जनरल अहमद अली अब्दुल्ला सालेह को देशद्रोह, जासूसी और भ्रष्टाचार के आरोपों में मौत की सजा सुनाई है. हूती-नियंत्रित सबा न्यूज एजेंसी के अनुसार, अदालत ने उनकी संपत्ति जब्त करने और गबन की गई राशि की वसूली का भी आदेश दिया है. रिपोर्ट में कहा गया है कि केंद्रीय सैन्य अदालत ने गुरुवार को अपना फैसला सुनाया, जिसमें सालेह को 'देशद्रोह और दुश्मन के साथ जासूसी और सहयोग' का दोषी ठहराया गया. साथ ही उनके पूर्व सार्वजनिक पद से संबंधित अतिरिक्त दंड भी लगाए गए.

अहमद अली अब्दुल्ला सालेह कौन हैं?

अहमद अली अब्दुल्ला सालेह पूर्व यमनी राष्ट्रपति अली अब्दुल्ला सालेह के बड़े बेटे हैं. वे यमन के शक्तिशाली रिपब्लिकन गार्ड (Republican Guard) के कमांडर रह चुके हैं और एक समय लगभग 80,000 सैनिकों की सेना का नेतृत्व करते थे. अहमद अली 2013-2015 के बीच संयुक्त अरब अमीरात (UAE) में यमन के राजदूत भी रहे, लेकिन 2015 में हादी सरकार ने उन्हें पद से हटा दिया था. सत्तारूढ़ कांग्रेस पार्टी (General People's Congress) के उपाध्यक्ष भी कहे जाते हैं. अहमद अली लंबे समय से राजनीतिक रूप से निष्क्रिय हैं. 2017 में उनके पिता की मौत के बाद, वे मुख्य रूप से अबू धाबी (UAE) में निर्वासन में रह रहे हैं. 

विद्रोह के दौरान आया बुरा दौर

अहमद के पिता अली अब्दुल्ला सालेह ने 2011 के अरब स्प्रिंग विद्रोह के दौरान पद से हटाए जाने से पहले तीन दशकों से अधिक समय तक यमन पर शासन किया था. अहमद को लंबे समय से अपने पिता का उत्तराधिकारी बनने के लिए तैयार किया जा रहा था. वो 2004 में ब्रिगेडियर जनरल के पद पर पहुंचे और रिपब्लिकन गार्ड की कमान संभाली, जो शासन के प्रति वफादार एक शक्तिशाली सैन्य इकाई थी. 

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राष्‍ट्रपति बनते-बनते रह गए!

उस समय, उनके पिता द्वारा स्थापित पार्टी, जनरल पीपुल्स कांग्रेस के भीतर के गुटों ने अहमद को राष्ट्रपति पद के लिए नामित करने का भी आह्वान किया था. हालांकि, 2011 के बड़े पैमाने पर हुए विरोध प्रदर्शनों ने इन महत्वाकांक्षाओं को खत्म कर दिया, जिसने सालेह को पद छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया था. 

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नवंबर 2011 में रियाद में हस्ताक्षरित खाड़ी पहल के तहत पिता और पुत्र दोनों को अभियोजन से प्रतिरक्षा मिली. उन्होंने विशेष रूप से सेना के भीतर अपना प्रभाव बनाए रखा. सितंबर 2014 में सना पर हूतियों के कब्जे में अहमद की रिपब्लिकन गार्ड ने एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जो यमन के चल रहे युद्ध में एक बड़ा मोड़ साबित हुआ.

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हूतियों ने कर दी थी पिता की हत्‍या 

सालेह और हूतियों के बीच का गठबंधन 2017 में टूट गया, जिसके परिणामस्वरूप उसी साल दिसंबर में हूती लड़ाकों ने पूर्व राष्ट्रपति की हत्या कर दी थी. वर्षों से निर्वासन में रह रहे अहमद को अबू धाबी में घर में नजरबंद रखा गया था और हूती तख्तापलट में सहायता करने के लिए 2014 में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने उन पर प्रतिबंध लगाए गए थे. 

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इन प्रतिबंधों में यात्रा पर प्रतिबंध और संपत्ति को फ्रीज करना शामिल था, जिन्‍हें जुलाई 2024 में हटा लिया गया था. एक महीने बाद यूरोपियन यूनियन ने भी उनका नाम अपनी ब्लैकलिस्ट से हटा लिया. हालांकि हूती कोर्ट का ताजा फैसला उनके लिए बहुत ही बुरी खबर साबित हुआ.  

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