किसी भी घटना में शामिल आरोपी के समाज के लोगों को क्या सामूहिक सज़ा दी सकती है? नहीं दी जा सकती है लेकिन हमने एक फॉर्मूला बना लिया है. बलात्कार का आरोपी किसी खास मज़हब का है तो उस मज़हब के खिलाफ तरह तरह के व्हाट्सऐप मटीरियल बन जाते हैं. बच्चा चोरी की अफवाह फैल जाती है तो भीड़ बन जाती है. गौमांस को लेकर तो बस अफवाह फैला दीजिए, भीड़ बन जाएगी. हर भीड़ का अगर पोस्टमार्टम करेंगे तो दुश्मन एक ही मिलेगा, लेकिन अलग-अलग दुश्मनों को गढ़ने के नाम पर भी भीड़ बन जाती है. कभी भाषा तो कभी राज्य के नाम पर. पुलिस अगर शुरू से ऐसी भीड़ के प्रति सख्त होती, किनारे खड़ी न होती तो उसे इतना बढ़ावा नहीं मिलता. हालत यह हो गई कि सुप्रीम कोर्ट को दिशा निर्देश जारी करना पड़ गया कि दरोगा स्तर से लेकर डीजीपी स्तर तक के पुलिस अधिकारियों को क्या करना होगा.