मस्क या अमेरिका...कौन बनेगा मंगल ग्रह का मालिक?

मस्क का मंगल पर शहर बसाने के सपनें की यह कहानी हकिकत में अब कितनी आगे बढ़ गई है, इसका अंदाजा आप इस बात से भी लगा सकते हैं कि अंतर्राष्ट्रिय पटल पर अब मंगल को लेकर दंगल भी शुरु हो चुका है. बिल्कुल उस मुहावरे की तर्ज पर की गांव बसा नहीं लुटेरे आ धमके.

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'चलो मंगल पर चलते हैं..' मार्स को लेकर एलन मस्क का यह ट्विट एक बार फिर से चर्चा में है. वजह ये है कि इस ट्विट में मस्क का वो सपना छुपा है. जिसको पूरा करने के लिये मस्क अपना सबकुछ दांव पर लगाने को तैयार हैं.

दरअसल, मस्क का सपना है कि मंगल पर बस्तियां हों, सड़के हों, गाड़ी हों, इंडस्ट्री हो. दुकाने हों और घर बनाकर लाखों लोग मंगल पर बिल्कुल ऐसे रहने लग जाएं जैसे धरती पर रहते हैं. हांलाकि, मंगल पर शहर बसाने का एलन मस्क का यह सपना नया नहीं है. लेकिन इसमें नया ये है कि हाल-फिलहाल में मंगल को लेकर अब कुछ ऐसे वैज्ञानिक संकेत मिल रहे हैं जिसको लेकर ये कहा जा रहा है कि मार्स पर इंसानों को बसाने का मस्क का सपना अब जल्दी हीं पूरा हो सकता है.

मंगल पर किसका हक होगा?
मस्क का मंगल पर शहर बसाने के सपनें की यह कहानी हकिकत में अब कितनी आगे बढ़ गई है, इसका अंदाजा आप इस बात से भी लगा सकते हैं कि अंतर्राष्ट्रिय पटल पर अब मंगल को लेकर दंगल भी शुरु हो चुका है. बिल्कुल उस मुहावरे की तर्ज पर की गांव बसा नहीं लुटेरे आ धमके. ऐसा हम इसलिये कह रहे हैं कि अब यह सवाल भी उठने लगा है कि अगर सब कुछ ठीक-ठाक रहा और मंगल पर इंसानों को बसाने का मस्क का सपना पूरा होता है तो ऐसी स्थिति में मंगल पर किसका हक होगा? कौन होगा मंगल का मालिक? क्या सिर्फ अमेरिका और एलन मस्क? या दुनिया के अन्य देशों का भी मंगल पर हक होगा? क्या मंगल ग्रह पर बस अपना झंडा गाड़ देने से कोई देश या कोई व्यक्ति इस पूरे ग्रह का मालिक बन जायेगा? या सभी देशों को साथ लेकर मंगल के लिए कुछ नियम भी बनाये जायेंगे? ताकि इंसानों ने जो गलतियां और बर्ताव धरती के साथ किया वो गलतियां मंगल पर ना दोहरोई जायें.

ब्राउन यूनिवर्सिटी के रिसर्च में क्या?

मंगल को लेकर फिलहाल एलन मस्क ना सिर्फ बेहद उत्साहित हैं, बल्कि मंगल पर पहुंचने की जल्दी मे भी हैं. मस्क की प्लानिंग के मुताबिक ज्यादा से ज्यादा महज अगले 20 सालों में वो मंगल पर एक लाख लोगों की आबादी वाला एक पूरा का पूरा शहर बसाना चाहते हैं. इसका खाका भी उन्होनें तैयार कर लिया है और अपने इस सपनें को पूरा करने के लिये वो अपना सब कुछ दांव पर लगाने को भी तैयार हैं. इसके पिछे जो वजह है वो ये कि अमेरिका के ब्राउन यूनिवर्सिटी मे किए गए एक ताजे शोध के मुताबिक पुख्ता तौर पर इस बात की पुष्टि हुई है कि एक वक्त ऐसा भी था जब मंगल ग्रह पर पानी था. ब्राउन यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक एडम वैलेंटिनास और उनकी टीम का दावा है कि मंगल ग्रह का यह लाल मटमैला रंग ही कभी वहां पानी होनें के बात की पुष्टि करता है.

