ट्रंप-पुतिन की बैठक में यूक्रेन के बिना होगी शांति डील? ट्रंप की ‘नोबेल वाली सनक’ से डरा यूरोप

Trump-Putin talks: यूक्रेन के बिना अमेरिका-रूस बैठक के विचार ने चिंताएं बढ़ा दी हैं. यूक्रेन और अन्य यूरोपीय शक्तियों को डर है कि ट्रंप और पुतिन आपस में यह समझौते कर लेंगे कि सीजफायर के लिए यूक्रेन को अपना कुछ क्षेत्र छोड़ना पड़ेगा.

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  • अमेरिकी राष्ट्रपति और रूसी राष्ट्रपति की यूक्रेन युद्ध को लेकर पहली आमने-सामने बैठक शुक्रवार को होगी.
  • यूरोपीय संघ ने जोर देकर कहा है कि यूक्रेन और अन्य यूरोपीय शक्तियों को शांति वार्ता में शामिल किया जाना चाहिए.
  • यूरोपीय नेताओं को डर है कि ट्रंप-पुतिन की बैठक में यूक्रेन की सहमति के बिना समझौते हो सकते हैं.
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खुद को शांतिदूत बताने वाले अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप चाहते हैं कि यूक्रेन में शांति आ जाए, रूस जंग को रोक ले और सीजफायर पर राजी हो जाए. इसके लिए अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की इस हफ्ते शुक्रवार को पहली आमने-सामने की बैठक होनी है. लेकिन अबतक तो यह दिख रहा है कि यूक्रेन के भाग्य का फैसला जिस मेज पर होगा, उसपर यूक्रेन शायद ही होगा. यूरोपीय नेताओं ने रविवार को यूक्रेन को वार्ता का हिस्सा बनने पर जोर दिया.

तीन साल से अधिक वक्त से जारी इस युद्ध को सुलझाने की कोशिश करने के लिए ट्रंप और पुतिन शुक्रवार को अमेरिकी राज्य अलास्का में मिलेंगे. लेकिन यूरोपीय संघ ने जोर देकर कहा है कि यूक्रेन और अन्य यूरोपीय शक्तियों को भी संघर्ष को समाप्त करने के लिए किसी भी समझौते का हिस्सा होना चाहिए.

यूक्रेनी राष्ट्रपति वलोडिमिर जेलेंस्की के बिना अमेरिका-रूस बैठक के विचार ने चिंताएं बढ़ा दी हैं. यूक्रेन और अन्य यूरोपीय शक्तियों को डर है कि ट्रंप और पुतिन आपस में यह समझौते कर लेंगे कि सीजफायर के लिए यूक्रेन को अपना कुछ क्षेत्र छोड़ना पड़ेगा. ऐसी किसी भी संभावना को यूरोपीय संघ ने खारिज कर दिया है.

यूरोपीय संघ के विदेश मंत्री सोमवार को वीडियो लिंक के माध्यम से एक बैठक में वार्ता पर चर्चा करेंगे, जिसमें उनके यूक्रेनी समकक्ष भी शामिल होंगे.

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यूरोपीय शक्तियां उठा रहीं सवाल, क्या जेलेंस्की को मेज पर जगह मिलेगी?

फ्रांस, जर्मनी, इटली, पोलैंड, ब्रिटेन और फिनलैंड के नेताओं और यूरोपीय संघ आयोग की प्रमुख उर्सुला वॉन डेर लेयेन ने एक संयुक्त बयान में कहा, "यूक्रेन में शांति का रास्ता यूक्रेन के बिना तय नहीं किया जा सकता है." उन्होंने ट्रंप से रूस पर अधिक दबाव डालने का आग्रह किया है. जेलेंस्की भी अपनी तरफ से पूरा जोर लगा रहे हैं. उन्होंने तीन दिनों में कीव के मुख्य समर्थकों जर्मनी, ब्रिटेन और फ्रांस सहित 13 समकक्षों के साथ बातचीत की है.

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जर्मन चांसलर फ्रेडरिक मर्ज ने रविवार को कहा कि उन्हें उम्मीद है कि जेलेंस्की नेताओं के शिखर सम्मेलन में भाग लेंगे. नॉर्डिक और बाल्टिक देशों - डेनमार्क, एस्टोनिया, फिनलैंड, आइसलैंड, लातविया, लिथुआनिया, नॉर्वे और स्वीडन - के नेताओं ने भी कहा कि यूक्रेन की भागीदारी के बिना कोई भी निर्णय नहीं लिया जाना चाहिए. उन्होंने एक संयुक्त बयान में कहा कि युद्ध समाप्त करने पर बातचीत केवल सीजफायर के दौरान ही हो सकती है. 

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रविवार को CNN पर यह पूछे जाने पर कि क्या जेलेंस्की वार्ता में उपस्थित हो सकते हैं, नाटो में अमेरिकी राजदूत मैथ्यू व्हिटेकर ने जवाब दिया: "हां, मुझे निश्चित रूप से लगता है कि यह संभव है… निश्चित रूप से, ऐसा कोई समझौता नहीं हो सकता है कि इसमें शामिल हर कोई सहमत न हो. और, मेरा मतलब है, जाहिर है, इस युद्ध को समाप्त करना एक उच्च प्राथमिकता है."

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व्हिटेकर ने कहा कि निर्णय अंततः ट्रंप को ही लेना है, और व्हाइट हाउस की ओर से रविवार को इस बारे में कोई जानकारी नहीं दी गई.

यूक्रेन पर रूस ने कितना कब्जा किया?

