सरकारी नौकरियों में भर्ती के लिए कोटा व्यवस्था के खिलाफ बांग्लादेश (Bangladesh) में भड़की विरोध प्रदर्शनों (Protests) की आग अब शांत होने की उम्मीद है. बांग्लादेश के सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने सिविल सेवा में भर्ती के लिए स्वतंत्रता सेनानियों के वंशजों का कोटा (आरक्षण) 30 प्रतिशत से घटाकर 5 प्रतिशत करने का फैसला सुनाया है. सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट का आदेश खारिज करते हुए निर्देश दिया है कि 93 फीसदी सरकारी नौकरियां योग्यता के आधार पर सभी उम्मीदवारों के लिए खुली होनी चाहिए. इससे पहले हाईकोर्ट ने कुल आरक्षण 56 प्रतिशत करने का आदेश दिया था, जिसमें 30 प्रतिशत आरक्षण स्वतंत्रता सेनानियों के वंशंजों के लिए था.
यह था पूर्व में निर्धारित कोटा
बांग्लादेश में हाईकोर्ट के आदेश पर पूर्व में नौकरियों में कुल 56 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था की गई थी. इसमें 30 प्रतिशत सरकारी नौकरियां स्वतंत्रता सेनानियों के वंशजों के लिए, 10 प्रतिशत महिलाओं के लिए, 10 प्रतिशत पिछड़ों के लिए, 5 प्रतिशत जातीय अल्पसंख्यकों के लिए और 1 प्रतिशत दिव्यांग व्यक्तियों के लिए आरक्षित की गई थीं.
अब यह होगी आरक्षण की व्यवस्था
बांग्लादेश के सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद अब वहां 93% नौकरियां सामान्य श्रेणी में मेरिट से भरी जाएंगी. आरक्षित नौकरियां सिर्फ 7 प्रतिशत होंगी. स्वतंत्रता सेनानियों के बच्चों और पोते-पोतियों को 5 परसेंट आरक्षण मिलेगा. सात में से बाकी 2 परसेंट सीटें जातीय अल्पसंख्यकों, पिछड़ों, ट्रांसजेंडरों और विकलांगों के लिए होंगी.
बांग्लादेश में विवादास्पद सिविल सेवा भर्ती नियमों के विरोध में एक जुलाई से युवा छात्रों के हिंसक प्रदर्शन जारी थे. इनमें सौ से अधिक लोगों की मौत हुई. बांग्लादेश सुप्रीम कोर्ट ने सन 1971 के बांग्लादेश मुक्ति संग्राम के सेनानियों के पोते-पोतियों के कोटे की सीमा 30 प्रतिशत से घटाकर 5 प्रतिशत करने का फैसला सुनाया. कोर्ट ने 93 प्रतिशत लोगों को योग्यता के आधार पर नौकरियों में भर्ती करने को कहा.
कथित रूप से अवामी लीग के पक्ष में था आरक्षण
छात्रों के विरोध प्रदर्शनों से बांग्लादेश में अराजकता का माहौल बनता जा रहा था. छात्र लंबे समय से कोटा प्रणाली में आमूलचूल बदलाव की मांग कर रहे थे. वे मूल रूप से 1971 के बांग्लादेश स्वतंत्रता संग्राम के सेनानियों के वंशजों को सरकारी नौकरियों में 30 प्रतिशत आरक्षण देने का विरोध कर रहे थे. बताया जाता है कि यह कोटा व्यवस्था सत्तारूढ़ अवामी लीग पार्टी के सहयोगियों के पक्ष में थी, जिसने पाकिस्तान के खिलाफ बांग्लादेश मुक्ति संग्राम का नेतृत्व किया था.
सुप्रीम कोर्ट का रविवार को आया यह फैसला कई सप्ताह से चल रहे छात्रों के विरोध प्रदर्शनों के बाद आया. देश में तनाव तब चरम पर पहुंच गया जब प्रदर्शनकारियों और कथित रूप से अवामी लीग से जुड़े गुटों के बीच झड़पें हुईं. इसके बाद प्रदर्शनकारियों पर पुलिस ने सख्ती से बल प्रयोग किया.
हाईकोर्ट के आदेश के बाद भड़की हिंसा
बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना की सरकार ने पहले 2018 में कोटा प्रणाली को खत्म करने का प्रयास किया था. सरकार ने एक परिपत्र के जरिए आरक्षण पर रोक लगा दी थी. लेकिन हाईकोर्ट ने पिछले महीने सरकार के फैसले को अवैध ठहराया और आरक्षण की व्यवस्था बहाल कर दी. इससे लोगों में आक्रोश भड़क गया और नए सिरे से विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए. देश भर में हिंसक विरोध प्रदर्शन के दौरान छात्रों, सुरक्षा बलों और अवामी लीग पार्टी की छात्र शाखा के बीच झड़पों में कम से कम 114 लोगों की मौत हुई.
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