नेपाल में राजतंत्र और लोकतंत्र के समर्थक आमने-सामने, अचानक क्यों भड़का राजशाही समर्थक आंदोलन

नेपाल में राजतंत्र समर्थक प्रदर्शनकारियों ने शुक्रवार को राजधानी काठमांडू में उग्र प्रदर्शन किया. इन प्रदर्शनकारियों ने इस दौरान लोकतंत्र समर्थक राजनीतिक दलों और मीडिया घरानों को निशाना बनाया. नेपाल में अब फिर राजनीतिक उथल-पुथल की आशंका तेज हो गई है.

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नई दिल्ली:

नेपाल की राजधानी काठमांडू में शुक्रवार को राजशाही समर्थकों ने उग्र प्रदर्शन किया. कई जगह उनकी पुलिस के साथ झड़प भी हुई.प्रदर्शनकारियों ने काठमांडू में पूर्व प्रधानमंत्री माधव नेपाल की सीपीएन-यूनिफाइड सोशलिस्ट पार्टी के कार्यालय और एक टीवी चैनल में तोड़फोड़ के अलाका कई जगह लूटपाट करने की भी खबरे हैं. इन प्रदर्शनकारियों ने कई घरों में भी तोड़फोड़ की. ये प्रदर्शनकारी नेपाल में राजशाही की बहाली की मांग कर रहे हैं. इनको नेपाल के पूर्व राजा ज्ञानेंद्र बीर विक्रम शाह का समर्थन हासिल है. राजधानी काठमांडू के हालात को देखते हुए कई इलाकों में कर्फ्यू लगा दिया गया है. प्रभावित इलाके में हालात को सामान्य बनाने के लिए सेना को तैनात किया गया है. 

क्या है प्रदर्शनकारियों की मांग

राजशाही समर्थकों ने संयुक्त जन आंदोलन समिति का गठन किया है. इस समिति ने गुरुवार को घोषणा की थी कि यदि सरकार एक हफ्ते में उनसे समझौता नहीं कर पाती है, तो वे उग्र प्रदर्शन करेंगे. लेकिन उन्होंने समय सीमा खत्म होने का इंतजार किए बिना शुक्रवार को ही उग्र और हिंसक प्रदर्शन शुरू कर दिया. 

नेपाल की राजधानी काठमांडू की सड़कों पर उग्र प्रदर्शन करते राजशाही समर्थक.

समिति के संयोजक 87 साल के नबराज सुबेदी हैं. उन्हें पूर्व राजा का कट्टर समर्थक माना जाता है. इस समिति ने सरकार ने 1991 के संविधान को बहाल करने की मांग की है. नेपाल का यह संविधान राजशाही के साथ-साथ बहुदलीय संसदीय लोकतंत्र प्रणाली को मान्यता देता है. इस संविधान के मुताबिक नेपाल एक हिंदू राष्ट्र है. समिति ने इसके अलावा वर्तमान संविधान में इन बातों को समायोजित करने की मांग की है. 

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नेपाल में राजतंत्र बनाम लोकतंत्र की लड़ाई

वहीं लोकतंत्र समर्थक चार दलों के समाजवादी मोर्चा ने इस आंदोलन का विरोध किया है. विरोध करने वाले दलों में पूर्व प्रधानमंत्री पुष्पकमल दहाल प्रचंड की कम्युनिस्ट पार्टी-माओवादी केंद्र और पूर्व प्रधानमंत्री माधव नेपाल की सीपीएन-यूनिफाइड सोशलिस्ट पार्टी शामिल हैं. इनके अलावा इसमें कुछ छोटे दल और मधेश की राजनीति करने वाले दल शामिल हैं. प्रचंड के नेतृत्व में विपक्षी दलों के मोर्चा ने भी काठमांडू में एक अलग रैली की. इसमें शामिल लोगों ने 2015 में लागू किए गए धर्मनिरपेक्ष संघीय गणतंत्र संविधान की रक्षा करने की कसम खाई.इस मोर्चे का कहना है कि नेपाल के लोगों ने गणतंत्र के लिए संघर्ष किया है और बलिदान दिया है, वे राजशाही को बहाल नहीं होने देंगे. 

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उग्र प्रदर्शनकारियों ने पूर्व प्रधानमंत्री माधव नेपाल की पार्टी के दफ्तर में भी आग लगा दी और तोड़फोड़ की.

राजशाही समर्थकों ने माधव नेपाल की नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (यूनिफाइड सोशलिस्ट) और प्रचंड की नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी केंद्र) के कार्यालय को निशाना बनाया. यह दिखाता है कि राजशाही समर्थकों के निशाने पर नेपाल में लोकतंत्र समर्थक नेता भी है. इनके अलावा इन प्रदर्शनकारियों के निशाने पर मीडिया घराने भी हैं, खासकर वो मीडिया हाउस जो लोकतंत्र के प्रखर समर्थक हैं. प्रदर्शनकारियों ने कांतिपुर टीवी के दफ्तर में आग लगाने की कोशिश की. इसे देखते हुए आशंका जताई जा रही है कि अगर सरकार ने इससे कड़ाई से नहीं निपटा तो आने वाले दिनों में यह आंदोलन हिंसक हो सकता है.केपी ओली की सरकार आज रात इस बात पर फैसला लेने के लिए बैठक करेगी कि राजशाही के समर्थकों से कैसे निपटा जाए. 

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