नेतन्याहू की बढ़ी मुश्किलें, इजरायली सैनिकों ने जंग लड़ने के लिए रख दी ये बड़ी शर्त

अब तक 150  से ज्यादा सैनिक इस मुहिम का हिस्सा बन चुके हैं. इन सैनिकों का कहना है कि यदि बंधकों की रिहाई के लिए डील नहीं की जाती है तो ये लोग लड़ाई करने से इनकार कर देंगे.

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बेंजामिन नेतन्याहू और इजरायली सैनिक.
नई दिल्ली:

Israel Gaza war: इजरायल का हमास (Israel Hamas War) पर हमला खत्म नहीं हो रहा और खत्म नहीं हो रहा इजरायल का गाज़ा पर आक्रमण. यहां तबाही का मंजर भयावह है और उसे संभलने में अब पचासों साल लग जाएंगे. ऐसे में गाज़ा में जो इजरायली सैनिक हौसले की इबारत लिख रहे हैं और अपने देश और देशवासियों के लिए युद्ध लड़ते जा रहे हैं उनका भी धैर्य अब जवाब देने लगा है. धीरे-धीरे इजरायल में अपनों के लिए आवाज़ तेज होती जा रही है और साथ ही तेज होती जा रही है अपने से मिलने की तमन्ना. बंधक बनाए गए परिजनों को देखने की इच्छा के चलते अब कई इजरायली सैनिकों ने सरकार के सामने अपनी मांग रख दी है. इजरायली सरकार के लिए अब युद्ध का एक नया फ्रंट खुल गया है. एक गाज़ा फिर लेबनान और अब इजरायल की जमीं पर अपनों के हौसले को बरकरार रखने की जंग...

इजरायली सैनिकों की मांग

येरुसेलम पोस्ट की खबर के अनुसार हुआ यह है कि इजरायल के सैनिक जो इजरायल के लिए विदेशी जमीं पर जंग लड़ रहे हैं उनकी मांग यह है कि इजरायल जल्द से जल्द हमास के कब्जे में लिए गए इजरायली बंधकों की रिहाई के लिए प्रयास करें. इन सैनिकों ने मांग की है कि सरकार जल्द से जल्द इजरायली लोगों  की रिहाई के लिए समझौता करे.

बढ़ती जा रही नाराज़ सैनिकों  की संख्या

इस संबंध में इजरायल में एक मुहिम चलाई जा रही है. इस मुहिम के तहत एक सार्वजनिक ज्ञापन तैयार किया गया है. इस ज्ञापन साइन करने  के लिए सैनिकों को आमंत्रित किया गया है. अब इस मुहिम से धीरे-धीरे कई सैनिक जुड़ते जा रहे हैं. अब तक 150  से ज्यादा सैनिक इस मुहिम का हिस्सा बन चुके हैं. इन सैनिकों का कहना है कि यदि बंधकों की रिहाई के लिए डील नहीं की जाती है तो ये लोग लड़ाई करने से इनकार कर देंगे. इन सैनिकों में कुछ महिला सैनिक भी शामिल हैं. इनमें से कुछ लोगों का कहना है कि इस साइन के साथ ही उनका कार्यकाल एक सैनिक के रूप में समाप्त हो रहा है. कुछ सैनिकों ने साइन कर यह कहा है कि यह सरकार के लिए चेतावनी है कि वह बंधकों की रिहाई  के लिए डील करे.

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बेंजामिन नेतन्याहू से मांग

यह ज्ञापन देश के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू, रक्षामंत्री योव गैलेंट, सेना प्रमुख हेरजी हलेवी और सरकार के कुछ सदस्यों को लिखा गया है. इसमें स्पष्ट मांग की गई है कि युद्ध को समाप्त किया जाए. इसमें कहा गया है कि हम रिजर्व, एक्टवि सैनिक, अधिकारी और यह घोषणा करते हैं कि हम ऐसे लगातार युद्ध नहीं कर सकते. गाज़ा में जारी युद्ध हमारे बंधक बनाए गए भाई और बहनों के लिए मौत बन रहा है. 

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क्या कह रहे हैं सैनिक

इन सैनिकों का कहना है कि 7 अक्तूबर को हमने अपने हजारों लोगों को खो दिया और सैकड़ों लोगों को बंधक बनाए जाने के बाद हमने तुरंत अपने को देश की सेवा लिए समर्पित किया और लड़ने के लिए अपना नाम दिया ताकि हम अपने देश की रक्षा में अपनी भूमिका निभा सकें. साथ ही अपने देश के लोगों को जिन्हें बंधक बनाया गया था उनकी रिहाई करवा सकें. लेकिन जिस प्रकार से युद्ध गाज़ा में लगातार जारी है उससे लग रहा है कि आईडीएफ की ओर की जा रही बमबारी में रिहाई का इंतजार कर रहे कई बंधक अपनी जान गंवा चुके हैं. 

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जल्द हथियार डाल सकते हैं ये सैनिक

सरकार के लिए तैयार इस ज्ञापन में सैनिकों ने किसी प्रकार से कोई तारीख का ऐलान नहीं किया है जिसके बाद  वे युद्ध नहीं करेंगे, लेकिन इन लोगों का कहना है कि यह तारीख करीब आ रही है.  ज्ञापन में लिखा गया है कि हम जो अभी तक देश के सेवा में अपनी जान की परवाह किए बगैर पूरी ईमानदारी से लगे हुए हैं, सरकार से यह कहना चाहते हैं कि यदि सरकार ने अपना रुख नहीं बदला और बंधकों की रिहाई के लिए डील पर काम शुरू नहीं किया तो हम बतौर सैनिक सेवा नहीं दे पाएंगे. हम में से कई लोगों के लिए यह तारीख बीत चुकी है, कुछ के लिए तारीख नजदीक आ रही है. 

बंधकों  की रिहाई पर है जोर

इन लोगों का कहना है कि अब लग रहा है कि सरकार की ओर से डील पर जोर नहीं दिया जा रहा है. लोगों ने कहा कि हमने सरकार के साथ मिलकर गाज़ा में अपने लोगों के लिए लड़ाई लड़ी. हम भी चाहते हैं कि हमास का अंत हो लेकिन, इस सबमें अपने लोगों की रिहाई करवाने का जज़्बा ही हमारी ताकत रही है.  लेकिन अब हौसला टूट रहा है. 

गौरतलब है कि इन सैनिकों को पता है कि यदि वे ऐसा कुछ करते हैं तो उन्हें सजा भी मिल सकती है. उनका वेतन रोका जा सकता है. इस राह पर चलना आसान नहीं होगा. लेकिन यदि आपका अपना कोई बंधक बना होता तो आप यही प्रयास करते कि उसे जल्द से जल्द रिहा किया जाए, चाहे इसके लिए युद्ध रोकना ही क्यों न एक शर्त होती. 

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