भूटान एशिया का छोटा सा देश है. यह भौतिकवाद से दूर नैतिक मूल्यों के आधार पर जीवन जीता है और खुश रहता है. भूटान लंबे समय तक दुनिया के सबसे गरीब देशों में शामिल रहा है, लेकिन अब जल्द ही यह देश सबसे गरीब देशों के क्लब को छोड़ देगा. हिमालयी राज्य भूटान ग्रॉस नेशनल हैप्पीनेस इंडेक्स (GHI) के लिए मशहूर है. इसी से देश के हालात में सुधार आए हैं.
भूटान इस साल 13 दिसंबर को संयुक्त राष्ट्र द्वारा 1971 में स्थापित सबसे कम विकसित देशों के बैंड से निकलने वाला सातवां देश बन जाएगा. भूटान के प्रधानमंत्री लोटे शेरिंग ने गुरुवार को दोहा में समाप्त हुए एलडीसी (Lowest Developed Countries) शिखर सम्मेलन में समाचार एजेंसी एएफपी को इसकी जानकारी दी. उन्होंने कहा, "हम इसे बहुत सम्मान और गर्व के साथ देख रहे हैं. हम बिल्कुल भी घबराए हुए नहीं हैं."
ये देश भी कर रहे हैं मेहनत
भूटान की तर्ज पर बांग्लादेश, नेपाल, अंगोला, लाओस, सोलोमन द्वीप और साओ टोम 2026 के अंत तक सबसे कम विकसित देशों के बैंड से निकलने वाले हैं.
1972 में लागू हुआ GHI
1972 में भूटान के सम्राट जिग्मे सिंग्ये वांगचुक ने जीडीपी की जगह ग्रॉस हैप्पीनेस इंडेक्स लागू किया. यहां सभी मंत्रालयों की जिम्मेदारी है कि लोगों की समस्याएं सुलझाएं और जीवन स्तर ऊंचा उठाने के लिए काम करें.
भूटान में हैपिनेस इंडेक्स को 4 आधार पर मापा जाता है:
-सांस्कृतिक मूल्यों का संरक्षण
-पर्यावरण का संरक्षण
-सतत विकास
-बेहतर प्रशासन
1999 में इंटरनेट की हुई थी एंट्री
भूटान में इंटरनेट और टेलीविजन को 1999 में ही इजाज़त दी गई थी. 1970 में पहली बार किसी विदेशी पर्यटक को यहां आने की इजाज़त दी गई थी. अब भी अधिकारी विदेशी प्रभाव पर कड़ी नज़र रखते हैं. राजधानी थिम्पू में अब स्मार्टफ़ोन और बार आम हो गए हैं. युवा यहां आबादी में बहुतायत में हैं. उन्होंने सोशल मीडिया को आसानी से स्वीकार कर लिया है. इसकी वजह से वहां स्ट्रीट फ़ैशन में उछाल आ गया है और राजनीति में ज़्यादा खुलकर चर्चा हो रही है.
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