Explainer : क्या केवल पेड़ लगाने से बच जाएगा पर्यावरण ? कितना मददगार है वृक्षारोपण?

‘वृक्षारोपण’’ शब्द में अक्सर गतिविधियों की एक विस्तृत श्रृंखला शामिल होती है, जिनमें से कुछ वास्तव में प्रकृति को नुकसान पहुंचाते हैं. इसमें मोनोकल्चर वृक्षारोपण शामिल हैं, जो जैव विविधता को नष्ट करते हैं, प्रदूषण बढ़ाते हैं और खाद्य उत्पादन के लिए उपलब्ध भूमि को हटाते हैं.

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मेलबर्न:

खराब होते वातावरण  को सुधारने के लिए पेड़ लगाने जैसे उपायों को अक्सर जलवायु संकट (Climate Crisis) के समाधान के रूप में देखा जाता है.द कन्वरसेशन मैगजीन में प्रकाशित मेलबर्न विश्वविद्यालय के केट डूले और ज़ेबेदी निकोल्स का नया शोध यह दिखाता है कि ग्लोबल वार्मिंग (Global Warming) को सीमित करने के लिए जीवाश्म ईंधन उत्सर्जन (Fossil Fuel Emissions) को रोकने के अलावा (preventing fossil fuel emissions) और कोई विकल्प नहीं है. हमने वातावरण में मौजूद कार्बन डाइऑक्साइड (Co2) को अवशोषित करने के लिए प्रकृति को बहाल करने की अधिकतम क्षमता की गणना की, और पाया कि, 2030 तक वनों की कटाई को रोकने से, यह 2100 तक ग्लोबल वार्मिंग को 0.18 डिग्री सेल्सियस कम कर सकता है.  इसकी तुलना में, देशों की वर्तमान प्रतिबद्धताएं हमें 1.9-2 डिग्री सेल्सियस वार्मिंग के रास्ते पर ले जाती है.

यह जलवायु परिवर्तन के विनाशकारी प्रभावों को कम करने के लिए जरूरत से बहुत दूर है, और पेरिस समझौते के 1.5 डिग्री सेल्सियस लक्ष्य से काफी ऊपर है. और यह इस विचार को सिरे से नकारता है कि हम मौजूदा ग्लोबल वार्मिंग से अपना रास्ता निकाल सकते हैं. 

प्राथमिकता जीवाश्म ईंधन को तेजी से समाप्त करना है, जिसने पिछले एक दशक में सभी सीओ2 उत्सर्जन में 86% का योगदान दिया है. वनों की कटाई भी समाप्त होनी चाहिए, भूमि उपयोग, वनों की कटाई और वन क्षरण वैश्विक उत्सर्जन का 11% योगदान करते हैं.

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पेड़ लगाने को लेकर प्रचार का शोर

शुद्ध-शून्य (Net Zero) जलवायु लक्ष्यों के प्रति बढ़ती प्रतिबद्धताओं ने वातावरण से CO2 को हटाने के लिए प्रकृति की बहाली पर ज्यादा ध्यान दिया जा रहा है, दावों के आधार पर प्रकृति 2030 तक आवश्यक जलवायु शमन का एक तिहाई से अधिक प्रदान कर सकती है. हालांकि, ‘‘वृक्षारोपण'' शब्द में अक्सर गतिविधियों की एक विस्तृत श्रृंखला शामिल होती है, जिनमें से कुछ वास्तव में प्रकृति को नुकसान पहुंचाते हैं. इसमें मोनोकल्चर वृक्षारोपण शामिल हैं, जो जैव विविधता को नष्ट करते हैं, प्रदूषण बढ़ाते हैं और खाद्य उत्पादन के लिए उपलब्ध भूमि को हटाते हैं.

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यही कारण है कि हमने अपने अध्ययन में प्रकृति बहाली के लिए ‘‘जिम्मेदार विकास'' ढांचा लागू किया.  मोटे तौर पर, इसका मतलब है कि बहाली गतिविधियों को पारिस्थितिक सिद्धांतों का पालन करना चाहिए, भूमि अधिकारों का सम्मान करना चाहिए और भूमि उपयोग में परिवर्तन को कम करना चाहिए.

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इसके लिए एक नया जंगल लगाने की तुलना में उन गतिविधियों के बीच अंतर करने की आवश्यकता होती है जो निम्नीकृत भूमि और जंगलों को पुनर्स्थापित करती हैं (जैसे कि देशी वन फसल को समाप्त करना या चरागाह भूमि में वनस्पति बढ़ाना).

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भेद मायने रखता है, नए वृक्षारोपण का अर्थ है भूमि के उपयोग के तरीके को बदलना. यह जैव विविधता के लिए जोखिम प्रस्तुत करता है और महत्वपूर्ण कृषि भूमि को हटाने जैसे इसके संभावित नुकसान हैं.

दूसरी ओर, खराब हो चुकी भूमि को बहाल करने से मौजूदा भूमि उपयोग को विस्थापित नहीं किया जाता है. बहाली से परिवर्तन की बजाय, जैव विविधता और मौजूदा कृषि में वृद्धि होती है.

