पहलगाम अटैक सिर्फ भारत-पाकिस्तान का मुद्दा नहीं रहा, बिसात पर एक तीसरा खिलाड़ी भी है

Pahalgam Kashmir Terrorist Attack: प्रधान मंत्री मोदी के पास पाकिस्तान को इतनी ताकत से जवाब देने की जिम्मेदारी है जिसे पाकिस्तान के गुनाह के अनुपात में देखा जा सके, लेकिन फिर यह भी ख्याल रहे कि संघर्ष बहुत आगे न बढ़े.

विज्ञापन
Read Time: 9 mins

यह शायद उन लम्हों में से एक है जब एक व्यक्ति का एक निर्णय भारत और शायद दुनिया की भविष्य की दिशा तय करेगा. कश्मीर के पहलगाम में पर्यटकों पर हुए आतंकी हमले का जवाब कैसे दिया जाए, यह फैसला अकेले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लेना है. प्रधान मंत्री ने जोर देकर कहा है कि आतंकवादियों और उसके पीछे के साजिशकर्ताओं को "उनकी कल्पना से अधिक" दंडित किया जाएगा. उन्होंने आतंकवाद के खिलाफ निर्णायक लड़ाई का भी संकल्प लिया है. तत्काल प्रतिक्रिया के रूप में सिंधु जल संधि को स्थगित कर दिया गया है और पाकिस्तान के साथ राजनयिक संबंधों को कम किया गया है. ये प्रतिक्रिया नापा-तौला है और अगर डिफेंस एक्सपर्ट्स से वाक्यांश उधार ले तो गैर-गतिशील (नॉन-काइनैटिक) वॉरफेयर की रणनीति दिखी है. 1960 की सिंधु जल संधि को निलंबित करना एक कड़ा कदम है, इसे 1971 के युद्ध सहित दोनों देशों के बीच कई संघर्षों के बीच भी स्थगित नहीं किया गया था. इस कूटनीतिक जवाब की गंभीरता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पाकिस्तान ने तुरंत इसे युद्ध की कार्रवाई करार दिया और 1972 के शिमला समझौते को निलंबित करने की धमकी दी.

बालाकोट से भी बड़ा जवाब दिया जाएगा?

उम्मीद यह की जा रही है कि प्रधान मंत्री एक बड़ी सैन्य कार्रवाई का आदेश देंगे जो 2016 में पाकिस्तान के अंदर किए गए सर्जिकल स्ट्राइक" और 2019 में बालाकोट के आतंकी शिविरों पर हमले से भी बड़ा होगा. पिछली दोनों प्रतिक्रियाएं अतीत में हुईं सैन्य कार्रवाइयों से बहुत अलग थीं. ये दोनों प्रभावी थीं लेकिन चुपचाप पूरी की गईं. अब इसी रणनीति को दोहराने की स्थिति में ऑपरेशन में विरोधियों को चौंकाने की क्षमता और प्रभावशीलता कम होगी. इसके अलावा, भारत ने फुल स्केल के युद्ध का रास्ता नहीं चुना क्योंकि यह आर्थिक रूप से कमजोर करेगा. इस रास्ते पर नहीं चलकर ही भारत लगभग 4.5 ट्रिलियन डॉलर की जीडीपी के साथ दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बना है, जो पाकिस्तान से 12 गुना बड़ी है. यह अब तक कूटनीति और आर्थिक ताकत के साथ युद्ध में विजयी रहा है. वित्तीय कार्रवाई कार्य बल (FATF) द्वारा पाकिस्तान को ग्रे-सूची में शामिल कराना भारत की एक महत्वपूर्ण कूटनीतिक सफलता थी.

अब, प्रधान मंत्री मोदी के पास इतनी ताकत से जवाब देने की जिम्मेदारी है जिसे पाकिस्तान के गुनाह के अनुपात में देखा जा सके, लेकिन फिर यह भी ख्याल रहे कि संघर्ष बहुत आगे न बढ़े. यह काम कठिन है, क्योंकि पाकिस्तान को संघर्ष बढ़ाने के लिए किसी वजह की जरूरत नहीं होती. या फिर पीएम मोदी इंतजार का खेल (वेटिंग गेम) खेल सकते हैं. राष्ट्रवादियों को आश्वस्त रखने के लिए उन्हें अपनी राजनीतिक पकड़ पर भरोसा करने की आवश्यकता होगी.

उनसे पहले अटल बिहारी वाजपेयी और मनमोहन सिंह ने चुपचाप लेकिन निश्चित रूप से देश में जड़ें जमा चुके कई आतंकी नेटवर्कों को उखाड़ फेंका और विदेशों से उनकी हवाई सप्लाई काट दी. मोदी सरकार ने उससे आगे बढ़ते हुए, पश्चिम एशियाई देशों के साथ घनिष्ठ राजनयिक और खुफिया संबंध विकसित किए, जो कभी पाकिस्तान के मित्र थे. इससे पाकिस्तान के आतंकी नेटवर्क के वित्तीय और भौतिक मदद के रास्ते बंद हो गए. आज वह चीन पर बहुत अधिक निर्भर है.

