एकजुटता, समानता और स्थिरता समावेशी विकास... G-20 के घोषणापत्र में और क्या-क्या, यहां पढ़ें

घोषणापत्र में बढ़ती भू-राजनीतिक और भू-आर्थिक प्रतिस्पर्धा एवं अस्थिरता, बढ़ते संघर्षों एवं युद्धों तथा बढ़ती असमानता के कारण वैश्विक आर्थिक अनिश्चितता और विखंडन के प्रभाव को स्वीकार किया गया है.

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नई दिल्ली:

दक्षिण अफ्रीका के जोहानिसबर्ग में शनिवार को जी-20 नेताओं के शिखर सम्मेलन के दौरान अपनाए गए घोषणापत्र में बढ़ती भू-राजनीतिक और भू-आर्थिक प्रतिस्पर्धा के प्रभाव को स्वीकार किया गया है. साथ ही इसमें कहा गया है कि एकजुटता, समानता और स्थिरता समावेशी विकास के प्रमुख स्तंभ हैं. घोषणापत्र में ऊर्जा सुरक्षा, जलवायु कार्रवाई और आपदा प्रतिक्रिया एवं लचीलेपन का भी प्रमुखता से जिक्र किया गया है.

इसमें कहा गया है कि हम राष्ट्रों के वैश्विक समुदाय के रूप में अपने अंतरसंबंधों को समझते हैं. हम बहुपक्षीय सहयोग, वृहद नीति समन्वय, सतत विकास के लिए वैश्विक साझेदारियों और एकजुटता के माध्यम से यह सुनिश्चित करने की अपनी प्रतिबद्धता की पुष्टि करते हैं कि कोई भी पीछे न छूट जाए. 39 पन्नों के इस घोषणापत्र को शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेने वाले शासनाध्यक्षों ने आम सहमति से अपनाया. हालांकि, सम्मेलन में अनुपस्थित अमेरिका ने इसमें अड़चन डालने का प्रयास किया.

घोषणापत्र में बढ़ती भू-राजनीतिक और भू-आर्थिक प्रतिस्पर्धा एवं अस्थिरता, बढ़ते संघर्षों एवं युद्धों तथा बढ़ती असमानता के कारण वैश्विक आर्थिक अनिश्चितता और विखंडन के प्रभाव को स्वीकार किया गया है. इसमें कहा गया है कि हम इस चुनौतीपूर्ण राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक माहौल में साझा चुनौतियों का सामूहिक रूप से समाधान करने के लिए बहुपक्षीय सहयोग में अपने विश्वास को रेखांकित करते हैं.

घोषणापत्र में ‘‘अंतरराष्ट्रीय मानवीय कानून और संयुक्त राष्ट्र चार्टर तथा विवादों के शांतिपूर्ण समाधान के सिद्धांत सहित सभी अंतरराष्ट्रीय कानूनों के अनुरूप काम करने की अटूट प्रतिबद्धता'' की पुष्टि की गई है. घोषणापत्र में रूस, इजराइल और म्यांमा का नाम लिये बिना उनका स्पष्ट संदर्भ देते हुए कहा गया है कि संयुक्त राष्ट्र चार्टर के अनुरूप “सभी देशों को किसी भी देश की क्षेत्रीय अखंडता एवं संप्रभुता या राजनीतिक स्वतंत्रता का उल्लंघन करने और उनके क्षेत्रों का अधिग्रहण करने के लिए बल प्रयोग करने से बचना चाहिए. 

इसमें कहा गया है कि और देशों को अन्य के साथ दोस्ताना संबंध विकसित करने चाहिए, जिसमें जाति, लिंग, भाषा या धर्म के आधार पर भेदभाव किए बिना सभी के लिए मानवाधिकारों और मौलिक स्वतंत्रता को बढ़ावा देना और प्रोत्साहित करना शामिल है. घोषणापत्र में आपदा प्रतिक्रिया और लचीलेपन का भी जिक्र किया गया है.

इसमें कहा गया है, “हम उन देशों पर खासतौर पर ध्यान देने की आवश्यकता पर प्रकाश डालते हैं, जो पहले से ही आपदाओं से अत्यधिक प्रभावित हैं और जो अनुकूलन, आपदा न्यूनीकरण, तैयारी और पुनर्प्राप्ति की लागत वहन नहीं कर सकते, विशेष रूप से लघु द्वीप विकासशील देश (एसआईडीएस) और अल्प विकसित देश (एलडीसी). घोषणापत्र में उच्च स्तर के ऋण को समावेशी विकास की राह में सबसे बड़ी बाधाओं में से एक बताया गया है.

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इसमें कहा गया है कि कई विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में (उच्च स्तर का ऋण) बुनियादी ढांचा विकास, आपदाओं की स्थिति में बचाव की तैयारी करना, स्वास्थ्य देखभाल, शिक्षा और अन्य विकास आवश्यकताओं में निवेश करने की उनकी क्षमता को सीमित करता है. G20 नेताओं ने घोषणापत्र में स्वीकार किया कि ऊर्जा सुरक्षा राष्ट्रीय संप्रभुता, आर्थिक विकास, स्थिरता और वैश्विक समृद्धि के लिए मूलभूत आवश्यकता बनी हुई है.

उन्होंने कहा कि हम दक्षिण अफ्रीका की अध्यक्षता में जी20 के स्वैच्छिक ऊर्जा सुरक्षा टूलकिट की सराहना करते हैं, जो देशों के लिए अपनी राष्ट्रीय प्रणालियों को मजबूत करने के वास्ते एक व्यावहारिक जरिया है. जी20 नेताओं ने कहा कि यह टूलकिट विकासशील देशों के लिए विशेष प्रासंगिकता के साथ ऊर्जा प्रौद्योगिकियों और नवाचार, जोखिम पहचान, क्षेत्रीय अंतरसंबंध, बुनियादी ढांचा विकास, ऊर्जा की कमी, आपातकालीन तैयारी और कार्यबल विकास के लिए एकीकृत दृष्टिकोण अपनाने में मदद के वास्ते विकसित किया गया है।”

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घोषणापत्र में इस बात पर जोर दिया गया है कि सतत औद्योगिकीकरण, सतत विकास और ऊर्जा परिवर्तन की आधारशिला है. इसमें औद्योगिकीकरण के लाभों के न्यायसंगत बंटवारे का समर्थन करने के लिए सतत औद्योगिकीकरण केंद्रों के वास्ते उच्च-स्तरीय स्वैच्छिक सिद्धांतों का उल्लेख किया गया है. 

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