ऑस्ट्रेलिया में पिछले हफ्ते 40 साल की भारतीय मूल की महिला प्रियदर्शनी पाटिल ने आत्महत्या कर ली. इसी के साथ उनके दो बच्चों की कस्टडी के लिए उनके परिवार ने लड़ाई ने एक बार फिर विदेशों में भारतीय या भारतीय मूल के बच्चों की कस्टडी से जुड़े केसों की दुखद लड़ाई को सामने रख दिया है. प्रियदर्शनी पाटिल 27 अगस्त को कर्नाटक के बेलगावी में मृत पाई गईं. वह लगभग तीन सालों से अपने बच्चों की कस्टडी के लिए लड़ रही थीं. ऐसा तब हुआ जब न्यू साउथ वेल्स के अधिकारियों ने पाटिल और उनके पति पर बच्चों के प्रति 'लापरवाही और अनुचित देखभाल' का आरोप लगाया और बच्चों को उनसे अलग कर दिया. दोनों ही ऑस्ट्रेलियाई नागरिक हैं.
प्रियदर्शनी पाटिल इस महीने की शुरुआत में पिता के पास भारत लौटी थीं. एक सप्ताह बाद उन्होंने आत्महत्या कर ली. उन्होंने एक सुसाइड नोट भी छोड़ा, जिसमें उन्होंने अपने परिवार और अपने जीवन को बर्बाद करने के लिए कुछ पड़ोसियों और न्यू साउथ वेल्स डिपार्टमेंट ऑफ कम्युनिटीज एंड जस्टिस को दोषी ठहराया. मीडिया रिपोर्टस के मुताबिक- पाटिल और उनके पति अपने एक बच्चे के इलाज से नाखुश थे, जो कि अल्सरेटिव कोलाइटिस (Ulcerative Colitis ) से पीड़ित हैं.
उनके बेटे को न्यू साउथ वेल्स के एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया था, लेकिन छह महीने की देखभाल के बाद भी कोई सुधार नहीं हुआ, जिससे माता-पिता को मेडिकल ट्रांसफर की मांग करनी पड़ी.
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रिपोर्टों के अनुसार, अनुरोध अस्वीकार कर दिया गया और बाल संरक्षण मामला शुरू हो गया. तर्क यह था कि घर पर "अनुचित देखभाल" के कारण अमर्त्य की स्थिति में सुधार नहीं हुआ. पाटिल का दूसरा बच्चे (जिसकी उम्र 18 साल से अधिक है) को भी बाल कल्याण अधिकारियों ने अपनी हिरासत में ले लिया.
जैसा कि ऐसे मामलों में प्रोटोकॉल है, सामाजिक कार्यकर्ताओं ने माता-पिता से मुलाकात की और घर के माहौल का निरीक्षण किया. छह पोजिटिव रिपोर्ट प्रस्तुत की गईं, लेकिन इन्हें सातवीं से बदल दिया गया. इसी रिपोर्ट के आधार पर बाल कल्याण अधिकारियों ने पाटिल के बच्चों को हिरासत में ले लिया. पाटिल की मौत पर ऑस्ट्रेलिया के विदेश मामलों से जुड़े विभाग ने कहा कि उन्हें प्रियदर्शनी पाटिल की मौत से बहुत दुखी हैं और उनके परिवार के प्रति गहरी संवेदना व्यक्त की.