ट्रूडो के दिल में भारत के खिलाफ इतना जहर क्यों है, जरा क्रोनोलॉजी समझिए

कनाडा की राजनीति में पिछले कुछ दिनों में जस्टिन ट्रूडो की लोकप्रियता तेजी से कम हुई है. हाल में हुए कुछ स्थानीय चुनावों में भी उनकी पार्टी को हार का सामना करना पड़ा है.

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नई दिल्ली:

कनाडा और भारत का विवाद लगातार बढ़ता जा रहा है. दोनों ही देशों की तरफ से एक के बाद एक कार्रवाई की जा रही है. भारत ने कनाडा के राजदूत सहित उसके छह अधिकारियों को वापस जाने का आदेश दिया है. खालिस्तानी आतंकी (Khalistani terrorist) निज्जर की हत्या के बाद से दोनों ही देशों के बीच विवाद लगातार बढ़ता ही गया है. हालांकि इसके मूल कारणों में से एक कनाडा की आंतरिक राजनीति है. जिसे साधने की कोशिश में कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो (justin trudeau) हैं. भारत विरोध और खालिस्तानियों को सपोर्ट की उनकी नीति कनाडा की राजनीति में अपने आप को मजबूत करने की कोशिश का एक अहम हिस्सा है. आइए जानते हैं कनाडा की पॉलिटिक्स में चल क्या रहा है.

कम होती लोकप्रियता से तनाव में हैं जस्टिन ट्रूडो
कनाडा की राजनीति में पिछले कुछ दिनों में जस्टिन ट्रूडो की लोकप्रियता तेजी से कम हुई है. हाल में हुए कुछ स्थानीय चुनावों में भी उनकी पार्टी को हार का सामना करना पड़ा है. अगले साल होने वाले राष्ट्रीय चुनाव से पहले वो अपनी खोयी हुई लोकप्रियता को वापस पाना चाहते हैं. यही कारण है कि कनाडा में आधिकारिक डेटा के अनुसार 2.1 प्रतिशत वाली सिख आबादी को वो साधना चाहते हैं. किसी भी चुनाव में 2-3 प्रतिशत का वोट स्विंग एक बड़ा इफेक्ट डाल सकता है. 

स्थानीय चुनावों में हार से परेशान हैं ट्रूडो
 

हाल ही में हुए चुनावों में ट्रूडो की पार्टी को कई जगहों पर हार का सामना करना पड़ा है.सत्ता में मौजूद लिबरल पार्टी मॉन्ट्रियल में हुए चुनाव में हार गयी.मॉन्ट्रियल की हार से कुछ दिन पहले जगमीत सिंह की न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी ने अल्पसंख्यक लिबरल सरकार से समर्थन वापस ले लिया है. जिसके बाद से कनाडा की राजनीति में भूचाल आया हुआ है. ये पार्टी खालिस्तान समर्थक मानी जाती है. 

हमेशा से भारत विरोधी रहे हैं ट्रूडो 
प्रधानमंत्री ट्रूडो की भारत के खिलाफ हमेशा से रहे हैं.  2018 में वो भारत के दौरे पर आए थे. जिस दौरान उन्होंने खालिस्तान समर्थकों को साधने की कोशिश की थी. उनकी कैबिनेट में ऐसे लोग शामिल रहे हैं जो खुलेआम भारत के खिलाफ चरमपंथी और अलगाववादी एजेंडे से जुड़े रहे हैं." कई मौके पर वो खुलेआम भारत विरोधी बयान देते रहे हैं. 

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मोदी सरकार की वापसी से भी परेशान है कनाडा
कनाडा इस साल की शुरुआत में हुए लोकसभा चुनाव और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ऐतिहासिक तीसरे कार्यकाल के लिए चुने जाने के बाद से भी कनाडा की परेशानी बढ़ गयी है. हालांकि कनाडा की तरफ से चुनाव परिणाम के बाद सकारात्मक संदेश भेजा था. जस्टिन ट्रूडो ने कहा था कि भारत के साथ अब "राष्ट्रीय सुरक्षा और कनाडाई लोगों की सुरक्षा तथा कानून के शासन से जुड़े कुछ बहुत गंभीर मुद्दों" पर बातचीत फिर से शुरू हो सकती है.

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पिछले साल, भारत ने ट्रूडो के आरोपों को "बेतुका" और "प्रेरित" बताकर खारिज कर दिया था और कनाडा के खालिस्तान समर्थक सिखों का केंद्र बनने पर चिंता जताई थी. कनाडा ने इसे स्वीकार नहीं किया था. ट्रूडो ने कहा था कि कनाडा हमेशा "अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता... विवेक और शांतिपूर्ण विरोध की रक्षा करेगा." उन्होंने बाद में संशोधन करते हुए कहा था कि कनाडा हिंसा को भी रोकेगा और घृणा के खिलाफ आवाज उठाएगा.

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आतंकवादी संगठन के कनाडा चैप्टर की चीफ था निज्जर
एनआईए (NIA) ने निज्जर के खिलाफ कई मामले दर्ज किए थे जिनमें मनदीप सिंह धालीवाल से जुड़े कनाडा में मॉड्यूल खड़ा करने के लिए आरसीएन भी शामिल है. निज्जर प्रतिबंधित आतंकवादी संगठन सिख्स फॉर जस्टिस के कनाडा चैप्टर से इसके चीफ के रूप में भी जुड़ा था.

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एक अधिकारी ने खुलासा किया, "उसने कई बार कनाडा में भारत विरोधी हिंसक विरोध प्रदर्शन आयोजित किए और भारतीय राजनयिकों को खुलेआम धमकी दी. उसने कनाडा में स्थानीय गुरुद्वारों द्वारा आयोजित किए जाने वाले विभिन्न कार्यक्रमों में भारतीय दूतावास के अधिकारियों के भाग लेने पर प्रतिबंध लगाने का भी आह्वान किया था."

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