विद्रोह से विद्रोह तक: नेपाल में PM की कुर्सी छोड़ 'लापता' केपी शर्मा ओली की पूरी कहानी

ओली फरवरी 2018 में दूसरी बार प्रधानमंत्री बने, जब सीपीएन (एकीकृत मार्क्सवादी-लेनिनवादी) और 'प्रचंड' के नेतृत्व वाली सीपीएन (माओइस्ट सेंटर) के गठबंधन ने 2017 के चुनावों में प्रतिनिधि सभा में बहुमत हासिल किया था.

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  • नेपाल के PM के. पी. शर्मा ओली ने तीसरी बार सत्ता संभालते हुए 2024 में राजनीतिक स्थिरता की उम्मीद जताई थी
  • सोशल मीडिया प्रतिबंध और भ्रष्टाचार के खिलाफ युवाओं के विरोध के कारण ओली को PM पद से इस्तीफा देना पड़ा
  • विरोध प्रदर्शन में पुलिस की गोलीबारी में कम से कम उन्नीस लोग मारे गए और सैकड़ों घायल हुए हैं
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काठमांडू:

नेपाल के Gen Z ने जिन केपी शर्मा ओली को प्रधानमंत्री की कुर्सी से उतार दिया, वह इस वक्त कहां हैं? यह सबसे बड़ा सवाल बना हुआ है. नेपाल में सरकार फरार है. सेना हालात को संभालने में जुटी है. नेपाल इस वक्त कर्फ्यू और बंदिशों के बीच बंद है. दो दिन पहले नेपाल में सबकुछ सामान्य था. पीएम ओली चीन दौरे से लौटे थे. लेकिन सोशल मीडिया के बैन से उठी चिंगारी ने सबकुछ जला दिया. सुप्रीम कोर्ट, संसद, पीएम आवास, ऐतिहासिक सिंह दरबार... सबकुछ. आखिर कौन जिम्मेदार है. पढ़िए 17 साल में 14 सरकार देख चुके नेपाल ओर पीएम ओली पूरी कहानी...    

सबसे पहले नेपाल की वे 3 तस्वीरें देखिए, जो लंबे समय तक उसे दर्द देती रहेंगी 

पहली तस्वीरः नेपाल का सिंह दरबार

यह नेपाल का ऐतिहासिक सिंह दरबार है. नेपाल इस पर नाज करता था. इसी इमारत से नेपाल की सरकार चला करती थी. इसे जला दिया गया.

दूसरी तस्वीर: नेपाल का सुप्रीम कोर्ट. बुधवार को प्रदर्शनकारियों ने न्याय के मंदिर को भी जला दिया. 

नेपाल का सुप्रीम कोर्ट

तीसरी तस्वीरः नेपाल की संसद. इसे भी आग के हवाले कर दिया गया.

नेपाल की संसद

केपी शर्मा ओली के अर्श से फर्श तक पहुंचने की कहानी

नेपाल में केपी शर्मा ओली ने 2024 में तीसरी बार सत्ता संभालते समय देश में राजनीतिक स्थिरता आने की उम्मीद जगाई थी लेकिन सोशल मीडिया पर पाबंदी और भ्रष्टाचार के खिलाफ युवाओं के जबर्दस्त विरोध प्रदर्शन के कारण प्रधानमंत्री पद से उन्हें इस्तीफा देने के लिए मजबूर होना पड़ा. ओली (73) को चीन समर्थक रुख रखने के लिए जाना जाता है. उनके इस्तीफे ने नेपाल को एक बार फिर राजनीतिक अस्थिरता की ओर धकेल दिया है, जहां पिछले 17 वर्षों में 14 सरकारें रही हैं. अपने मित्र रहे पुष्प कमल दाहाल 'प्रचंड' का साथ छोड़ने और प्रतिद्वंद्वी से मित्र बने शेर बहादुर देउबा के साथ हाथ मिलाने के बाद जुलाई 2024 में ओली सत्ता में आए थे.

