10 देशों ने सुनाया, बाकी कसर PM मोदी ने पूरी कर दी, जानिए कैसे आसियान में चिढ़कर रह गया चीन

आसियान शिखर सम्मेलन में सभी सदस्य देशों ने दक्षिण चीन सागर में चीन की आक्रमक और विस्तारवादी नीति की कड़े शब्दों में निंदा की.

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नई दिल्ली:

भारत, चीन की चारों तरफ से घेराबंदी करने में लगा है. यही वजह है कि पहले क्वाड और अब आसियान शिखर सम्मेलन में भी भारत चीन को सबक सीखाता नजर आया. इस शिखर सम्मेलन में भारत के अलावा शामिल हुए अन्य देशों ने भी चीन की दक्षिण चीन सागर को लेकर नीति की कड़ी निंदा की है. इस सम्मेलन में शामिल सभी दस देशों ने चीन की विस्तारवादी नीति की आलोचना करते हुए उसे खरी-खरी सुनाई. लाओस की राजधानी वियनतीयन में आयोजित इस सम्मेलन में दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों के संगठन के सभी 10 सदस्य देशों ने हिस्सा लिया. इस दौरान खास तौर पर सभी देश इस क्षेत्र में चीन की बढ़ती आक्रामकता से असहज दिखे. सभी ने चीन की इस नीति की निंदा भी की. 

जब सदस्य देशों ने चीन को सुनाया

इस सम्मेलन के दौरान विवादित दक्षिण चीन सागर में झड़पों के बाद दक्षिण पूर्व एशियाई नेताओं ने अंतरराष्ट्रीय कानून का सम्मान करने के लिए चीन पर दबाव बढ़ा दिया है. इस सम्मेलन के दौरान चीनी प्रधानमंत्री ली कियांग अलग-थलग ही दिखे. इस बैठक के दौरान उन्होंने अपने क्षेत्रीय मामलों में हस्तक्षेप के लिए "बाहरी ताकतों" को दोषी ठहराया. ये बैठक उस समय आयोजित किया जब कुछ दिन पहले ही चीन और आसियान सदस्यों फिलीपींस और वियतनाम के बीच समुद्र में हिंसक टकराव हुआ था.

उस टकराव का असर सम्मेलन के दौरान भी दिखा. सम्मेलन के दौरान फिलीपीन के राष्ट्रपति फर्डिनेंड मार्कोस जूनियर ने कहा कि यह अफसोसजनक है कि चीन की गतिविधियों के कारण दक्षिण चीन सागर में समग्र स्थिति तनावपूर्ण और अपरिवर्तित बनी हुई है. वहीं, नाम न छापने की शर्त पर एक आसियान अधिकारी के अनुसार, ली ने यह कहकर जवाब दिया कि दक्षिण चीन सागर "एक साझा घर" है और चीन का अपनी संप्रभुता की रक्षा करने का दायित्व है. हमें यह समझना चाहिए कि हमारा विकास भी कुछ अस्थिर और अनिश्चित कारकों का सामना कर रहा है. बाहरी ताकतें अक्सर हस्तक्षेप करती हैं और एशिया में गुट टकराव और भू-राजनीतिक संघर्ष शुरू करने की कोशिश करती हैं. 

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पीएम मोदी ने दिया बड़ा बयान

पीएम मोदी ने भी इस सम्मलेन में चीन का नाम लिए बगैर उसे नसीहत दे दिया है. पीएम मोदी ने अपने बयान में कहा कि हम शांतिप्रिय राष्ट्र हैं,जो एक-दूसरे की राष्ट्रीय अखंडता और संप्रभुता का सम्मान करते हैं और हम अपने युवाओं के लिए उज्ज्वल भविष्य सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध हैं. मेरा सबका मानना ​​है कि 21वीं सदी 'एशियाई सदी' है. आज, जब दुनिया के कई हिस्सों में संघर्ष और तनाव है,भारत और आसियान के बीच दोस्ती, समन्वय, संवाद और सहयोग अत्यंत महत्वपूर्ण है.

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उन्होंने आगे कहा कि इस सम्मेलन के दौरान नेताओं ने कानूनी ढांचे के रूप में अनक्लोस के महत्व को रेखांकित किया जिसके भीतर महासागरों और समुद्रों में सभी गतिविधियों को अंजाम दिया जाना चाहिए, और समुद्री क्षेत्र में राष्ट्रीय, क्षेत्रीय और वैश्विक कार्रवाई के आधार के रूप में इसके रणनीतिक महत्व को रेखांकित किया गया.पीएम मोदी ने अपने संबोधन के दौरान साझा लोकतांत्रिक मूल्यों पर आधारित विश्वास और विश्वास, संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता में मजबूत विश्वास और कानून के शासन और संयुक्त राष्ट्र चार्टर के सिद्धांतों के प्रति साझा प्रतिबद्धता" के माध्यम से क्षेत्र में शांति, स्थिरता और समृद्धि का आह्वान किया.

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संयुक्त बयान से चीन पर दबाव बनाने की तैयारी

इस सम्मेलन के खत्म होने के बाद एक संयुक्त बयान भी जारी किया गया. इस बयान में कहा गया है कि ये हम सबका दायित्व है कि हम क्षेत्र में शांति, स्थिरता, समुद्री सुरक्षा और सुरक्षा, नेविगेशन की स्वतंत्रता और समुद्र के अन्य वैध उपयोग को बनाए रखने और बढ़ावा देने पर ध्यान केंद्रीत करें. इस संबंध में, हम दक्षिण चीन सागर में संबंधित देशों के आचरण पर घोषणा के पूर्ण और प्रभावी कार्यान्वयन का समर्थन करते हैं और दक्षिण चीन सागर में एक प्रभावी और ठोस आचार संहिता के शीघ्र निष्कर्ष की आशा करते हैं. जो 1982 के अनक्लोस सहित अंतरराष्ट्रीय कानून के अनुरूप होना चाहिए.इस सम्मेलन के दौरान डिजिटल परिवर्तन को आगे बढ़ाने पर एक अलग संयुक्त बयान जारी करते हुए, नेताओं ने एक नई आसियान-भारत कार्य योजना (2026-2030) बनाने पर सहमति व्यक्त की, जो आसियान-भारत साझेदारी की पूरी क्षमता को साकार करने में दोनों पक्षों का मार्गदर्शन करेगी.

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