इजरायल-हमास जंग के बीच कई ऐसी चीजें हो रहीं हैं जिससे इस युद्ध के फैलने का खतरा बढ़ता जा रहा है. पहले दक्षिणी बेरुत में हमले की खबर आई जिसमें हमास के उप नेता सालेह अल अरौरी की मौत हुई. इजरायल ने इसकी सीधी जिम्मेदारी नहीं ली लेकिन हमले उसी ने किए, यह लेबनान भी कह रहा है और ईरान भी. इसे लेबनान की संप्रभुता पर भी हमला कहा गया. ईरान ने इस हमले की कड़ी आलोचना की.
जब यह सब चल ही रहा था कि इसी बीच ईरान में दो बड़े धमाके हो गए. कर्मान प्रांत में यह धमाका वहां हुआ जहां ईरान रिवोल्यूशनरी गार्ड के जनरल कासिम सुलेमानी की कब्र है. इनकी चौथी बरसी पर जमा हुए लोगों को निशाना बनाया गया. इस हमले में करीब 100 लोगों की मौत हुई और करीब 200 लोग घायल हुए. ईरान ने इसे आतंकवादी हमला करार दिया. शक अमेरिका और इजरायल पर जताया जा रहा है. अमेरिकी विदेश विभाग के प्रवक्ता ने इसका सीधे तौर पर खंडन किया है. उन्होंने इस हमले में मारे गए लोगों के परिजनों के प्रति संवेदना भी जताई है.
साल 2020 में सुलेमानी अमेरिकी ड्रोन हमले में ही मारे गए थे, इससे अमेरिका पर शक को बल मिला है. ईरान के सुप्रीम लीडर अयातुल्लाह अली खोमैनी ने अमेरिका का नाम तो नहीं लिया है लेकिन इसे ईरान के दुश्मनों की करतूत बताया है और कहा है कि इसका बदला लिया जाएगा.
ईरान और अमेरिका की दुश्मनी जगजाहिर है. इजरायल और ईरान की दुश्मनी भी जगजाहिर है. अमेरिका और इजरायल की दोस्ती भी जगजाहिर है. एक्सिस ऑफ रेसिस्टेंस के तौर पर ईरान की मदद से सीरिया, लेबनान और इराक में अमेरिका और इजरायल विरोधी ताकतें हमास के साथ खड़ी हैं. हालांकि इन देशों में से कोई भी सीधे तौर पर अभी तक युद्ध में नहीं कूदा है. लेकिन लेबनान से हिज़्बुल्लाह के हमले और यमन से हूथी विद्रोहियों के हमले जारी हैं.
हूथी विद्रोही जिस तरह से लाल सागर में जहाजों का निशाना बना रहे हैं, उससे अमेरिका को सीधी धमकी देनी पड़ी है. अमेरिका के साथ 12 अन्य देश भी उस धमकी में शामिल हैं. लाल सागर में जहाजों पर हमलों के विरोध में 44 देश एक सुर में बात कर चुके हैं. जाहिर है कि इनमें वे देश भी हैं जिनका इस युद्ध से कोई लेना देना नहीं लेकिन उनको आर्थिक खामियाजा भुगतना पड़ रहा है क्योंकि लाल सागर होकर माल और तेल ढुलाई बाधित हो रही है. अरब सागर भी हमले की जद में आया है. दुनिया के देशों के खिलाफ इसे एक आर्थिक युद्ध के तौर पर देखा जा रहा है. और इसके लिए मुख्य तौर पर ईरान को जिम्मेदार माना जा रहा है जो हमास के साथ-साथ हूथी की भी मदद करता है, हिज्बुल्लाह की भी.
सीरिया और ईराक के अमेरिकी सैन्य ठिकानों पर हमले के पीछे भी ईरान की शह मानी जाती है. गोला बारूद और रॉकेट मिसाइल के तौर पर देखें तो यह युद्ध अभी भी सिमटा हुआ सा लग रहा है. हालांकि इजरायल की तरफ से गाजा के अलावा सीरिया और लेबनान में भी हमले किए गए हैं. लाल सागर भी जंग का मैदान बना है.
गाजा में मानवीय त्रासदी के हालात को लेकर अरब देशों में गुस्सा उबल रहा है. दूसरी तरफ लाल सागर में हमलों को दुनिया की अर्थव्यवस्था पर हमला माना जा रहा है. इस सब के बीच अमेरिका और ईरान जैसे देशों की तरफ से अभी तक मोटे तौर पर ज़ुबानी धमकी दी जा रही है. लग रहा है कि दोनों तरफ से संयम की परीक्षा ली जा रही है. धैर्य टूटा तो युद्ध का पैमाना बड़ा हो जाएगा, इसमें किसी को कोई संदेह नहीं है.