शनि ग्रह से 23 मार्च को ‘गायब’ हो जाएगी रिंग, जानिए 14 साल पर ऐसा क्यों होता है?

शनि ग्रह हर 29.4 पृथ्वी वर्ष में सूर्य के चारों ओर एक परिक्रमा पूरी करता है. इस चक्कर के दौरान, पृथ्वी से देखने पर शनि की रिंग की दृश्यता बदल जाती है.

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शनि ग्रह से 23 मार्च को ‘गायब’ हो जाएगी रिंग

शनि ग्रह के चारों ओर नजर आने वाली रिंग (छल्ला) रविवार, 23 मार्च को गायब हो जाएगी. गायब हम इसलिए बोल रहे हैं क्योंकि अगर आप टेलीस्कोप लेकर शनि ग्रह को देखेंगे तो आपको यह रिंग नजर नहीं आएगी. साल 2009 के बाद पहली बार ऐसा हो रहा है. अब आप सवाल कर सकते हैं कि ऐसा होता क्यों है? टेंशन नॉट. हम हैं न.

पहले जान लीजिए कि शनि के चारो ओर ये रिंग क्यों नजर आती है. दरअसल शनि की ये रिंग मुख्य रूप से पानी की बर्फ के साथ-साथ चट्टानों और धूल के छोटे कणों से बनी होती हैं. ऐसा माना जाता है कि ये धूमकेतुओं, क्षुद्रग्रहों या टूटे हुए चंद्रमाओं के अवशेष हैं जो ग्रह के शक्तिशाली गुरुत्वाकर्षण से टूट गए थे और अब इसके चारों ओर एक रिंग के शेप में दिखते हैं.

हर 13-15 साल पर ऐसा क्यों होता है?

हर 13 से 15 साल में,  शनि ग्रह की रिंग हमारी लाइन ऑफ साइट के साथ पूरी तरह से एक लाइन में आ जाती है. यानी हम जिस एंगल से देखते हैं, ठीक उसी लाइन में सीधी खड़ी हो जाती है. इस वजह से ये रिंग पृथ्वी से हमें नजर नहीं आती. अगर और आसानी से समझना है तो मान लीजिए कि यह रिंग कोई सिक्का है और इसे आपने अपने आंखों के ठीक आगे ऐसे खड़ा किया है कि आपको इसकी गोल सतह नहीं बल्कि एक पतली सी लाइन सी दिख रही. ऐसा ही शनि की रिंग के साथ होता है.

यह बहुत कम देर की घटना होती है जिसे "रिंग प्लेन क्रॉसिंग" के रूप में जाना जाता है.

रविवार (23 मार्च) को भारतीय समयानुसार रात के 9.34 बजे यह घटना होगी. अफसोस की बात यह है कि भारत में हम ऐसा होता नहीं देख पाएंगे. स्पेस डॉट कॉम की रिपोर्ट के अनुसार मध्य-उत्तरी अक्षांशों (जिसमें भारत का उत्तरी भाग आता है) के लोगों के लिए स्थिति इसके देखने के अनुकूल नहीं होंगी. 

शनि ग्रह हर 29.4 पृथ्वी वर्ष में सूर्य के चारों ओर एक परिक्रमा पूरी करता है. इस चक्कर के दौरान, पृथ्वी से देखने पर शनि की रिंग की दृश्यता बदल जाती है क्योंकि ग्रह 27 डिग्री पर झुकी धुरी पर घूमता है. कभी-कभी रिंग झुकी होती हैं ताकि हम उन्हें अच्छी तरह से देख सकें, और कभी-कभी हम उन्हें किनारे से देखते हैं, जिससे उन्हें देखना या तो असंभव होता है या वे ग्रह की डिस्क को पार करने वाली एक पतली रेखा के रूप में दिखाई देती हैं.

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