परिवार का कत्लेआम, 6 साल तक निर्वासन, फिर थामी पिता की विरासत... ऐसा रहा शेख हसीना का सियासी सफर

बांग्लादेश के संस्थापक शेख मुजीबुर रहमान की बेटी हसीना 2009 से सामरिक रूप से महत्वपूर्ण इस दक्षिण एशियाई देश की बागडोर संभाल रही थीं. उन्हें जनवरी में हुए 12वें आम चुनाव में लगातार चौथी बार प्रधानमंत्री चुना गया था.

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नई दिल्ली:

बांग्लादेश (Bangladesh) में लगातार चौथी बार और कुल मिलाकर पांचवीं बार प्रधानमंत्री निर्वाचित हुईं शेख हसीना को उनके समर्थक हमेशा एक ‘आयरन लेडी' के रूप में सराहते रहे हैं. लेकिन, अब उनके 15 साल के शासन का नाटकीय ढंग से अंत हो गया है. हसीना को एक समय सैन्य शासित बांग्लादेश को स्थिरता प्रदान करने के लिए जाना जाता है, लेकिन साथ ही उनके विरोधियों द्वारा उन्हें एक ‘निरंकुश' नेता बताकर उनकी आलोचना भी की जाती है. हसीना (76) सबसे लंबे समय तक शासन करने वाली दुनिया की कुछ चुनिंदा महिलाओं में से एक हैं.

बांग्लादेश के संस्थापक शेख मुजीबुर रहमान की बेटी हसीना 2009 से सामरिक रूप से महत्वपूर्ण इस दक्षिण एशियाई देश की बागडोर संभाल रही थीं. उन्हें जनवरी में हुए 12वें आम चुनाव में लगातार चौथी बार प्रधानमंत्री चुना गया. पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा जिया की मुख्य विपक्षी पार्टी बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) और उसके सहयोगियों ने चुनाव का बहिष्कार किया था.

सितंबर 1947 में तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) में जन्मीं हसीना 1960 के दशक के अंत में ढाका विश्वविद्यालय में अध्ययन के दौरान राजनीति में सक्रिय हो गईं. पाकिस्तानी सरकार द्वारा अपने पिता की कैद के दौरान उन्होंने उनके राजनीतिक संपर्क सूत्र के रूप में कार्य किया. बांग्लादेश को 1971 में पाकिस्तान से स्वतंत्रता मिलने के बाद उनके पिता मुजीबुर रहमान देश के राष्ट्रपति और फिर प्रधानमंत्री बने. हालांकि, अगस्त 1975 में मुजीबुर रहमान, उनकी पत्नी और उनके तीन बेटों की सैन्य अधिकारियों द्वारा उनके घर में ही हत्या कर दी गयी.

हसीना और उनकी छोटी बहन शेख रेहाना विदेश में होने के कारण इस हमले से बच गईं थीं. हसीना ने भारत में छह साल निर्वासन में बिताए, बाद में उन्हें उनके पिता द्वारा स्थापित पार्टी अवामी लीग का नेता चुना गया.

1996 में पहली बार बनीं प्रधानमंत्री
हसीना 1981 में स्वदेश लौट आईं और सेना द्वारा शासित देश में लोकतंत्र की मुखर  आवाज बनीं, जिसके कारण उन्हें कई बार नजरबंद रखा गया. बांग्लादेश में 1991 के आम चुनाव में हसीना के नेतृत्व वाली अवामी लीग बहुमत हासिल करने में विफल रही. उनकी प्रतिद्वंद्वी बीएनपी की खालिदा जिया प्रधानमंत्री बनीं. पांच साल बाद, 1996 के आम चुनाव में हसीना प्रधानमंत्री चुनी गईं. हसीना को 2001 के चुनाव में सत्ता से बाहर कर दिया गया था, लेकिन 2008 के चुनाव में वह भारी जीत के साथ सत्ता में लौट आईं. तब से खालिदा जिया के नेतृत्व वाली बीएनपी मुश्किल में फंसी हुई है.

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2004 में हुई थी हत्या की कोशिश
वर्ष 2004 में हसीना की हत्या की कोशिश की गई थी, जब उनकी रैली में एक ग्रेनेड विस्फोट हुआ था. हसीना ने 2009 में सत्ता में आने के तुरंत बाद 1971 के युद्ध अपराधों के मामलों की सुनवाई के लिए एक न्यायाधिकरण की स्थापना की. न्यायाधिकरण ने विपक्ष के कुछ वरिष्ठ नेताओं को दोषी ठहराया, जिसके कारण हिंसक विरोध प्रदर्शन हुए. इस्लामिस्ट पार्टी और बीएनपी की प्रमुख सहयोगी जमात-ए-इस्लामी को 2013 में चुनाव में भाग लेने से प्रतिबंधित कर दिया गया था. बीएनपी प्रमुख खालिदा जिया को भ्रष्टाचार के आरोप में 17 साल की जेल की सजा सुनाई गई थी.

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15 साल से लगातार बांग्लादेश की पीएम थी हसीना
बीएनपी ने 2014 के चुनाव का बहिष्कार किया था, लेकिन 2018 में इसमें शामिल हुई.  इस चुनाव के बारे में बाद में पार्टी नेताओं ने कहा कि यह एक गलती थी, और आरोप लगाया कि मतदान में व्यापक धांधली और धमकी दी गई थी. हसीना ने पिछले 15 सालों में दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक का नेतृत्व किया और दक्षिण एशियाई राष्ट्र के जीवन स्तर में सुधार किया. एक समाचार वेबसाइट ने कई साल पहले उन्हें ‘‘आयरन लेडी'' उपनाम दिया था और तब से पश्चिमी मीडिया द्वारा उन्हें संदर्भित करने के लिए इस शब्द का इस्तेमाल किया जाता है.

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भारत और चीन दोनों को ही साधकर चलती रही थी हसीना
हसीना ने दुनिया के सबसे बड़े शरणार्थी संकट से निपटने के लिए तारीफ बटोरी. यह वह दौर था जब 2017 में अपने देश में सेना की कार्रवाई के बाद उत्पीड़न से बचने के लिए पड़ोसी देश म्यांमा से भागकर आए दस लाख से अधिक रोहिंग्याओं ने बांग्लादेश में शरण ली थी. हसीना को भारत और चीन के प्रतिद्वंद्वी हितों के बीच कुशलतापूर्वक बातचीत करने का श्रेय भी दिया जाता है. चुनावों से पहले उन्हें दोनों प्रमुख पड़ोसियों और रूस का समर्थन प्राप्त हुआ.

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