राम सेतु अंतरिक्ष से कैसा दिखता है; कौन नजर आता है अब भी यहां...यूरोप और भारत के नजरिए में क्या है अंतर? 

भगवान राम के आदेश पर बना राम सेतु आज भी न सिर्फ मौजूद है, बल्कि अंतरिक्ष से भी साफ दिखाई देता है. इसके बाद में भारत और यूरोप की राय अलग-अलग है लेकिन वह भी इसे राम सेतु कहते जरूर हैं.

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राम सेतु का यह अद्भूत दृश्य अंतरिक्ष से खींचा गया है.

द यूरोपियन स्पेस एजेंसी (The European Space Agency) ने राम सेतु की एक फोटो जारी की है. राम सेतु को यूरोप के देशों में एडम ब्रिज कहा जाता है. यह सेतु भारत के दक्षिण-पूर्वी तट पर स्थित रामेश्वरम द्वीप और श्रीलंका में मन्नार द्वीप के बीच 48 किमी लंबा है. यह तस्वीर कॉपरनिकस सेंटिनल-2 से खींची गई है. यह पुल हिंद महासागर के प्रवेश द्वार मन्नार की खाड़ी (दक्षिण) को बंगाल की खाड़ी के प्रवेश द्वार पाक जलडमरूमध्य (उत्तर) से अलग करता है.

यूरोप के नजरिए में राम सेतु
द यूरोपीयन स्पेस एजेंसी बताती है कि राम सेतु का निर्माण कैसे हुआ इसके बारे में कई सिद्धांत हैं. हालांकि, भूगर्भिक साक्ष्यों (Geological Evidence) से पता चलता है कि ये चूना पत्थर की चट्टानें उस भूमि के अवशेष हैं, जो कभी भारत और श्रीलंका को जोड़ती थीं. रिकॉर्ड्स के अनुसार, यह प्राकृतिक पुल 15वीं शताब्दी तक पार किया जा सकता था. इसके बाद तूफानों के कारण यह धीरे-धीरे नष्ट हो गया. इस पर कुछ रेत के टीले सूखे हैं और, जैसा कि पानी के हल्के रंग से पता चलता है. यहां समुद्र बहुत उथला है और केवल 1-10 मीटर गहरा है.

कौन दिखता है यहां
मन्नार द्वीप लगभग 130 वर्ग किमी में फैला है और सड़क और रेलवे ब्रिज के जरिए श्रीलंका से जुड़ा हुआ है. राम सेतु के विपरीत दिशा में रामेश्वरम द्वीप (पंबन द्वीप के नाम से भी जाना जाता है) से 2 किमी लंबे पंबन ब्रिज द्वारा भारत पहुंचा जा सकता है. इस द्वीप के पश्चिमी किनारे पर पंबन शहर है उत्तरी किनारे रामेश्वरम है. एडम ब्रिज के दोनों खंड अपने-अपने देशों में संरक्षित राष्ट्रीय उद्यानों का हिस्सा हैं. रेत के टीले पक्षियों के लिए प्रजनन स्थल के रूप में काम करते हैं, जबकि मछली और समुद्री घास की कई प्रजातियां उथले पानी में पनपती हैं. एडम ब्रिज के आसपास समुद्री जीवन में डॉल्फिन, डुगोंग और कछुए शामिल हैं.

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भारत की मान्यता
भारत में राम सेतु को भगवान श्रीराम से जोड़ा जाता है. इसका जिक्र लाखों-हजारों साल पहले लिखे पुराणों और कई ग्रंथों में होता है. इन ग्रंथों और पुराणों के अनुसार, जब रावण माता सीता को छल से लंका (वर्तमान में श्रीलंका) ले गया तो भगवान राम सीता माता की तलाश में जुट गए. आखिर, भगवान हनुमान की मदद से उन्हें पता चला कि सीता माता लंका में हैं. इसके बाद भगवान राम लंका की ओर सुग्रीव की सेना के साथ चल दिए. रामेश्वरम के पास पहुंच कर जमीन खत्म हो गई तो उन्होंने समुद्र से लंका जाने के लिए रास्ता देने का अनुरोध किया. सागर ने तब बताया कि सुग्रीव की सेना में नल और नील नाम के दो सैनिक हैं. इन्हें भगवान विश्वकर्मा का आशीर्वाद प्राप्त है. यह पुल बना सकते हैं. इसके बाद नल और नील ने हर पत्थर पर श्रीराम लिखा और उसे समुद्र में फेंक दिया. श्रीराम लिखे पत्थर समुद्र में डूबने की बजाए तैरने लगे और देखते-देखते राम सेतु तैयार हो गया. इसके बाद भगवान राम सेना के साथ लंका पहुंच गए और रावण का वध कर माता सीता को वापस अयोध्या ले आए.

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