निहोन हिदान्क्यो : जानिए जापान के इस संगठन को क्यों मिला शांति का नोबेल, क्या करता है काम

निहोन हिदान्क्यो ने परमाणु हथियारों के उपयोग के विनाशकारी मानवीय परिणामों को लेकर व्यापक काम किया है. संगठन का आदर्श वाक्य है- "अब और हिबाकुशा नहीं"

विज्ञापन
Read Time: 2 mins
नई दिल्ली:

द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जापान के हिरोशिमा और नागासाकी शहरों पर हुए अमेरिकी परमाणु बम हमलों के पीड़ितों के संगठन निहोन हिदान्क्यो को इस साल का, शांति का नोबेल पुरस्कार दिया जाएगा. निहोन हिदान्क्यो को परमाणु शस्त्रों के खिलाफ उनके किए गए कामों के लिए ये अवार्ड दिया जाएगा. आइए आपको बताते हैं कि ये संगठन क्या है और कैसे काम करता है.

निहोन हिदान्क्यो की स्थापना 1956 में की गई थी. परमाणु हथियारों से मुक्त दुनिया बनाने के लिए ये लगातार काम कर रहा है. संगठन का कहना है कि हिरोशिमा और नागासाकी की तबाही के दौरान लोगों की हालत को लंबे समय तक दुनिया से छुपाया गया और उसमें बचे लोगों को उपेक्षित रखा गया. अब दोबारा कभी भी परमाणु हथियारों का इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए.

प्रशांत क्षेत्र में 1956 के दौरान परमाणु हथियार के पीड़ितों के साथ स्थानीय हिबाकुशा संघों ने द जापान कन्फेडरेशन ऑफ ए- और एच-बम सफ़रर्स ऑर्गनाइजेशन का गठन किया. जापानी भाषा में इस नाम को छोटा करके निहोन हिदान्क्यो कर दिया गया. ये जमीनी स्तर का आंदोलन जल्द ही जापान में सबसे बड़ा और व्यापक प्रतिनिधि हिबाकुशा संगठन बन गया.

निहोन हिदान्क्यो के दो मुख्य उद्देश्य हैं. पहला जापान के बाहर रहने वाले लोगों सहित सभी हिबाकुशा के सामाजिक और आर्थिक अधिकारों को बढ़ावा देना. दूसरा ये सुनिश्चित करना कि किसी को भी फिर से हिबाकुशा में आई आपदा का शिकार ना होना पड़े.

व्यक्तिगत गवाहों के बयानों के माध्यम से, निहोन हिदान्क्यो ने परमाणु हथियारों के उपयोग के विनाशकारी मानवीय परिणामों को लेकर व्यापक काम किया है. निहोन हिदान्क्यो का आदर्श वाक्य है- "अब और हिबाकुशा नहीं"

अगस्त 1945 में जापान के हिरोशिमा और नागासाकी पर गिराए गए दो अमेरिकी परमाणु बमों के कारण लगभग 120,000 लोग मारे गए थे. अनुमान है कि 650,000 लोग इस हमले में घायल हुए या किसी तरह जिंदा बच सके. इन जीवित बचे लोगों को जापानी भाषा में हिबाकुशा कहा जाता है.

बता दें कि नॉर्वेजियन नोबेल समिति को इस साल के नोबेल शांति पुरस्कार के लिए कुल 286 उम्मीदवारों के आवेदन मिले थे. पिछली बार यानी साल 2023 में ईरानी पत्रकार और ह्यूमन राइट्स कार्यकर्ता नरगिस मोहम्मदी को शांति के लिए नोबेल पुरस्कार दिया गया था.

Featured Video Of The Day
PM Modi Guyana Visit: Sudhanshu Trivedi के निशाने पर कौन है?