पानी का संकट स्थायी होता जा रहा है। समाधान के किस्से भी मौजूद हैं इस देश में मगर वो संकट के अनुपात में बहुत छोटे हैं। दरअसल हम इसे मौसम का संकट समझ कर नज़रअंदाज़ कर देते हैं। 29 में से 12 राज्य सूखे की चपेट में है। राहत कार्य के नाम पर जो राशि जारी होती है वो दिल्ली से चलते वक्त सैकड़ों करोड़ों में सुनाई देती है और किसान के हाथ में पहुंचते पहुंचते सौ-दो सौ रुपये की हो जाती है। किसान जितना सरकार से लाचार है उतना समाज से भी और इन दोनों से ज्यादा अपने आप से भी। उसके लिए सबसे बड़ी तकलीफ है कि कोई उसे सुन नहीं रहा है।