Explainer: सीरिया में ट्रंप का प्लान क्या उनका 'खास' देश ही करेगा फेल?

अगर ट्रंप कोई समझौता करा पाते हैं तो जाहिर तौर पर मिडिल ईस्ट में रूस, चीन और ईरान पर भारी पड़ जाएंगे. बशर अल-असद के सीरिया छोड़ने के बाद रूस, चीन और ईरान का सीरिया में हस्तक्षेप ना के बराबर रह गया है.

विज्ञापन
Read Time: 4 mins
फटाफट पढ़ें
Summary is AI-generated, newsroom-reviewed
  • अमेरिकी हमलों में इस्लामिक स्टेट के पांच जिहादी मारे गए, जिसमें एक सेल का नेता भी शामिल था
  • अमेरिकी सेना ने 13 दिसंबर के हमले के जवाब में आईएस के सत्तर से अधिक ठिकानों पर हमला किया
  • अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने सीज़र एक्ट प्रतिबंधों को रद्द कर सीरिया के पुनर्निर्माण के लिए रास्ता खोला
क्या हमारी AI समरी आपके लिए उपयोगी रही?
हमें बताएं।

सीरिया पर नजर रखने वाली एक संस्था ने शनिवार को बताया कि अमेरिकी हमलों में इस्लामिक स्टेट (ISIS) के कम से कम पांच जिहादी सदस्य मारे गए. इनमें एक सेल का नेता भी शामिल था. अमेरिकी सेना ने कहा कि उन्होंने 13 दिसंबर के हमले के जवाब में आईएस के 70 से अधिक ठिकानों पर हमला किया. खुद अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इसे बहुत गंभीर जवाबी कार्रवाई बताया है. आपको बता दें कि 13 दिसंबर के हमले में दो अमेरिकी सैनिक और एक अमेरिकी नागरिक मारे गए थे.

प्रतिबंध भी हटाए

इससे पहले सीरियाई सरकार और उसके सहयोगियों ने शुक्रवार को हाल के दशकों में देश पर लगाए गए सबसे कठोर प्रतिबंधों को अंततः हटाए जाने का स्वागत किया. अमेरिकी कांग्रेस ने 2019 में सीरियाई सरकार और वित्तीय प्रणाली पर तथाकथित सीजर एक्ट प्रतिबंध लगाए थे, ताकि तत्कालीन राष्ट्रपति बशर असद को 2011 में शुरू हुए लगभग 14 वर्षों के गृह युद्ध के दौरान मानवाधिकारों के हनन के लिए दंडित किया जा सके.  दिसंबर 2024 में विद्रोहियों के अचानक हुए हमले में असद को सत्ता से बेदखल किए जाने के बाद, प्रतिबंधों के समर्थकों ने इन्हें हटाने के लिए दबाव बनाया. उनका तर्क था कि ये प्रतिबंध अंतरराष्ट्रीय निवेशकों को पुनर्निर्माण परियोजनाएं शुरू करने से रोक रहे थे और सीरिया को अपनी बुरी तरह क्षतिग्रस्त अर्थव्यवस्था और बुनियादी ढांचे के पुनर्निर्माण में बाधा डाल रहे हैं.

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने पहले कार्यकारी आदेश से अस्थायी रूप से प्रतिबंध हटाए थे मगर गुरुवार देर रात अंतिम रूप से प्रतिबंधों को रद्द करने पर हस्ताक्षर कर दिए, लेकिन इस शर्त के साथ कि सीरिया को अल्पसंख्यक अधिकारों और आतंकवाद-विरोधी उपायों सहित विभिन्न मुद्दों पर सीरिया की प्रगति पर समय-समय पर कांग्रेस को रिपोर्ट देनी होगी.  सीरिया के विदेश मंत्रालय ने शुक्रवार को एक बयान में इस कदम के लिए अमेरिका को धन्यवाद दिया और कहा कि इससे "सीरियाई लोगों पर बोझ कम करने में मदद मिलेगी और पुनर्निर्माण और स्थिरता के एक नए चरण का मार्ग प्रशस्त होगा."

