भारत के न्याय तंत्र की एक खासियत है. यहां के मुकदमे कई पीढ़ियों तक चलते हैं. अच्छी बात है कि इसमें कुछ सुधार हुआ है. भारत के अधीनस्थ न्यायालयों में मुकदमों के निपटारे में औसत समय अब सिर्फ 5 साल लगता है. सिर्फ 5 साल ही तो इंतज़ार करना होता है इंसाफ के लिए. भारत के गरीब और आम नागरिक एक मुकदमे के निपटारे का पांच साल इंतजार करते हैं, न्याय पर भरोसे का इससे बड़ा उदाहरण क्या हो सकता है. 23 लाख केस ऐसे हैं जो 10 साल पुराने हैं. बैकलॉग वाले मुकदमों का 45 प्रतिशत यूपी महाराष्ट्र, बंगाल बिहार और गुजरात में है. यह तो सिर्फ देरी का आंकड़ा है. मुकदमे को कोर्ट तक पहुंचाने के लिए पुलिस सिस्टम की भी हालत खराब है. कहीं पद खाली हैं तो कहीं पदों को कम कर दिया गया है. नॉन रेज़िडेंट इंडियन को छोड़ सभी को यह सच्चाई मालूम है लेकिन न्याय तंत्र में एक निष्पक्ष और चुस्त सिस्टम की मांग बहस के केंद्र में नहीं है. इस संदर्भ में पहली बार एक इंडिया जस्टिस रिपोर्ट आई है. यह रिपोर्ट गुरुवार को दिल्ली में जारी हुई. टाटा ट्रस्ट की मदद से विधि सेंटर फॉर लीगल पॉलिसी, सेंटर फॉर सोशल जस्टिस, कॉमन कॉज़, कॉमनवेल्थ ह्यूमन राइट्स इनिशिएटिव, दक्ष, टाटा इंस्टीट्यूट आफ सोशल साइंस प्रयास जैसी संस्थाओं ने 18 महीने तक न्यायपालिका के तंत्र पर रिसर्च किया है.