भारत बंद (Bharat Bandh) सिर्फ चार घंटे का था और इसमें सार्वजनिक परिवहन से लेकर एबुलेंस तक को बाहर रखा गया था. ज़बरन दुकानें बंद न करने की अपील की गई थी. कहीं कम सफ़ल तो कहीं ज़्यादा सफ़ल रहा. इसकी सफ़लता की नाप से किसानों के आंदोलन को नहीं समझा जा सकता है. दिल्ली पहुंचने से पहले और पहुंचने के बाद भी इस आंदोलन में मुद्दों के प्रति समझ बनाने पर काफी काम किया जा रहा है. इस बात का ख़्याल रखते हुए कि सिर्फ बुजुर्ग और अनुभवी किसान नेता ही न बोलें समझें बल्कि महिलाएं भी बराबरी से बात कर सकें और नौजवान भी. इसलिए आंदोलन के भीतर एक ऐसा ढांचा तैयार किया गया है जिसके प्रतीक तो इतिहास के हैं मगर उनका रिश्ता आज से बनाया गया है.