कश्मीर के पहलगाम में पर्यटकों पर हुए आतंकी हमले में 26 लोगों की मौत हो गई और 20 से ज्यादा लोग घायल हो गए. एक खूबसूरत घास का मैदान, जहां परिवार आराम करते थे, उनके प्रियजनों के लिए कब्रगाह बन गया. लश्कर-ए-तैयबा (एलईटी) की शाखा माने जाने वाले द रेजिस्टेंस फ्रंट (टीआरएफ) ने हमले की जिम्मेदारी ली है जिसको पाकिस्तान का समर्थन प्राप्त है. भले ही पाकिस्तान ने किसी तरह का हाथ होने से इनकार किया है लेकिन यह स्क्रिप्ट जाना-पहचाना है.
लेकिन इस लेटेस्ट ट्रेजडी के पीछे दशकों पुरानी सच्चाई छिपी है, जिसे अमेरिकी खुफिया विभाग ने आते देखा था. 1993 में, CIA ने एक खूफिया असेसमेंट को दुनिया के सामने ला दिया था. इसके अंदर यह सोच दबी हुई है कि पाकिस्तान भारत से डरता है- न केवल आर्थिक या सैन्य रूप से, बल्कि अपने वजूद के लिए भी भारत को खतरा मानता है. इस डॉक्यूमेंट का नाम राष्ट्रीय खुफिया अनुमान (National Intelligence Estimate (NIE) था और इसने भारत-पाकिस्तान के रिश्ते का अध्ययन किया और एक निष्कर्ष पेश किया: यदि युद्ध छिड़ता है, तो संभवतः इसकी शुरुआत कश्मीर जैसी किसी चीज से होगी, और पाकिस्तान शुरू से ही बैकफुट पर रहेगा.
1993 में क्या भविष्यवाणी की गई थी
NIE को दरअसल CIA के अनुभवी ब्रूस रिडेल की लीडरशिप में तैयार किया गया था. यह ऐसे समय में आया था जब भारत ने हाल ही में बाबरी मस्जिद (1992) का विध्वंस देखा था, और पाकिस्तान आंतरिक अस्थिरता से जूझ रहा था. परमाणु हथियार एक मूक खतरा था, जिसका अभी तक परीक्षण नहीं किया गया है, लेकिन मान लिया गया था कि वास्तविक है.
डॉक्यूमेंट में कुछ महत्वपूर्ण बातें भी लिखी गई थीं- न तो भारत और न ही पाकिस्तान युद्ध चाहता था. लेकिन भारत की बढ़ती ताकत से बौना महसूस कर रहा पाकिस्तान शायद डर के कारण कार्रवाई करेगा. इसमें कश्मीर में प्रॉक्सी समूहों का समर्थन करना या भारत के प्रभाव को कम करने के लिए आतंकवादियों के साथ अनौपचारिक गठबंधन बनाना शामिल था.
इस रिपोर्ट में टीआरएफ का नाम नहीं था क्योंकि तब वह समूह अस्तित्व में नहीं था. लेकिन इसने "कश्मीर को आजाद कराने" के लिए भारत विरोधी आतंकवादियों को हथियार और ट्रेनिंग देने की पाकिस्तान की रणनीति के बारे में चेतावनी दी.
CIA के इस रिपोर्ट के मूल में इस्लामाबाद के लिए एक असहज करने वाला सच था. शक्ति संतुलन पहले ही भारत के पक्ष में झुक चुका था. आर्थिक, सैन्य और कूटनीतिक रूप से, नई दिल्ली बहुत आगे बढ़ रही थी, और पाकिस्तान उसकी बराबरी नहीं कर सका. अंतर सिर्फ गोला-बारूद के जखीरे में नहीं था; यह दोनों देशों की स्थिरता में भी था.
अपनी सभी आंतरिक चुनौतियों के बावजूद भारत में स्थिर सरकारें और बढ़ती अर्थव्यवस्था थी. उस समय भारत का नेतृत्व प्रधान मंत्री पीवी नरसिम्हा राव कर रहे थे, और डॉ. मनमोहन सिंह वित्त मंत्री थे. वहीं पाकिस्तान सैन्य शासन, राजनीतिक संकट और आर्थिक टूटन के बीच झूल रहा था. उसकी कश्मीर नीति को विश्वास नहीं, डर ने प्रेरित किया.
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