वृक्षारोपण की क्षमता 

हमारा सुझाव है कि यह अधिकतम ‘‘जिम्मेदार'' भूमि बहाली क्षमता प्रस्तुत करता है जो जलवायु शमन के लिए उपलब्ध है. हमने पाया कि इसका परिणाम 2020 और 2100 के बीच वातावरण से औसतन 378 अरब टन CO2 हटा देगा.

यह बहुत कुछ लग सकता है लेकिन, परिप्रेक्ष्य के लिए, वैश्विक सीओ2 समकक्ष उत्सर्जन अकेले 2019 में 59 अरब टन था. इसका मतलब यह है कि हम बाकी सदी में प्रकृति की बहाली से जिस निष्कासन की उम्मीद कर सकते हैं, वे मौजूदा उत्सर्जन के सिर्फ छह साल के बराबर हैं.

सीओ2 हटाने की क्षमता के आधार पर, हमने चरम ग्लोबल वार्मिंग और सदी भर के तापमान में कमी पर पड़ने वाले प्रभावों का आकलन किया.

हमने पाया कि प्रकृति की बहाली केवल ग्लोबल वार्मिंग को मामूली रूप से कम करती है - और किसी भी जलवायु लाभ को चल रहे जीवाश्म ईंधन उत्सर्जन के पैमाने से बौना कर दिया जाता है, जो वर्तमान नीतियों के तहत अब और 2100 के बीच 2,000 अरब टन सीओ2 से अधिक हो सकता है.

लेकिन मान लीजिए कि हम इस क्षमता को एक गहरे डीकार्बोनाइजेशन परिदृश्य के साथ जोड़ते हैं, जहां अक्षय ऊर्जा को तेजी से बढ़ाया जाता है और हम 2050 तक वैश्विक स्तर पर शुद्ध शून्य उत्सर्जन तक पहुंच जाते हैं. फिर, हम गणना करते हैं कि ग्रह 2100 तक 1.25-1.5 डिग्री सेल्सियस तक गिरने से पहले, 1.5 डिग्री सेल्सियस तापमान वृद्धि को पार कर जाएगा.

बेशक, नष्ट हुई भूमि और जंगलों को बहाल करते हुए जीवाश्म ईंधन को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करना भी वनों की कटाई को समाप्त करने के साथ जोड़ा जाना चाहिए. अन्यथा, वनों की कटाई से होने वाला उत्सर्जन कार्बन हटाने से होने वाले किसी भी लाभ को मिटा देगा.

इसे देखते हुए, हमने 2030 तक भूमि क्षेत्र में शुद्ध-शून्य (Net Zero) तक पहुंचने के लिए चल रहे भूमि-उपयोग उत्सर्जन को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने के प्रभाव का भी पता लगाया.

जैसा कि बहाली के साथ होता है, हमने पाया कि 2030 तक वनों की कटाई को रोकने से वैश्विक तापमान पर बहुत कम प्रभाव पड़ता है, और इस सदी में केवल 0.08 डिग्री सेल्सियस के आसपास वार्मिंग को कम करेगा. यह काफी हद तक इसलिए था क्योंकि हमारे आधारभूत परिदृश्य ने पहले ही मान लिया था कि सरकारें कुछ कार्रवाई करेंगी. वनों की कटाई बढ़ने से बहुत अधिक वार्मिंग होगी.

इन दोनो को एक साथ देखा जाए - प्रकृति की बहाली और वनों की कटाई को रोकना - सदी के अंत में वार्मिंग को 0.18 °सेल्सियस तक कम किया जा सकता है.

क्या यह पर्याप्त है?

अगर हम इस सदी में ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के लिए कम उत्सर्जन वाले मार्ग में प्रवेश करते हैं, तो हम उम्मीद करते हैं कि अगले एक से दो दशकों में वैश्विक तापमान में वृद्धि होगी.

जैसा कि हमारे शोध से पता चलता है, प्रकृति की बहाली उतनी तेजी से होने की संभावना नहीं है कि यह जीवाश्म उत्सर्जन को ऑफसेट करने और विशेष रूप से वैश्विक तापमान को कम करने में प्रभावी हो सके .

लेकिन आइए इसे बेहतर तरीके से समझें. हम यह सुझाव नहीं दे रहे हैं कि प्रकृति की बहाली निष्फल है, या महत्वहीन है. जलवायु परिवर्तन को कम करने की हमारी तात्कालिकता में, यदि कोई उपाय वार्मिंग के छोटे से छोटे हिस्से को भी कम करने में मददगार होता है तो उसका महत्व है.

अब हमें वैश्विक स्तर पर जीवाश्म ईंधन के विस्तार को रोकने के लिए नए अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और समझौतों की आवश्यकता है और सरकारों को पेरिस समझौते के तहत अपने कार्बन डाइऑक्साइड हटाने के वादों को निभाना चाहिए. भूमि के जरिए कार्बनडाई आक्साइड हटाने के वादों की आड़ में इन जरूरी कदमों को अनदेखा नहीं किया जा सकता.

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