क्रीमिया पर रूस ने 2014 में कब्जा कर लिया था. उसके अलावा रूस ने औपचारिक रूप से लुहान्स्क, डोनेट्स्क, खेरसॉन और जापोरिजिया के यूक्रेनी क्षेत्रों पर अपना दावा किया है. हालांकि रॉयटर्स की रिपोर्ट के अनुसार रूस आखिर के तीन में केवल 70% को नियंत्रित करता है. इसके पास तीन अन्य क्षेत्रों में क्षेत्र के छोटे हिस्से हैं, जबकि यूक्रेन का कहना है कि उसके पास रूस के कुर्स्क क्षेत्र का एक टुकड़ा है.

पुतिन क्या चाहते हैं?

यूक्रेन की सेना ने रविवार को कहा कि उसने सुमी क्षेत्र में एक गांव को रूसी सेना से वापस ले लिया है, जिसने हाल ही में यहां बड़ी बढ़त हासिल की है. यह गांव देश के उत्तर में अग्रिम पंक्ति (फ्रंट लाइन) में है और उत्तरी क्षेत्र में दोनों सेनाओं के बीच मुख्य लड़ाई से लगभग 20 किलोमीटर (13 मील) पश्चिम में है.

किसी भी शांति समझौते के लिए एक शर्त के रूप में, रूस ने मांग की है कि यूक्रेन अपनी सेना को क्षेत्रों से बाहर निकाले और एक तटस्थ स्टेट बनने के लिए प्रतिबद्ध हो, अमेरिका और यूरोपीय संघ के सैन्य समर्थन को छोड़ दे और नाटो में शामिल न हो.

रॉयटर्स की रिपोर्ट के अनुसार रूस समर्थक विश्लेषक सर्गेई मार्कोव ने है कहा कि अदला-बदली में रूस को यूक्रेन को 1,500 वर्ग किमी सौंपना होगा और बदले में वो 7,000 वर्ग किमी प्राप्त करेगा. उन्होंने कहा कि अगर समझौता नहीं भी हुआ तो रूस अपने सैन्य बल पर लगभग छह महीने के भीतर इस 7,000 वर्ग किमी पर किसी भी तरह से कब्जा कर लेगा. उन्होंने इनमें से किसी भी आंकड़े के समर्थन में कोई सबूत नहीं दिया. वहीं पश्चिमी सैन्य विश्लेषकों के अनुसार, रूस ने जुलाई में लगभग 500 वर्ग किमी क्षेत्र पर कब्जा कर लिया था, उनका कहना है कि उसकी प्रगति बहुत अधिक जान गंवाकर हुई है.

वहीं यूक्रेन ने कहा कि वह अपने संप्रभु क्षेत्र पर रूसी नियंत्रण को कभी मान्यता नहीं देगा. हालांकि उसने स्वीकार किया कि रूस द्वारा कब्जा की गई भूमि को वापस पाने के लिए युद्ध के मैदान से नहीं, बल्कि कूटनीति के माध्यम से आना होगा. यूरोपीय संघ के विदेश नीति प्रमुख काजा कैलास ने यूक्रेन के स्टैंड का समर्थन किया.

काजा कैलास ने कहा, "जैसा कि हम एक स्थायी और न्यायपूर्ण शांति की दिशा में काम कर रहे हैं, अंतरराष्ट्रीय कानून स्पष्ट है: अस्थायी रूप से कब्जे वाले सभी क्षेत्र यूक्रेन के हैं."

नाटो के जनरल सेक्रेटरी रुटे ने कहा कि यह एक वास्तविकता है कि "रूस यूक्रेन के कुछ क्षेत्र के कंट्रोल में है". उन्होंने सुझाव दिया कि भविष्य के समझौते में इसे स्वीकार किया जा सकता है. 

जेलेंस्की ने रविवार शाम अपने संबोधन में यूक्रेन के रुख का समर्थन करने वाले देशों को धन्यवाद दिया. उन्होंने कहा, "निष्पक्ष शांति के साथ युद्ध को जल्द से जल्द समाप्त किया जाना चाहिए… एक उचित शांति की आवश्यकता है.” उन्होंने आगे कहा, "इसके लिए स्पष्ट समर्थन कि यूक्रेन से संबंधित हर चीज का निर्णय यूक्रेन की भागीदारी से किया जाना चाहिए. ठीक वैसे ही जैसे यह हर दूसरे स्वतंत्र राज्य के साथ होना चाहिए."

यूरोपीय देशों को ट्रंप-पुतिन की बैठक से क्या डर है?

शीर्ष यूरोपीय नेताओं का बयान तब आया जब ट्रंप ने सुझाव दिए हैं कि रूस से शांति समझौते में "क्षेत्रों की कुछ अदला-बदली" शामिल हो सकती है. इससे यह आशंका पैदा हो गई है कि यूक्रेन पर अपनी जमीन छोड़ने या अपनी संप्रभुता पर अन्य प्रतिबंध स्वीकार करने के लिए दबाव डाला जा सकता है.

यूक्रेन और उसके यूरोपीय सहयोगियों को महीनों से यह डर सता रहा है कि ट्रंप खुद को शांति दूत दिखाने (नोबेल का शांति पुरस्कार पाने) के चक्कर में पुतिन के साथ मिलकर एक ऐसी डील कर सकते हैं जो कीव के लिए बहुत नुकसानदेह होगा.

यूरोप को दरअसल अतीत से मिली सीख आज डरा रही है. पुतिन ने ऐतिहासिक रूप से नाटो के पूर्व की ओर प्रसार का विरोध किया है. रूसी पड़ोसी देश- सोवियत बाल्टिक राज्य और पोलैंड - अब वर्तमान परिदृश्य में विशेष रूप से उजागर महसूस कर रहे हैं.

(इनपुट- एएफपी, एपी, रॉयटर्स)

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