पाकिस्तान की नेशनल असेंबली में अविश्वास प्रस्ताव खारिज होने और संसद को भंग कर चुनाव कराए जाने के फैसले के बीच सुप्रीम कोर्ट की चेतावनी सामने आई है. सुप्रीम कोर्ट ने रविवार को सियासी उथल-पुथल के बीच सभी सरकारी संस्थाओं को कोई भी ‘असंवैधानिक' कदम उठाने से बचने का आदेश दिया. पाकिस्तान के चीफ जस्टिस उमर अता बंदियाल ने कहा कि नेशनल असेंबली को भंग करने को लेकर प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति के सभी आदेश और कदम अदालत के आदेश के अधीन होंगे. जस्टिस बंदियाल ने साथ ही इस हाई-प्रोफाइल मामले की सुनवाई एक दिन के लिए स्थगित कर दी. उल्लेखनीय है कि पाकिस्तान के राष्ट्रपति आरिफ अल्वी ने देश के प्रधानमंत्री इमरान खान की सिफारिश पर नेशनल असेंबली को भंग कर दिया. उसके पहले नेशनल असेंबली के डिप्टी स्पीकर कासिम सूरी ने प्रधानमंत्री इमरान खान के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव को खारिज कर दिया था. खान ने संसद के निचले सदन 342 सदस्यीय नेशनल असेंबली में प्रभावी तौर पर बहुमत खो दिया था. चीफ जस्टिस ने इस हालात का संज्ञान लिया और पीठ ने मामले में प्रारंभिक सुनवाई की तथा राष्ट्रपति अल्वी और नेशनल असेंबली के उपाध्यक्ष सूरी सहित सभी प्रतिवादियों को नोटिस जारी किए.
शीर्ष कोर्ट ने सभी पक्षों को कोई भी असंवैधानिक कदम उठाने से बचने का आदेश दिया और मामले की सुनवाई सोमवार तक के लिए स्थगित कर दी. चीफ जस्टिस ने कहा कि नेशनल असेंबली को भंग करने के संबंध में प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति द्वारा शुरू किए गए सभी आदेश और कदम अदालत के आदेश के अधीन होंगे. विपक्षी दलों ने शीर्ष न्यायालय से हस्तक्षेप करने का अनुरोध किया था और सदन में विपक्ष के नेता शहबाज शरीफ ने नेशनल असेंबली को भंग किए जाने को चुनौती देने की अपनी पार्टी के फैसले की घोषणा की थी. विपक्ष ने हा था कि हम डिप्टी स्पीकर के फैसले और प्रधानमंत्री की सलाह को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने जा रहे हैं.
सुप्रीम कोर्ट बार के अध्यक्ष अहसान भून ने कहा कि प्रधानमंत्री और उपाध्यक्ष की कार्रवाई संविधान के खिलाफ है. यह संविधान के अनुच्छेद 6 के तहत उन पर देशद्रोह का मुकदमा चलाया जाना चाहिए. पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (पीपीपी) ने भी एक याचिका दायर कर अदालत से नेशनल असेंबली भंग करने के साथ-साथ उपाध्यक्ष (डिप्टी स्पीकर) के फैसले को असंवैधानिक घोषित करने का अनुरोध किया है. अविश्वास प्रस्ताव को खारिज कर दिए जाने के बाद यह संकट उत्पन्न हुआ.
इससे प्रधानमंत्री इमरान खान को संसद को भंग करने के लिए देश के राष्ट्रपति को एक सिफारिश करने का मौका मिल गया, जो वह अविश्वास प्रस्ताव पर मतदान का कोई परिणाम आने तक नहीं कर सकते थे. संयुक्त विपक्ष 8 मार्च को अविश्वास प्रस्ताव लेकर आया था. देश की राजनीतिक स्थिति तब तक विपक्ष के पक्ष में थी जब तक कि खान यूक्रेन पर एक स्वतंत्र विदेश नीति का अनुपालन करने को लेकर अमेरिका द्वारा उन्हें सत्ता से बेदखल करने की साजिश की बात लेकर नहीं आए थे.
संवैधानिक अधिवक्ता सलमान अकरम राजा ने कहा, ‘डिप्टी स्पीकर का कदम और नेशनल असेंबली को भंग करने के लिए प्रधानमंत्री की सलाह असंवैधानिक है. पूरे विवाद पर उच्चतम न्यायालय फैसला करेगा. उन्होंने कहा, ‘मूल मुद्दा डिप्टी स्पीकर के फैसले की वैधता का निर्धारण करना है. अगर शीर्ष अदालत कहती है कि फैसला कानूनों के अनुसार है, तो प्रधानमंत्री की सलाह भी कानून के अनुसार होगी. भारत में सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता और पूर्व मंत्री अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि प्रधानमंत्री इमरान खान का कदम ‘संवैधानिक रूप से गलत' है. उन्होंने ट्वीट किया, ‘किसी भी ‘कॉमन लॉ सिस्टम' में किसी भी डिप्टी स्पीकर के पास अविश्वास प्रस्ताव को राष्ट्रीय सुरक्षा के मद्देनजर खारिज करने की शक्ति नहीं है.'