अमेरिका हो या यूरोप झुकेगा नहीं... नए जमाने का भारत खुद लिखता है अपनी विदेश नीति

भारत और ईरान ने चाबहार के शाहिद बेहश्ती बंदरगाह के टर्मिनल के संचालन के लिए एक समझौता किया है. इस समझौते के तहत अगले 10 साल के लिए एक डील पर हस्ताक्षर किए गए हैं.

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नई दिल्ली:

भारत का ईरान (Iran) के साथ चाबहार पोर्ट के संचालन के लिए डील करना अमेरिका (America) को रास नहीं आया. लेकिन भारत ने उसकी तिलमिलाहट को शांत कर दिया. विदेश मंत्री एस जयशंकर (Foreign Minister S Jaishankar) ने अमेरिका को आईना दिखा दिया कि जब उसका अपना इंटरेस्ट होता है तो उसको चाबहार पोर्ट डील अच्छी लगती है. लेकिन अपना काम निकल जाता है तो जुबान बदल जाती है. अमेरिका हो या यूरोप, उनके हर उठाए सवाल का जैसा माकूल जवाब भारत देता है उससे यही ध्वनि निकलती है कि भारत अब झुकेगा नहीं.

बात सिर्फ अमेरिका के परेशान होने भर की नहीं है. जब भारत ने रूस से कच्चे तेल का सौदा किया तो यूरोप में कोहराम मच गया. तब भी विदेश मंत्री जयशंकर ने यूरोप को बता दिया कि पहले अपना दामन देख लो. उसी तरह रूस-यूक्रेन युद्ध हो या इज़राइल-फिलीस्तीन की जंग, हर मुद्दे पर भारत का रुख बिल्कुल साफ रहा. 

अमेरिका का ऐतराज, भारत को नहीं परवाह
विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा कि चाबहार बंदरगाह से पूरे क्षेत्र को लाभ होगा और इसे लेकर संकीर्ण सोच नहीं रखनी चाहिए. इससे पहले अमेरिका ने चेतावनी दी थी कि ईरान के साथ व्यापारिक समझौते करने वाले किसी भी देश पर प्रतिबंधों का खतरा है. जयशंकर ने मंगलवार रात कोलकाता में एक कार्यक्रम में कहा कि अतीत में अमेरिका भी इस बात को मान चुका है कि चाबहार बंदरगाह की व्यापक प्रासंगिकता है.

जयशंकर ने कहा, ‘‘चाबहार बंदरगाह से हमारा लंबा नाता रहा है लेकिन हम कभी दीर्घकालिक समझौते पर हस्ताक्षर नहीं कर सके. इसकी वजह है कि कई समस्याएं थीं. अंतत: हम इन्हें सुलझाने में सफल रहे हैं और दीर्घकालिक समझौता कर पाए हैं. दीर्घकालिक समझौता जरूरी है क्योंकि इसके बिना हम बंदरगाह पर परिचालन नहीं सुधार सकते. और हमारा मानना है कि बंदरगाह परिचालन से पूरे क्षेत्र को लाभ होगा." उन्होंने कहा, ‘‘मैंने कुछ बयान देखे हैं, लेकिन मेरा मानना है कि यह लोगों को बताने और समझाने का सवाल है कि यह वास्तव में सभी के फायदे के लिए है. मुझे नहीं लगता कि इस पर लोगों को संकीर्ण विचार रखने चाहिए. और उन्होंने अतीत में ऐसा नहीं किया है.''

अमेरिका प्रतिबंध लगाने का रिस्क नहीं लेगा: एक्सपर्ट
अंतर्राष्ट्रीय मामलों के जानकार ब्रह्म चेलानी का कहना है कि प्रतिबंध लगाने की धमकी अमेरिका की पुरानी नीति रही है. अमेरिका अभी के हालत में भारत के खिलाफ प्रतिबंध नहीं लगा सकता है. पहले कई बार उसने प्रतिबंध लगाए हैं लेकिन उससे उसे कोई लाभ नहीं हुआ. अमेरिका सिर्फ धमकी ही दे सकता है. जब भारत ने पहला परमाणु परिक्षण किया था तो 20 साल तक उसने प्रतिबंध लगाया था. लेकिन इसका परिणाम यह हुआ कि भारत और मजबूत होकर उभरा. 