तुर्की, सऊदी सब साथ

अंतरिम राष्ट्रपति अहमद अल-शारा के नेतृत्व वाली नई सीरियाई सरकार के क्षेत्रीय सहयोगी तुर्की, सऊदी अरब और कतर ने भी इस कदम का स्वागत किया. तुर्की के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ओन्कु केसेली ने एक बयान में कहा, "हमें उम्मीद है कि यह कदम सीरिया के पुनर्निर्माण और विकास की दिशा में अंतरराष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देकर देश में स्थिरता, सुरक्षा और समृद्धि को मजबूत करने में योगदान देगा." सऊदी विदेश मंत्रालय ने भी प्रतिबंध हटाने में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की भूमिका की सराहना की. ट्रंप ने पहले कहा था कि उन्होंने सऊदी अरब के वास्तविक शासक क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान और तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप तैयप एर्दोगन के आग्रह पर प्रतिबंध हटाए थे.

पर क्या इजरायल मानेगा

इन सबके बीच इजरायल आज भी सीरिया के लिए एक बड़ा और खतरनाक फैक्टर बना हुआ है. असद के पतन के बाद, इजरायल ने पुराने शासन की बची-खुची सैन्य क्षमता को नष्ट करने के लिए बड़े पैमाने पर हवाई हमले किए है. इजरायल सुरक्षा बल (आईडीएफ) ने कब्जे वाले गोलान हाइट्स से आगे बढ़कर सीरिया के और इलाकों पर नियंत्रण कर लिया, जो अभी भी उसके पास हैं. इजरायल ने सीरिया में फैली अराजकता का फायदा उठाते हुए उस देश को कमजोर करने की कोशिश की, जिसे वह अपने लिए शत्रु मानता है. उसका कहना था कि वह ऐसे हथियार नष्ट कर रहा है, जिनका इस्तेमाल उसके खिलाफ किया जा सकता था. अमेरिका की ओर से इजरायल और सीरिया के बीच एक सुरक्षा समझौता कराने की कोशिशें अब तक ठप हैं. सीरिया उस समझौते पर लौटना चाहता है, जिसे 1974 में अमेरिकी विदेश मंत्री रहे हेनरी किसिंजर ने तय कराया था. वहीं नेतन्याहू चाहते हैं कि इजरायल जिस जमीन पर कब्जा कर चुका है, वहां से हटे नहीं, और उन्होंने मांग की है कि दमिश्क के दक्षिण के एक बड़े इलाके को पूरी तरह असैन्य कर दिया जाए. 

ट्रंप को क्या मिलेगा

अगर ट्रंप इजरायल-सीरिया में कोई समझौता करा पाते हैं तो जाहिर तौर पर मिडिल ईस्ट में रूस, चीन और ईरान पर भारी पड़ जाएंगे. बशर अल-असद के सीरिया छोड़ने के बाद रूस, चीन और ईरान का सीरिया में हस्तक्षेप ना के बराबर रह गया है. ISIS भी अपनी अंतिम घड़ियां गिन रहा है. अब ताजा हवाई हमलों के जरिए ट्रंप ISIS को जड़ से खत्म करने की रणनीति पर काम कर रहे हैं, हालांकि, असली शांति तभी आ सकती है जब इजरायल भी सीरिया के साथ किसी समझौते पर पहुंचे. इससे इस क्षेत्र में पूरी तरह अमेरिका का प्रभुत्व स्थापित हो जाएगा. 
 

Advertisement
Featured Video Of The Day
Kolkata: खराब मौसम के चलते Taherpur में नहीं उतर सका PM Modi का हेलीकॉप्टर, वापस लौटा कोलकाता
Topics mentioned in this article