राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी जब राष्ट्र के नाम संदेश दे रहे थे, तब सुनने वालों को लगा कि वह बिना नाम लिए आप-आप कर रहे हैं, लेकिन उनके भाषण को पढ़ें तो ऐसा प्रतीत होता है कि राष्ट्रपति एक ऐसी बात कह रहे हैं जो लागू सब पर होती है और सब उनकी बातों को सम्मान के नाम पर खारिज नहीं कर सकते। तो यहां सवाल है कि क्या वाकई राष्ट्रपति सभी दलों की ऐसी राजनीति पर सवाल उठा रहे हैं या किसी एक दल पर... क्या उनके सवालों पर कोई दल चिंता कर रहा है या उनकी एक बात को लेकर आरोप प्रत्यारोप ही चल रहा है… इसी विषय पर विशेष चर्चा....