Advertisement

नियम बदल रहा

28 अप्रैल को करण थापर के साथ एक इंटरव्यू में, फ्राइडे टाइम्स के पूर्व एडिटर और कुछ समय तक राजनेता रहे नजम सेठी ने कहा कि यह मुद्दा अब पाकिस्तान और भारत के बारे में नहीं है. एक तीसरा खिलाड़ी है, चीन, जिसका पाकिस्तान में बहुत अधिक निवेश है और वह अपने हितों की रक्षा के लिए किसी भी हद तक जा सकता है. सेठी 62 अरब डॉलर के चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (CPEC) के बारे में बात कर रहे थे, जो चीन की वैश्विक बेल्ट एंड रोड पहल (BRI) का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है. सेठी ने संकेत दिया कि भारत के हमले की स्थिति में चीन पाकिस्तान को सैन्य समर्थन देगा.

Advertisement

CPEC में लगभग 25 अरब डॉलर के लगभग 43 प्रोजेक्ट्स पूरे हो चुके हैं. फिर भी यह बलूचिस्तान में अशांति से घिरा हुआ है, जहां अलगाववादियों के हमलों ने आर्थिक गतिविधियों को पंगु बना दिया है. उम्मीद थी कि CPEC का शोपीस ग्वादर पोर्ट, पश्चिम और मध्य एशिया के लिए चीन और पाकिस्तान का व्यापार प्रवेश द्वार बनेगा. ग्वादर पोर्ट के जरिए मलक्का जलडमरूमध्य पर चीन अपनी निर्भरता कम करना चाहता था, लेकिन वर्तमान में एक ‘सफेद हाथी' बना हुआ है यानी खर्चा भी बहुत हो गया और कोई अलग से फायदा भी नहीं हो रहा.

Advertisement

स्थानीय विरोध और अलगाववादी हमलों के कारण CPEC रुका हुआ है.उसपर होते हमले लगातार, घातक और दुस्साहसी हो गए थे. सबसे दुस्साहसिक हमला 11 मार्च 2025 को ही हुआ, जब बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी (BLA) ने 400 से अधिक यात्रियों को ले जा रही यात्री ट्रेन- जाफर एक्सप्रेस को हाइजैक कर लिया. हालांकि सुरक्षा बलों ने कई छापेमारी के बाद ट्रेन को कंट्रोल में ले लिया, लेकिन इस बीच कई लोगों की मौत हो गई.

Advertisement
पाकिस्तान की खूफिया एजेंसी, इंटर सर्विसेज इंटेलिजेंस (ISI) के जनसंपर्क महानिदेशक लेफ्टिनेंट-जनरल अहमद शरीफ चौधरी ने कहा कि इस हाइजैक ने "खेल के नियमों को बदल दिया". रेस्क्यू ऑपरेशन के बाद एक प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित करते हुए चौधरी ने इस घटना के लिए सीधे तौर पर भारत को जिम्मेदार ठहराया. उन्होंने कहा कि भारत पाकिस्तान में आतंकवादी हमले करवाने के लिए अफगानिस्तान स्थित समूहों का उपयोग कर रहा है.

चौधरी की टिप्पणी के तुरंत बाद समा टीवी के साथ एक इंटरव्यू में, पूर्व एडिटर सेठी ने कहा कि भारत ने मुंबई हमलों के बाद खेल के नियम बदल दिए. नए नियम में सीमा पार हमले भी शामिल था और पाकिस्तान भी यही करेगा. सेठी ने कहा, "इसका मतलब युद्ध को अफगानिस्तान तक ले जाना है." उन्होंने कहा कि पाकिस्तान अफगानिस्तान में BLA और तहरीक-ए तालिबान पाकिस्तान (TTP) शिविरों को निशाना बनाएगा. यह रणनीतिक विकल्पों का भी प्रयोग करेगा, जैसा कि भारत ने 2008 के हमलों के बाद किया था. उन्होंने कहा, सबसे स्पष्ट विकल्प "कश्मीर में (आतंक का) नल खोलना" था, और कहा कि पाकिस्तान को भारत की रणनीति से सीख लेनी चाहिए और "आक्रामक बचाव" करना चाहिए, जो भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल के शब्दकोष से लिया गया शब्द है. दो सप्ताह पहले ही पाकिस्तानी सेना के प्रमुख असीम मुनीर ने अंधराष्ट्रवादी भाषण को पढ़ा था. इसे नजर में रखते हुए देखें तो पहलगाम हमला नल का पहला मोड़ प्रतीत होता है.

आखिर चीन पाकिस्तान का समर्थन क्यों कर रहा है?

इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि चीन ने पाकिस्तान का पुरजोर समर्थन किया है. चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने कहा है, "चीन ने आतंकवाद विरोधी कार्रवाई में हमेशा पाकिस्तान का समर्थन किया है. एक कट्टर मित्र और सदाबहार रणनीतिक साझेदार के रूप में, चीन पाकिस्तान की उचित सुरक्षा चिंताओं को पूरी तरह से समझता है, संप्रभुता और सुरक्षा हितों की रक्षा में पाकिस्तान का समर्थन करता है." चीनी विदेश मंत्रालय ने यह भी कहा कि चीन घटना की "निष्पक्ष जांच" का समर्थन करता है.

