दूसरे विश्व युद्ध में जामनगर के महाराजा शरणार्थियों के लिए बने थे मसीहा, पोलैंड में PM मोदी ने ऐसे किया याद

प्रधानंत्री नरेंद्र मोदी गुरुवार को पोलैंड के प्रधानमंत्री डोनाल्ड टस्क और फिर राष्ट्रपति आंद्रेज डूडा से मुलाकात करेंगे. यह 45 साल में किसी भारतीय प्रधानमंत्री की पहली पोलैंड यात्रा है. इससे पहले 1979 में मोरारजी देसाई वहां गए थे.

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वारसॉ:

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) यूरोपीय देश पोलैंड के दौरे पर हैं. यह पिछले 45 साल में किसी भारतीय प्रधानमंत्री की पहली पोलैंड यात्रा है. दूसरे विश्व युद्ध (Second World War)को लेकर पोलैंड और भारत का एक ऐतिहासिक संबंध है. दूसरे विश्व युद्ध के दौरान जामनगर (गुजरात) के महाराजा जाम साहेब दिग्विजयसिंहजी (Jamnagar Maharaja Digvijaysinghji) ने पोलैंड के 600 से ज्यादा लोगों को शरण दी थी. भारतीय महाराजा के इस योगदान को पोलैंड आज भी याद करता है और भारत के प्रति अपना शुक्रिया अदा करता है. पोलैंड यात्रा के दौरान पीएम मोदी ने वरसॉ स्थित जाम साहब ऑफ नवानगर मेमोरियल जाकर जाम साहेब को श्रद्धांजलि दी. गुजरात के मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर इसकी तस्वीरें शेयर की हैं.

गुजरात के सीएम भूपेंद्र पटेल ने X पर पोस्ट किया, "भारत-पोलैंड संबंधों को आगे बढ़ाने में गुजरात की विशेष भूमिका इतिहास में दर्ज है. दूसरे विश्व युद्ध के दौरान जामनगर के महाराजा जाम साहेब दिग्विजयसिंहजी ने गुजरात में 600 से ज्यादा पोलिश शरणार्थी बच्चों को आश्रय दिया था. जाम साहेब दिग्विजयसिंहजी की दयालुता को पोलैंड आज भी याद करता है. पोलैंड की राजधानी वारसॉ में जाम साहेब के नाम पर गुड महाराजा स्क्वायर और दूसरे प्रमुख स्मारक हैं. पोलैंड यात्रा के दौरान बुधवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जाम साहेब को श्रद्धांजलि दी."

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पोलैंड में जाम साहेब के नाम पर सड़क और स्कूल
पोलैंड ने अपनी राजधानी वारसॉ में एक चौराहे का नाम जामनगर के महाराजा दिग्विजयसिंहजी पर रखा है. इसे 'स्क्वायर ऑफ द गुड महाराजा' के नाम से जाना जाता है. यही नहीं, पोलैंड ने जामनगर के महाराजा के नाम पर एक स्कूल भी डेडिकेट किया है. पोलैंड ने जामनगर के महाराजा जाम साहेब दिग्विजयसिंहजी को मरणोपरांत पोलैंड गणराज्य के कमांडर 'क्रॉस ऑफ द ऑर्डर ऑफ मेरिट' से सम्मानित किया गया. 

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दूसरे विश्व युद्ध में पोलैंड में क्या हुआ था?
जर्मनी के तानाशाह हिटलर ने 1939 में सोवियत संघ के साथ मिलकर पोलैंड पर आक्रमण कर दूसरे विश्व युद्ध की शुरुआत कर दी, तो पोलैंड के सैनिकों ने 500 महिलाओं और करीब 200 बच्चों को एक शिप पर बिठाकर समुद्र में छोड़ दिया. शिप के कैप्टन से कहा गया कि इन्हें किसी भी देश में ले जाओं, जो भी इन्हें शरण दें. फिर यह शिप कई देशों में गई, लेकिन किसी ने भी इन्हें शरण नहीं दी. आखिर में शिफ गुजरात के जामनगर के तट पर आई. इसके बाद जामनगर के तत्कालीन महाराजा जाम साहेब दिग्विजय सिंह ने सभी को पनाह दी. 

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महाराजा ने शरणार्थियों के लिए खोल दिए महल के द्वार
महाराजा ने उन सभी के लिए अपने महल के द्वार खोल दिए. कहा जाता है कि 9 साल तक महाराजा जाम साहेब ने पोलैंड के सभी शरणार्थियों की देखभाल की. रियासत के सैनिक स्कूल में सभी बच्चों की पढ़ाई का इंतजाम भी कराया. इन्हीं शरणार्थियों में एक बच्चा बड़ा होकर पोलैंड में पीएम भी बने. 

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