देउबा प्रतिनिधि सभा में सबसे बड़ी पार्टी - नेपाली कांग्रेस - का नेतृत्व कर रहे थे. सीपीएन-यूएमएल के अध्यक्ष ओली ने 'प्रचंड' को छोड़कर नेपाली कांग्रेस के साथ गठबंधन सरकार बनाने के अपनी पार्टी के फैसले का बचाव करते हुए कहा था कि देश में राजनीतिक स्थिरता और विकास बनाए रखने के लिए यह आवश्यक है.

14 साल जेल में बिताए

ओली, जो किशोरावस्था में एक छात्र कार्यकर्ता के रूप में राजनीति में शामिल हुए और अब समाप्त हो चुकी राजशाही का विरोध करने के लिए 14 साल जेल में बिताए थे, अक्टूबर 2015 में पहली बार नेपाल के प्रधानमंत्री बने थे. उन्होंने नेपाल के आंतरिक मामलों में कथित हस्तक्षेप के लिए भारत की सार्वजनिक रूप से आलोचना की और नई दिल्ली पर उनकी सरकार गिराने का आरोप लगाया. हालांकि, उन्होंने दूसरे कार्यकाल के लिए पदभार ग्रहण करने से पहले आर्थिक समृद्धि की राह पर आगे बढ़ने को लेकर भारत के साथ साझेदारी करने का वादा किया था.

ओली फरवरी 2018 में दूसरी बार प्रधानमंत्री बने, जब सीपीएन (एकीकृत मार्क्सवादी-लेनिनवादी) और 'प्रचंड' के नेतृत्व वाली सीपीएन (माओइस्ट सेंटर) के गठबंधन ने 2017 के चुनावों में प्रतिनिधि सभा में बहुमत हासिल किया था. उनकी जीत के बाद, मई 2018 में दोनों दलों का औपचारिक रूप से विलय हो गया था.

अपने दूसरे कार्यकाल के दौरान, ओली ने दावा किया था कि नेपाल के राजनीतिक मानचित्र को फिर से तैयार करने और उसमें रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण तीन भारतीय क्षेत्रों (लिपुलेख, कालापानी और लिम्पियाधुरा) को उनकी सरकार द्वारा शामिल किये जाने के बाद, उन्हें अपदस्थ करने के प्रयास किये गए.

22 फरवरी 1952 को पूर्वी नेपाल के तेरहथुम जिले में जन्मे ओली, मोहन प्रसाद और मधुमाया ओली की सबसे बड़ी संतान हैं. उनकी मां की चेचक से मृत्यु के बाद उनकी दादी ने उनका पालन-पोषण किया था. उन्होंने नौवीं कक्षा में ही स्कूल छोड़ दिया और राजनीति में आ गए थे. हालांकि, बाद में उन्होंने जेल से मानविकी विषयों में इंटरमीडिएट की पढ़ाई की. उनकी पत्नी, रचना शाक्य, भी एक कम्युनिस्ट कार्यकर्ता हैं.

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ओली ने 1966 में राजा के प्रत्यक्ष शासन के तहत निरंकुश पंचायत प्रणाली के खिलाफ लड़ाई में शामिल होकर एक छात्र कार्यकर्ता के रूप में अपना राजनीतिक जीवन शुरू किया था. वह फरवरी 1970 में नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी में शामिल हुए थे. उसी वर्ष, उन्हें पंचायत सरकार ने पहली बार गिरफ़्तार किया था.

1971 में, उन्होंने झापा विद्रोह का नेतृत्व संभाला, जिसकी शुरुआत जिले के जमींदारों का सिर कलम करके की गई थी. ओली नेपाल के उन गिने-चुने राजनीतिक नेताओं में से एक हैं जिन्होंने कई साल जेल में बिताए. वह 1973 से 1987 तक लगातार 14 साल जेल में रहे.

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जेल से रिहा होने के बाद, वह यूएमएल की केंद्रीय समिति के सदस्य बने और 1990 तक लुम्बिनी क्षेत्र के प्रभारी रहे. पंचायत शासन को गिराने वाले वर्ष 1990 के लोकतांत्रिक आंदोलन के बाद ओली ने देश में लोकप्रियता हासिल की थी.

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