पाकिस्तान ने पहलगाम हमले की अंतरराष्ट्रीय जांच की मांग की है, जिसका प्रभावी अर्थ यह है कि वह कश्मीर मुद्दे का अंतर्राष्ट्रीयकरण करना चाहता है और 1971 के बाद भारत को मिले राजनयिक लाभ को वापस लेना चाहता है. शिमला संधि में कहा गया था कि पाकिस्तान भारत के साथ किसी भी मुद्दे का अंतर्राष्ट्रीयकरण नहीं कर सकता है यानी दोनों देश आपस में बैठकर किसी भी विवाद को निपटाएंगे, कोई भी किसी अंतर्राष्ट्रीय प्लेटफॉर्म पर नहीं जाएगा. इस समझौते को निलंबित करने की धमकी देकर पाकिस्तान कश्मीर के अंतर्राष्ट्रीयकरण का दरवाजा खोलने की कोशिश कर रहा है. इस समझौते पर रोक लगाने से अंतरराष्ट्रीय सीमा की स्थिति भी बदलेगी, जिसे नियंत्रण रेखा (LoC) के रूप में जाना जाता है.

पाकिस्तान में आंतरिक कलह एक ऐसी चीज है जिससे चीन सावधान रहता है. वह जानता है कि सेना के नियंत्रण वाला एक गरीब, घनी आबादी वाला देश विनाश का नुस्खा है. जब तक पाकिस्तान में अशांति खत्म नहीं हो जाती, CPEC कभी शुरू नहीं होगा. चीन लंबे समय से अपनी संपत्तियों और लोगों की सुरक्षा के लिए पाकिस्तान की जमीन पर सेना उतारने की मांग करता रहा है लेकिन पाकिस्तान ने लंबे समय तक इसका विरोध किया. लेकिन अब पाकिस्तान ने चीन को क्षेत्र में निजी सुरक्षा तैनात करने की अनुमति दे दी है.

सिंधु जल संधि को निलंबित करना

सिंधु जल संधि के निलंबन से सिंध में चल रहे विरोध प्रदर्शनों को बढ़ावा मिलने की संभावना है. सूखे से प्रभावित क्षेत्रों तक सिंधु से पानी ले जाने के लिए छह नहरों के निर्माण की $3.3 बिलियन की एक महत्वाकांक्षी परियोजना बनी. इसे सेना का समर्थन था लेकिन फिर भी परियोजना का व्यापक विरोध हुआ है, क्योंकि सिंध के लोगों का मानना ​​है कि इससे उनके प्रांत में पानी की कमी बढ़ जाएगी. इस परियोजना ने सिंध और पंजाब के बीच प्रांतीय तनाव को पुनर्जीवित कर दिया और विरोध प्रदर्शनों ने देश को ठप कर दिया है. सरकार ने कहा है कि वह इस परियोजना को अस्थायी रूप से रोक देगी.

सिंधु जल संधि के प्रमुख तत्वों में से एक यह है कि भारत सिंधु के हाइड्रोलॉजिकल डेटा को शेयर करने और भारतीय पक्ष में नदी परियोजनाओं का निरीक्षण करने के लिए पाकिस्तानी विशेषज्ञों को दौरे की अनुमति देने के लिए बाध्य है. लेकिन सिंधु जल संधि को निलंबित करने से पाकिस्तानी इंजीनियरों के पास महत्वपूर्ण डेटा की कमी हो जाएगी जो नहरों को डिजाइन और विकसित करने के लिए आवश्यक हो सकता है.

फिर भी, इनमें से किसी को भी पर्याप्त नहीं माना जाएगा. संकेत हैं कि सरकार कोई सैन्य या खुफिया ऑपरेशन चलाने पर विचार कर रही है. पाकिस्तान इसकी उम्मीद भी कर रहा है और तैयारी भी कर रहा है. भारत शायद अपनी कार्रवाई के नतीजों को मैनेज करने के लिए अपनी कूटनीतिक ताकत पर निर्भर रहना चाहता है. किसी भी हालत में यह ज्यादा दूर नहीं दिखता.

(दिनेश नारायणन दिल्ली स्थित पत्रकार और 'द आरएसएस एंड द मेकिंग ऑफ द डीप नेशन' के लेखक हैं. उन्होंने मूल रूप से यह लेख इंग्लिश में एनडीटीवी डॉट कॉम के लिए लिखा है. इसे हिंदी में ट्रांसलेट करके यहां लिया गया है. यह लेखक की निजी विचार हैं. एनडीटीवी इंडिया का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है.)

यह भी पढ़ें: साम, दाम, दंड, भेद... जानिए पहलगाम अटैक के बाद कैसे चाणक्य नीति से पाकिस्तान पर हो रहा वार

Featured Video Of The Day
Chandrashekhar Azad On Caste Census: जातिगत जनगणना पर चंद्रशेखर की बात सुन सब चौके! | NDTV India