ट्रंप ने चुपके से ब्रिटेन कैसे भिजवाए न्यूक्लियर हथियार? समझिए 17 साल बाद जरूरत क्यों पड़ी

अमेरिका ने साल 2008 के बाद पहली बार अपने न्यूक्लियर हथियारों का एक हिस्सा यूनाइटेड किंगडम यानी ब्रिटेन में तैनात कर दिया है. जानिए यह कौन से न्यूक्लियर हथियार हैं.

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  • अमेरिका ने 2008 के बाद पहली बार न्यूक्लियर हथियारों का हिस्सा ब्रिटेन में तैनात किया है- रिपोर्ट
  • ब्रिटेन में तैनात किए गए अमेरिकी न्यूक्लियर हथियारों में संभवतः B61-12 थर्मोन्यूक्लियर बम शामिल हैं.
  • रूस ने ट्रंप के अल्टीमेटम को खारिज करते हुए सैन्य अभियान के उद्देश्यों के पूरा होने तक बातचीत से इंकार किया.
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रूस और यूक्रेन के बीच जंग रुकवाने की जुगत में लगे अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप अचानक कई मोर्चों पर एक्टिव दिख रहे हैं. एक तरफ तो उन्होंने रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को 10-12 दिन के अंदर सीजफायर पर सहमति देने की डेडलाइन दे दी है वहीं दूसरी तरफ वो न्यूक्लियर हथियारों के जरिए सामरिक दबाव की कोशिश करते भी दिख रहे हैं. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार अमेरिका ने साल 2008 के बाद पहली बार अपने न्यूक्लियर हथियारों का एक हिस्सा यूनाइटेड किंगडम यानी ब्रिटेन में तैनात कर दिया है. यह रिपोर्ट ब्लूमबर्ग ने 28 जुलाई को छापी है.

ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट में ओपन-सोर्स डेटा और रक्षा विश्लेषकों का हवाला दिया गया है. इसके अनुसार अमेरिका ने संभवतः 16 जुलाई को न्यू मैक्सिको के किर्टलैंड एयरफोर्स बेस से फ्लाइट के जरिए न्यूक्लियर हथियारों को इंग्लैंड के लैकेनहीथ में एक एयरबेस भेज दिया. इसके लिए यू.एस. सी-17 परिवहन विमान (ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट) का उपयोग किया गया. इस फ्लाइट ने अपने ट्रांसपोंडर के साथ उड़ान भरी और इसमें यू.एस. वायु सेना की प्राइम न्यूक्लियर एयरलिफ्ट फोर्स शामिल थी.

ब्लूमबर्ग के अनुसार, जो हथियार डिलीवर किए गए हैं उसमें संभवतः B61-12 थर्मोन्यूक्लियर बम शामिल होंगे. यह बम शीत युद्ध के दौरान पहली बार विकसित सामरिक न्यूक्लियर हथियार का एक नया वर्जन है. ध्यान रहे कि अपने देशों की सुरक्षा नीति के अनुसार, अमेरिका और ब्रिटेन ने अपने न्यूक्लियर हथियारों की स्थिति और उनके लोकेशन को लेकर कोई आधिकारिक टिप्पणी नहीं की है और न उनसे ऐसा करने की उम्मीद की जा रही है. 

पुतिन पर दबाव बनाने की रणनीति?

यूक्रेन के खिलाफ जंग शुरू करने के बाद रूस को लेकर यूरोपीय देश सशंकित हैं. यूक्रेन के खिलाफ हर वार उन्हें पुतिन की धमकी लग रही है. ट्रंप ने दूसरी बार अमेरिकी राष्ट्रपति की कुर्सी संभालने के बाद यूक्रेन और यूरोपीय देशों को दरकिनार करके सीधे पुतिन से बात करने और सीजफायर के लिए उन्हें राजी करने की कोशिश की थी लेकिन जब कोई सफलता नहीं मिली तो वो अपने यूरोपीय सहयोगियों को यूरोप की सुरक्षा के प्रति अपनी प्रतिबद्धता के बारे में आश्वस्त करने की कोशिश में लग गए हैं.

ट्रंप ने पहले यूक्रेन की सैन्य मदद भी रोक दी थी लेकिन उन्होंने उसे भी वापस शुरू कर दिया है. ऐसा लगता है कि वो यह समझ चुके हैं कि पुतिन को सीधे डील करना उतना आसान नहीं है जितना वो मान चुके थे. अपने न्यूक्लियर हथियारों को रूस के नजदीक ब्रिटेन में तैनात करना ट्रंप की दबाव बनाने की रणनीति का हिस्सा हो सकता है.

इससे जुड़ीं रिपोर्ट पहली बार ब्रिटेन के टाइम्स और टेलीग्राफ अखबारों में सामने आईं. तब रूस ने 22 जुलाई को कहा था कि उसने अंतरराष्ट्रीय तनाव में तेजी का पता लगाया है और वह रिपोर्ट के बाद घटनाक्रम पर नजर रख रहा है कि अमेरिका ने ब्रिटेन में न्यूक्लियर हथियार तैनात किए हैं. रिपोर्टों के बारे में पूछे जाने पर क्रेमलिन के प्रवक्ता दिमित्री पेसकोव ने कहा: "हम न्यूक्लियर सैन्यीकरण सहित सैन्यीकरण की दिशा में तनाव बढ़ता देख रहे हैं."

ट्रंप टैरिफ वाला हथकंडा भी अपना रहें

रूस पर सीजफायर के लिए दबाव बनाने के लिए उन्होंने टैरिफ वाला हथकंडा भी अपनाया है. उन्होंने पहले पुतिन को 50 दिन की डेडलाइन दी थी. लेकिन सोमवार, 28 जुलाई को ट्रंप ने पुतिन के सामने सीजफायर करने के लिए नई डेडलाइन दे दी- अगले दस या 12 दिनों की. राष्ट्रपति ट्रंप ने कहा कि अब और इंतजार करने का "कोई कारण नहीं" है क्योंकि शांति की दिशा में कोई प्रगति नहीं हुई है. 

रूस का झुकने से इनकार

रूस झुकने का नाम नहीं ले रहा है. ट्रम्प की घोषणा पर प्रतिक्रिया देते हुए, पूर्व रूसी राष्ट्रपति दिमित्री मेदवेदेव ने कहा कि रूस इजरायल या ईरान भी नहीं है, और प्रत्येक नया अल्टीमेटम एक खतरा और युद्ध की ओर एक कदम है. अमेरिका के सीनेटर लिंडसे ग्राहम ने उनके ट्वीट पर कमेंट किया तो जवाब में मेदवेदेव ने लिखा कि 'शांति की मेज पर कब पहुंचना है' यह तय करना आपके या ट्रंप का काम नहीं है. बातचीत तब समाप्त होगी जब रूस के सैन्य अभियान के सभी उद्देश्य प्राप्त हो जायेंगे.

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