हम जिस समय में है, उसमें सब कुछ गड़बड़ा गया है. इस गड़बड़ाए हुए दौर में कुर्सी पर बैठे हुए लोग हड़बड़ाए हुए हैं और उनकी बातें सुनकर आप लोग घबराए हुए हैं. हर दूसरा आदमी भारत की नई परिभाषा गढ़ रहा है और हर तीसरे आदमी को उस नई परिभाषा से धक्का देकर निकाल दे रहा है. एक दौड़ा रहा है और बाकी दौड़ने में लगे हैं. अभी तो देशद्रोही के लेबल से लोग निपट नहीं पाए, कि महापापी आ गया है.