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अमेरिका क्यों है परेशान
अमेरिका, भारत और ईरान के बीच बढ़ती नजदीकियों से बेहद परेशान है. अगर पर्दे के पीछे की बात करें तो अमेरिका ये कभी नहीं चाहता कि दुनिया का कोई भी देश ईरान के साथ किसी तरह का व्यापारिक संबंध रखे. साथ ही अमेरिका ये भी नहीं चाहता कि भारत का ईरान से दोस्ती करने का कोई फायदा भारत को हो.

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इसके पीछे की वजह यह है कि अमेरिका को लगता है कि अगर ऐसा हुआ तो भारत अमेरिका के दुश्मन गुटों के ज्यादा करीब होता चला जाएगा. यही वजह है कि बीते कुछ दशकों में अमेरिका ने ईरान पर एक के बाद एक कई प्रतिबंध भी लगाए हैं. 

भारत के लिए क्यों महत्वपूर्ण है चाबहार
विदेश मामलों के जानकार मानते हैं कि पहले भारत को मध्य एशिया के देशों से व्यापार करने के लिए पाकिस्तान के रास्ते का इस्तेमाल करना पड़ता था. यहां तक की अफगानिस्तान तक भी कोई सामान भेजने के लिए भारत पाकिस्तान से होकर जाने वाले रास्ते का ही इस्तेमाल करता था. लेकिन जब से भारत और ईरान के बीच चाबहार को लेकर समझौता हुआ है तो अब अफगानिस्तान और सेंट्रल एशिया से बिजनेस के लिए भारत को नया रूट मिल जाएगा. अब तक इन देशों तक पहुंचने के लिए पाकिस्तान से होकर जाना पड़ता था. यह बंदरगाह भारत के लिए कूटनीति के लिहाज से भी अहम है. 

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रूस के सामने युद्ध का विरोध...ये भारत कर सकता है
2 साल से अधिक समय से चल रहे रूस-यूक्रेन युद्ध को लेकर दुनिया 2 खेमें बंट गयी है. कोई यूक्रेन के साथ खड़ा होने लगा तो कोई रूस के साथ. लेकिन इन सब के बीच दुनिया के किसी भी देश में यह हिम्मत नहीं थी जो यह कह सके कि युद्ध बर्बादी के अलावा कुछ भी नहीं लाता है. पीएम नरेंद्र मोदी ने खुलकर इस स्टैंड को रखा. रूस के राष्ट्रपति के पास प्रधानमंत्री ने इस बात को कहा.

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एक तरफ राष्ट्रपति पुतिन को युद्ध छोड़ने की हिदायत देने के बाद भी भारत अमेरिकी गुट के खिलाफ जाकर रूस के साथ तेल का डील कर लिया था. जिसका कई देशों ने विरोध किया था. रूस से कच्चे तेल के आयात का अमेरिका ने भी विरोध किया था. 

रूसी तेल पर यूरोप को जयशंकर ने दिखाया था आईना
विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा था कि यूरोप ने भारत से 6 गुणा ज्यादा कच्चा तेल रूस से आयात किया है. यूरोप ने रूस से अपनी ऊर्जा आपूर्ति को धीरे-धीरे कम किया है. जब आप अपनी जनता जिसकी प्रतिव्यक्ति आय 60 हजार यूरो है को लेकर इतने संवेदनशील हैं तो हमारी जनता की प्रतिव्यक्ति आय 2 हजार अमेरिकी डॉलर भी नहीं है. मुझे भी ऊर्जा की जरूरत है. मैं इस स्थिति में नहीं हूं कि तेल के लिए भारी कीमत दे सकूं. 

इजरायल और फिलिस्तीन के मुद्दे पर भारत ने लिया स्टैंड
इजरायल और फिलिस्तीन के मुद्दे पर भारत ने अपने स्टैंड को साफ करते हुए समय-समय पर अपनी बात को रखा है. वहीं इजरायल और ईरान के बीच हुए विवाद पर विदेश मंत्री ने कहा था कि युद्ध और सैन्य तनाव से क्षेत्र में किसी भी पक्ष को कोई फायदा नहीं है. चीन के मुद्दे पर भी भारत ने अपने रूख को साफ किया है. 

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