- केन्या में एक साल बाद फिर से बड़े पैमाने पर सरकार विरोधी प्रदर्शन हुए. मार्च के दौरान हिंसा- 8 लोगों की मौत.
- सरकार ने विरोध प्रदर्शन की लाइव कवरेज रोकने के लिए मीडिया को आदेश दिए.
- राष्ट्रपति रूटो की आर्थिक नीतियों से जनता में असंतोष बढ़ रहा है.
- पुलिस पर बर्बरता का आरोप लगा है.
Kenya Violence Explained: पूर्वी अफ्रीका में बसे देश केन्या में हिंसक बवाल मचा हुआ है. सरकार विरोधी प्रदर्शन के बेहद हिंसक होने के एक साल पूरे होने पर बुधवार को केन्या में फिर से मार्च निकाला गया था. एक साल बाद फिर वक्त ने खुद को दोहराया, विरोध प्रदर्शन एक बार फिर हिंसक हो गया जिसमें आठ लोगों की मौत हो गई और कम से कम 400 लोग घायल हो गए. विरोध प्रदर्शन के बीच प्रदर्शनकारियों और पुलिस के बीच झड़प हो गई, पुलिस ने नैरोबी की सड़कों पर आंसू गैस छोड़ी और सरकारी इमारतों को कंटीले तारों से बंद कर दिया.
इस एक्सप्लेनर में हम आपको एकदम आसान शब्दों में इन सवालों का जवाब देंगे:
- केन्या में बुधवार को हुआ क्या?
- सरकार ने हिंसा के बाद क्या किया?
- पुलिस पर क्यों लग रहे गंभीर आरोप?
- राष्ट्रपति के खिलाफ जनता क्यों नाराज है?
आखिर हुआ क्या?
एक साल पहले केन्या में टैक्स बढ़ाने के खिलाफ बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हुआ था. हिंसा तब और बढ़ गई जब 25 जून 2024 को एक विशाल भीड़ ने संसद पर धावा बोल दिया था. जमकर हिंसा हुई जिसमें कम से कम 60 लोग मारे गए थे. अब इसके एक साल होने पर उसकी याद में 25 जून 2025 को मार्च बुलाई गई थी.
25 वर्षीय एंथनी नैरोबी की सड़को पर हिंसा के बीच झंडे बेच रहा था. वो अपना पूरा नाम नहीं बताना चाहता था. उसने कहा, "हम पुलिस की बर्बरता के खिलाफ, सरकार द्वारा उत्पीड़न के खिलाफ, अत्यधिक टैक्स के खिलाफ, इस देश में जो कुछ भी गलत हो रहा है उसके खिलाफ मार्च कर रहे हैं."
अधिकार समूहों के एक गठबंधन ने कहा कि 23 काउंटियों में विरोध प्रदर्शन के दौरान आठ लोगों की मौत हो गई. इस गठबंधन में एमनेस्टी इंटरनेशनल और केन्याई मेडिकल एसोसिएशन शामिल हैं. इसने एक बयान में कहा, "कम से कम 400 अन्य लोगों का इलाज किया गया, जिनमें से 83 को गंभीर चोटों के कारण रेफर किया गया."
नैरोबी से लगभग 100 किलोमीटर दूर एक शहर माटु में एक हॉस्पिटल के सूत्र ने पहले एएफपी को बताया था कि वहां बंदूक की गोली से दो लोगों की मौत हो गई थी, स्थानीय मीडिया ने बताया कि पुलिस ने गोलीबारी की थी.
सरकार ने हिंसा के बीच क्या किया?
सरकार ने टीवी और रेडियो स्टेशनों को विरोध प्रदर्शन की लाइव कवरेज रोकने का आदेश दिया. इस विरोध-प्रदर्शन ने बंदरगाह शहर मोम्बासा सहित राजधानी से बाहर गति पकड़ ली. दुनिया भर के इंटरनेट को ट्रैक करने वाले नेटब्लॉक्स ने कहा कि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म टेलीग्राम को भी सरकार ने ब्लॉक कर दिया है.
नैरोबी में प्रदर्शनकारी फ्लोरेंस अचला ने कहा, "हम यहां युवा पीढ़ी के रूप में हैं. हम व्यवस्था में आमूलचूल बदलाव चाहते हैं, सिस्टम सड़ चुका है, सिस्टम दुष्ट है."
पुलिस पर क्यों लग रहे गंभीर आरोप?
पुलिस पर विरोध प्रदर्शन को दबाने के लिए किराए के गुंड़े काम में लाने के आरोप लगे हैं, उसपर खुद भी बर्बरता करने के आरोप लगे हैं. उसकी कार्रवाई के बाद गुस्सा भड़क गया है. इस महीने की शुरुआत में पुलिस हिरासत में एक शिक्षक की मौत के बाद लोगों में नाराजगी बढ़ी है. शांतिपूर्ण प्रदर्शनकारियों के एक समूह पर पिछले सप्ताह मोटरसाइकिल सवार "गुंडों" के एक गिरोह ने हमला किया था, जैसा कि वे केन्या में जाने जाते हैं. वे चाबुक और लाठियों से लैस थे और पुलिस के साथ मिलकर काम कर रहे थे.
केन्या में ब्रिटेन, जर्मनी और अमेरिका सहित पश्चिमी देशों के दूतावासों ने एक संयुक्त बयान में "घुसपैठ करने या शांतिपूर्ण सभाओं को बाधित करने के लिए किराए के 'गुंडों' के इस्तेमाल की आलोचना की."
हालांकि बुधवार को जो हिंसा हुई उसमें "गुंडे" स्पष्ट रूप से मौजूद नहीं थे, लेकिन पुलिस ने प्रदर्शनकारियों के समूहों को पीछे धकेलने का प्रयास करते हुए बड़ी मात्रा में आंसू गैस और पानी की बौछारों का इस्तेमाल किया. एनालिस्ट और वकील जवास बिगम्बो ने एएफपी को बताया कि उन्हें चिंता है कि राजनीतिक समूह हिंसा को बढ़ावा देने के लिए जनता के अस्थिर मूड का फायदा उठाएंगे.
राष्ट्रपति के खिलाफ जनता क्यों नाराज है?
तेजी से आर्थिक प्रगति का वादा कर 2022 में सत्ता में आए राष्ट्रपति विलियम रूटो के खिलाफ जनता में गहरी नाराजगी है. कई लोग जीडीपी स्थिर रहने, भ्रष्टाचार और हाई टैक्स से निराश हैं. यहां तक कि पिछले साल के विरोध प्रदर्शन के बाद भी रूटो को अलोकप्रिय वित्त विधेयक को रद्द करने के लिए मजबूर होना पड़ा था.
उनकी सरकार इस साल प्रत्यक्ष कर (डायरेक्ट टैक्स) को बढ़ाने से बचने के लिए संघर्ष कर रही है. खतरनाक बात यह है कि सरकार के आलोचक लगातार गायब हो रहे हैं. अधिकार समूहों का कहना है कि गायब आलोचकों की संख्या पिछले साल के विरोध प्रदर्शन के बाद से 80 से अधिक हो गई है, और दर्जनों अभी भी लापता हैं. कई लोगों ने राष्ट्रपति रूटो पर 1980 और 1990 के दशक में केन्या को उसकी तानाशाही के काले दिनों में वापस लाने का आरोप लगाया है.
रूटो ने पहले अपहरण को रोकने का वादा किया था, लेकिन मंगलवार को एक भाषण में उन्होंने पुलिस के साथ "खड़े रहने" की कसम खाई थी.
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