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प्रो. एडम के मुताबिक मंगल ग्रह की ये लालिमा असल में मंगल पर पाए जाने वाले खनिजों की वजह से हीं है. अपने ताजे रिसर्च में एडम वैलेंटिनास और उनकी टीम ने पाया है कि मंगल की धूल में फेरिहाइड्राइट नाम का एक खनिज है, इस खनिज में लोहे की मात्रा भी मिश्रित है. लेकिन इस शोध का सबसे दिलचस्प पहलू ये है कि फेरिहाइड्राइट वहीं बनते हैं जहां ऑक्सीजन और पानी लोहे के साथ प्रतिक्रिया कर सकें.

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फेरिहाइड्राइट खनिज वास्तव में ठंडे पानी के संपर्क में बनता है. मतलब कि जहां फेरिहाइड्राइट पाया जायेगा, वहां अतीत में कभी पानी भी रहा होगा और इसी से ये निष्कर्ष निकाला जा रहा है कि मंगल ग्रह पर भी कभी पानी मौजूद था, क्योंकि फेरिहाइड्राइट पानी के बिना नहीं बन सकता. इस बारे में प्रो. एडम का कहना है कि,‘‘फेरिहाइड्राइट को मंगल ग्रह के लाल होने का कारण मानने वाले वो पहले व्यक्ति नहीं हैं, लेकिन अब डेटा और प्रयोगशाला के नए तरीकों का उपयोग करके इस तथ्य को ज्यादा बेहतर तरीके से प्रमाणित किया जा सका है.

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अमेरिका के ब्राउन यूनिवर्सिटी मे किए गए इस नये अध्ययन में नासा और यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी के अलावा भी अन्य दुसरे अंतरिक्ष एजेंसियों की ओर से मंगल पर संचालित किये गये मिशनों से जमा किए गए आंकड़ों का विश्लेषण भी किया गया है. इस रिसर्च का लक्ष्य मंगल ग्रह की प्राचीन जलवायु और इसकी रासायनिक प्रक्रियाओं को बेहतर ढंग से समझना है. ताकि यह समझा जा सके कि यह ग्रह कभी जीवन के अनुकूल था या नहीं.

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वैज्ञानिकों द्वारा किए जा रहे इस शोध के अलावा मंगल ग्रह की प्राचीन जलवायु को समझने के लिए नासा का पर्सिवियरेंस रोवर भी मंगल पर लगातार नमूने एकत्र कर रहा है. पर्सिवेरेंस रोवर एक कार के आकार का मार्स रोवर है जिसे नासा के मार्स 2020 मिशनके हिस्से के रूप में मंगल ग्रह पर जेज़ेरो क्रेटर का पता लगाने के लिए डिज़ाइन किया गया है. बता दें कि जेज़ेरो क्रेटर मंगल ग्रह पर पाये गये एक गड्ढे को कहते हैं. माना जाता है कि इस गड्ढे में कभी पानी भरा रहा होगा. इसको यूं समझिये की जैसे करोड़ो साल पहले का कोई सूखा हुआ झील. इसी का वैज्ञानिक परीक्षण करने के लिये जुलाई 2020 में पर्सिवियरेंस रोवर को मंगल पर प्रक्षेपित किया गया था जिसके बाद 18 फरवरी 2021 को यह मंगल ग्रह के जेज़ेरो क्रेटर पर उतरा था. तब से यह रोवर लगातार मंगल की सतह पर चट्टानों और मिट्टी के नमूने इकट्ठा कर रहा है. साथ ही मंगल ग्रह पर जीवन के संभावना की खोज कर रहा है. पर्सिवियरेंस रोवर द्वारा भेजे गये इन नमूनों का विश्लेषण कर के यह पता लगाया जा रहा है कि क्या मंगल वास्तव में कभी रहने योग्य था या नहीं?

ताजा रिसर्च से जो सबूत मिले हैं वो मंगल पर फेरिहाइड्राइट के बनने की ओर इशारा कर रहे हैं, और वैज्ञानिकों के मुताबिक फेरिहाइड्राइट वहीं बनते हैं जहां हवा या अन्य स्रोतों से ऑक्सीजन और पानी लोहे के साथ प्रतिक्रिया कर सकें. हालिया रिसर्च के इन्हीं परीणामों से उत्साहित होकर एलन मस्क की कंपनी स्पेसएक्स अगले दो सालों में मंगल ग्रह पर अपने सबसे बड़े रॉकेट स्टारशिप को भेजने की योजना भी बनाने लगी है. इस बारे में स्पेसएक्स कंपनी के सीईओ एलन मस्क ने ये बयान दिया है कि सबसे पहले मंगल ग्रह पर सुरक्षित लैंडिंग को परखा जाएगा और इसके तुरंत बाद वहां शहर बसाने की योजना पर काम शुरु कर दिया जायेगा.

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