इजरायल-हमास की लड़ाई में रूस को होगा फायदा? यूक्रेन के साथ जंग जीतने में मिलेगी मदद?

ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट के मुताबिक, इजरायल-हमास के बीच चल रही जंग से रूस को फायदा होने वाला है. क्योंकि इस वक्त अमेरिका ने अपनी पूरी ताकत इजरायल के पीछे लगा दी है. ऐसे में दुनिया की नजर यूक्रेन से हट गई है. इजरायल-हमास की जंग का एक पहलू ये भी है कि दुनिया में बढ़ती तेल की कीमत रूस की अर्थव्यवस्था के लिए मुफीद है.

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नई दिल्ली:

इजरायल और फिलिस्तीनी संगठन हमास (Hamas Group) के बीच 5 दिनों से जारी जंग में अब तक 3600 से ज्यादा लोगों की जान जा चुकी है. हमास के रॉकेट और ड्रोन हमलों के जवाब में इजरायल गाजा पट्टी पर लगातार एयर स्ट्राइक (Air Strike) कर रहा है. इसके साथ ही इजरायल ने गाजा बॉर्डर (Gaza Border) के क्षेत्रों पर दोबारा से कब्जा भी कर लिया है. अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी और फ्रांस ने एक साझा बयान जारी कर इजरायल को समर्थन देने की बात कही है, लेकिन दूसरी तरफ चीन और रूस जैसे ताकतवर देशों ने इस संकट पर निष्पक्ष रहने की कोशिश की. दोनों देशों ने नागरिकों को होने वाले नुकसान पर चिंता जताई, लेकिन हमास के हमले की स्पष्ट निंदा नहीं की. आइए समझते हैं कि इजरायल-हमास के बीच जंग से रूस को क्या फायदा हो सकता है.

ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट के मुताबिक, इजरायल-हमास के बीच चल रही जंग से रूस को फायदा होने वाला है. क्योंकि इस वक्त अमेरिका ने अपनी पूरी ताकत इजरायल के पीछे लगा दी है. ऐसे में दुनिया की नजर यूक्रेन से हट गई है. इजरायल-हमास की जंग का एक पहलू ये भी है कि दुनिया में बढ़ती तेल की कीमत रूस की अर्थव्यवस्था के लिए मुफीद है. हालांकि, अमेरिका और NATO सहयोगियों ने इजरायल पर हमास के हमले के बाद यूक्रेन को सैन्य रूप से समर्थन जारी रखने की उनकी क्षमता के बारे में चिंताओं को खारिज कर दिया है. अमेरिका बीते एक साल से यूक्रेन की सैन्य और आर्थिक मदद कर रहा है.

मौजूदा स्थिति की जानकारी रखने वाले दो लोगों के मुताबिक, इजरायल और हमास के बीच का संघर्ष रूस के पक्ष में काम करेगा. मुद्दे की संवेदनशीलता के कारण अपनी पहचान उजागर नहीं करने की शर्त पर उन्होंने कहा कि इजरायल-हमास के बीच चल रहा ये संघर्ष कम से कम रूस-यूक्रेन युद्ध से अमेरिका और यूरोपीय देशों का ध्यान भटकाने का काम कर सकता है.

रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने अरब लीग के महासचिव अहमद अबुल घीत के साथ बातचीत के बाद एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में सोमवार को कहा कि अगर इजरायल संघर्ष पर अमेरिका के ध्यान के नतीजे के रूप में यूक्रेन को होने वाली हथियारों की सप्लाई धीमी पड़ जाती है, तो  राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के मकसद को हम तेजी से हासिल कर लेंगे. इन उद्देश्यों को जरूर हासिल किया जाएगा."

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इजरायल और यूक्रेन की सेना की मांगों के बीच कोई बड़ा ओवरलैप नहीं है. तेल अवीव की मौजूदा सप्लाई अपेक्षाकृत मजबूत है. मामले से परिचित एक शख्स के मुताबिक, इजरायल अमेरिका से आयरन डोम मिसाइलें, गाइडेड म्युनिशन और आर्टलरी राउंड की मांग कर रहा है. क्योंकि वह हमास के हमले के लिए मजबूती के साथ तैयार रहना चाहता है. लेकिन अगर इजरायल गाजा पट्टी में जमीनी युद्ध शुरू करता है. जैसा कि अपेक्षित है, तो बेशक सप्लाई का दबाव बढ़ सकता है.

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पूर्व अमेरिकी मरीन कर्नल और अब सेंटर फॉर स्ट्रैटेजिक एंड इंटरनेशनल स्टडीज में एडवाइजर मार्क कैंसियन ने कहा, "वे बड़े पैमाने पर युद्ध सामग्री का इस्तेमाल करना शुरू कर देंगे. वे शायद उनका बहुत ज्यादा इस्तेमाल करेंगे. हालांकि, उनके पास पहले से ही अच्छा खासा स्टॉक है. लेकिन ये लंबे समय के जंग के लिए नाकाफी नहीं है. 

इज़रायल और यूक्रेन के बीच अगर अमेरिका को किसी एक को चुनना होगा, तो वह इजरायल को चुनेगा. इस चलते यूक्रेन भी परेशान है. पुतिन ने कुछ दिन पहले कहा था कि अमेरिकी और यूरोपीय समर्थन यूक्रेन को आर्थिक और सैन्य रूप से बचाए हुए हैं. पुतिन ने कहा था कि अगर हथियारों की डिलीवरी कल बंद कर दी जाती है, तो यूक्रेन के पास केवल एक सप्ताह का समय होगा. जब तक कि वे अपने सभी गोला-बारूद का इस्तेमाल नहीं कर लेता.

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इस बीच यूक्रेन के लिए यूरोप में समर्थन को भी झटका लगा है. हाल ही में पोलैंड ने विवाद के चलते यूक्रेन को धमकी भी दे दी थी. वहीं आने वाले वक्त में स्लोवाकिया भी यूक्रेन को सदमा पहुंचा सकता है.

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बुधवार और गुरुवार को ब्रुसेल्स में नाटो रक्षा मंत्रियों की बैठक के दौरान इजरायल में संघर्ष पर चर्चा होने की उम्मीद है, जिसमें यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोडोमिर जेलेंस्की भी हिस्सा ले रहे हैं. इस मीटिंग से पहले कीव के सहयोगी अपनी मासिक यूक्रेन रक्षा संपर्क समूह की बैठक में हथियारों की डिलीवरी पर भी चर्चा करेंगे.

तेल की कीमत पर इजरायल-हमास जंग का असर यूक्रेन में रूस के युद्ध को और भी बढ़ावा दे सकता है. जैसे-जैसे तेल की कीमतें बढ़ती हैं. इससे रूस को हथियार प्रोडक्शन पर खर्च जारी रखने में मदद मिलेगी. इससे कुछ बजट घाटे को कवर करने में भी फायदा होगा.

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