जब कान के पास से गुजरी गोली और फटते रहे बम... तब भी नहीं रुकी रिपोर्टिंग; जांबाज पत्रकार पीटर अर्नेट का 91 की उम्र में निधन

पुलित्जर पुरस्कार विजेता और दुनिया के सबसे जांबाज युद्ध संवाददाताओं में शुमार पीटर अर्नेट का 91 वर्ष की आयु में निधन हो गया है. अर्नेट ने वियतनाम युद्ध से लेकर खाड़ी युद्ध (1991) तक, दशकों तक मौत के साये में रहकर रिपोर्टिंग की. उन्हें 1966 में वियतनाम युद्ध की कवरेज के लिए पुलित्जर पुरस्कार मिला था.

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Peter Arnett Passes Away: वियतनाम और खाड़ी युद्ध की रिपोर्टिंग करने वाले पुलित्जर विजेता पीटर अर्नेट का निधन (फाइल फोटो)
AP

Peter Arnett Death: पत्रकारिता की दुनिया के एक युग का अंत हो गया है. वियतनाम के दलदली रास्तों से लेकर इराक के तपते रेगिस्तानों तक, दशकों तक मौत को करीब से देखने वाले जांबाज युद्ध संवाददाता (War Correspondent) पीटर अर्नेट (Peter Arnett) अब हमारे बीच नहीं रहे. 91 वर्ष की आयु में प्रोस्टेट कैंसर से जूझते हुए उन्होंने अंतिम सांस ली. अर्नेट के परिवार में उनकी पत्नी और उनके बच्चे एल्सा और एंड्रयू हैं.

सबसे पहली नौकरी कहां मिली

पीटर अर्नेट का जन्म 13 नवंबर 1934 को न्यूजीलैंड के रिवर्टन में हुआ था. हाई स्कूल की पढ़ाई पूरी करने के तुरंत बाद, उन्हें अपने स्थानीय समाचार पत्र, साउथलैंड टाइम्स में नौकरी मिल गई, जिससे पत्रकारिता से उनका पहला परिचय हुआ. टाइम्स में कुछ साल बिताने के बाद, उन्होंने लंदन के एक बड़े अखबार में जाने की योजना बनाई. हालांकि, जहाज से इंग्लैंड जाते समय, वे थाईलैंड में रुके और उस देश से उन्हें प्यार हो गया. जल्द ही वे अंग्रेजी भाषा के अखबार बैंकॉक वर्ल्ड के लिए काम करने लगे, और बाद में लाओस में इसके सहयोगी अखबार के लिए. वहीं उन्होंने ऐसे संपर्क बनाए जिनके कारण वे एपी से जुड़े और जीवन भर युद्ध की खबरें कवर करते रहे. 

वियतनाम युद्ध की वो रिपोर्टिंग, जिसने दिलाया 'पुलित्जर'

पीटर अर्नेट ने 1962 से 1975 तक वियतनाम युद्ध के दौरान उनकी रिपोर्टिंग ने दुनिया को हिला कर रख दिया था. 1966 में एक बार वे एक अमेरिकी कर्नल के ठीक बगल में खड़े थे, तभी स्नाइपर की गोली कर्नल के सीने के पार निकल गई. अर्नेट ने बाद में कहा था, 'गोली मेरे चेहरे से महज कुछ इंच दूर थी.' इसी अदम्य साहस और निष्पक्ष रिपोर्टिंग के लिए उन्हें 1966 में पत्रकारिता के सर्वोच्च सम्मान 'पुलित्जर पुरस्कार' से नवाजा गया.

सद्दाम हुसैन और ओसामा बिन लादेन का किया था इंटरव्यू

जहां 1991 के खाड़ी युद्ध के दौरान दुनिया भर के पत्रकार बगदाद छोड़कर भाग रहे थे, पीटर अर्नेट वहीं डटे रहे. उन्होंने CNN के लिए होटल के कमरे से लाइव रिपोर्टिंग की- 'मेरे ठीक पास एक धमाका हुआ है, शायद आपने सुना हो...'. बमबारी और सायरन की आवाजों के बीच उनकी शांत आवाज ने उन्हें घर-घर में मशहूर बना दिया. उन्होंने सद्दाम हुसैन और बाद में ओसामा बिन लादेन जैसे चेहरों के ऐतिहासिक इंटरव्यू भी किए.

जीने का नुस्खा: कभी मेडिक के पास मत खड़े हो

अर्नेट को उनके वरिष्ठों ने युद्ध के मैदान में बचने के कुछ कड़े नियम सिखाए थे, जिन्हें उन्होंने जीवन भर माना. कभी भी रेडियो ऑपरेटर या मेडिक के पास न खड़े हों, क्योंकि दुश्मन सबसे पहले उन्हीं पर निशाना साधता है. अगर कहीं से गोली चलने की आवाज आए, तो यह देखने के लिए मुड़ें नहीं कि किसने चलाई, वरना अगली गोली आपको लग सकती है.

विवादों से भी रहा नाता

पीटर अर्नेट का करियर केवल साहस ही नहीं, बल्कि विवादों से भी भरा रहा. इराक युद्ध की अमेरिकी रणनीति की आलोचना करने पर उन्हें 2003 में NBC से निकाल दिया गया था. लेकिन उनके जुनून का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि निकाले जाने के एक हफ्ते के भीतर ही उन्हें बेल्जियम और ताइवान के चैनलों ने हायर कर लिया.

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'मुझे अपनी जगह मिल गई है'

उन्होंने 2006 में एपी के साथ एक मौखिक इतिहास में याद करते हुए कहा था, 'मुझे वास्तव में इस बात का स्पष्ट अंदाजा नहीं था कि मेरा जीवन मुझे कहां ले जाएगा, लेकिन मुझे वह पहला दिन याद है जब मैं एक कर्मचारी के रूप में अखबार के कार्यालय में गया और अपनी छोटी सी डेस्क पाई, और मुझे एक बेहद सुखद एहसास हुआ कि मुझे अपनी जगह मिल गई है.'

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