अंग्रेजी में एक कहावत है- Justice delayed is Justice denied. यानी देर से मिलने वाला न्याय, न्याय नहीं होता. अगर न्याय मिलने में देरी बहुत ज़्यादा हो, तो वो इंसान के मौलिक अधिकारों के घोर उल्लंघन से कम नहीं है. एक ऐसे दौर में जब देश की जेलों में बंद 75% कैदी अंडरट्रायल हैं. उनके मुकदमों का अभी फैसला नहीं हुआ है, तो ये मामला और गंभीर हो जाता है. सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को फिर से दोहराया 'Bail is the rule, Jail is the exception' यानी ज़मानत नियम है और जेल अपवाद... लेकिन निचली अदालतों द्वारा इस पर अमल उतनी गंभीरता से नहीं हो रहा. गौर करने वाली बात है कि भारतीय जेलें 131% से ज़्यादा भरी हुई हैं. यानी 100 कैदियों की जगह है, तो 131 कैदी जेलों में हैं. सवाल उठता है कि इस स्थिति में सुप्रीम कोर्ट का फैसला कैसे लागू होगा. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि गिरफ्तारी चाहे Unlawful Activities (Prevention) Act जैसे विशेष कानूनों के तहत हुई हो, तो भी ज़मानत नियम होना चाहिए और जेल अपवाद... जस्टिस अभय ओका और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की बेंच ने इसके साथ ही एक ऐसे आरोपी को ज़मानत दी, जिसने अपना मकान प्रतिबंधित संगठन पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया यानी PFI के कथित सदस्य को दिया था. आरोप है कि इस मकान में PFI अपने सदस्यों को ट्रेनिंग दे रहा था.