- अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप और रूसी राष्ट्रपति के बीच अलास्का में यूक्रेन युद्ध को खत्म करने के लिए मुलाकात हुई.
- रूस ने फरवरी 2022 में यूक्रेन पर हमला किया, जिससे तीन साल बाद भी युद्ध जारी है और स्थिति जटिल बनी हुई है.
- रूस ने डोनबास क्षेत्र के अलगाववादी इलाकों को स्वतंत्र राज्य घोषित कर वहां शांति सैनिक भेजने का आदेश दिया था.
अलास्का में अमेरिकी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और उनके रूसी समकक्ष व्लादिमीर पुतिन के बीच मुलाकात खत्म हो गई है. इस मीटिंग का मकसद यूक्रेन में जारी युद्ध को खत्म करना था और इस पर फिलहाल कोई नतीजा नहीं निकला है. युद्ध खत्म होगा या नहीं यह तो समय बताएगा लेकिन इस मीटिंग पर दुनियाभर की नजरें लगी रहीं. रूस-यूक्रेन युद्ध का एंड गेम कब होगा, इस बारे में अमेरिका में बड़े स्तर पर बहस जारी है. लेकिन फिर से यूक्रेन युद्ध पर बहस जारी है और हर कोई बस यही बात कर रहा है कि इस युद्ध के लिए आखिर कौन जिम्मेदार है. एक बार फिर से जानिए कि आखिर रूस ने यूक्रेन पर हमला किया क्यों था?
2022 में हुआ था हमला
24 फरवरी 2022 को रूस ने यूक्रेन पर हमला बोल दिया था. इस हमले ने तीन साल बाद कई जानकारों की उस भविष्यवाणी को गलत साबित कर दिया जो यह मान रहे थे कि लड़ाई लंबी नहीं चलेगी. दोनों देशों के बीच लंबे समय से चल रहा तनाव उस समय बढ़ गया जब रूस ने साल 2021 के अंत में यूक्रेन जो कभी सोवियत संघ का हिस्सा था, उसकी पड़ोसी सीमाओं पर 190,000 सैनिकों को इकट्ठा कर लिया. पुतिन ने बाद में विवादित डोनबास क्षेत्र में स्थित डोनेट्स्क और लुहान्स्क के रूस समर्थित अलगाववादी क्षेत्रों को ' आजाद' देशों के तौर मान्यता दे दी और मामला और बढ़ गया. उन क्षेत्रों में पुतिन ने शांति सैनिकों को भेजने का आदेश भी दे दिया.
अमेरिका ने तोड़ा वादा
ट्रंप ने कई मौकों पर यह बात कही है कि यूक्रेन में जंग के पीछे बाइडेन प्रशासन की अक्षमता जिम्मेदार है. कई जानकार इस बात पर जोर देते हैं कि रूस इस बात से नाराज था कि यूक्रेन को नाटो में शामिल किया जाएगा. लेकिन कुछ जानकार इस बात से सरोकार नहीं रखते हैं. उनका कहना है कि यूक्रेन पर रूस के आक्रमण के लिए अमेरिका ही जिम्मेदार है.
विशेषज्ञों के अनुसार अमेरिका ने शीत युद्ध के आखिरी महीनों में रूस से किया एक वादा तोड़ दिया था. वेबसाइट अटलाटिंक काउंसिल के अनुसार अगर अमेरिका और सोवियत संघ, जर्मनी के एकीकरण पर सहमत हो जाते तो जर्मन सीमा के पूर्व में नाटो की कोई मौजूदगी नहीं होती. रूस मानता है कि नाटो का एक्सपैंशन सोवियत शासन से आजाद हुए देशों की ऐसी इच्छाओं और आकांक्षाओं का बताता है जो रूस के खिलाफ हैं.
रूस विरोधी एजेंडा
पुतिन मानते हैं कि अमेरिका और पश्चिमी ताकतें रूस-विरोधी एजेंडे को आगे बढ़ाने के आक्रामक प्रयास कर रही हैं. पुतिन ने पहले साल 2008 में जॉर्जिया में फिर 2014 में यूक्रेल में, 2015 में सीरिया में, और फिर साल 2022 में दोबारा यूक्रेन में अपनी सैन्य ताकत का प्रदर्शन किया. वह कई बार यह बात दोहरा चुके हैं कि यूरोप की आड़ में अमेरिका उनके देश के खिलाफ एक एजेंडे को आगे बढ़ा रहा है. अगर यूक्रेन पर कोई भी शांति समझौता होता है तो यह ट्रंप प्रशासन की मास्को पर एक बड़ी जीत होगी.
यूक्रेन का जटिल इतिहास
रूस और यूक्रेन के बीच एक साझा इतिहास है जो काफी जटिल है लेकिन हजार साल पुराना है. यूक्रेन को 20वीं सदी में 'यूरोप का अन्न भंडार' कहा जाता था. यह कभी सोवियत संघ का सबसे ज्यादा आबादी वाला और सबसे ताकतवर देश था. साल 1991 में सोवियत संघ के टूटने तक यह उसका कृषि इंजन था. लेकिन रूस ने अपने पश्चिमी पड़ोसी पर कड़ी नजर रखी है, जबकि यूक्रेन के लोगों को आजादी में हमेशा ही उथल-पुथल नजर आई है.
यूक्रेन ने अक्सर ही खुद को पश्चिमी देशों के साथ करीब से जोड़ने की महत्वाकांक्षाओं का इजहार किया है. इसमें नाटो में शामिल होने की उसकी सार्वजनिक तौर पर घोषित रुचि भी शामिल है. साल 2014 में भी रूस और यूक्रेन के बीच टेंशन चरम पर थी जब यूक्रेन के लोगों ने रूस-समर्थित राष्ट्रपति को पद से हटा दिया था. उस समय रूस ने वहां पर बसे अपने नागरिकों को यूक्रेन के उत्पीड़न से बचाने के संदिग्ध दावे के तहत क्रीमिया पर कब्जा कर लिया था.