सरकारी संस्थानों को बेच देने के फैसले के खिलाफ सोमवार को शुरू हुआ आंदोलन या हड़ताल गुरुवार तक जारी रहेगी. बैंकों के बाद बीमा सेक्टर के कर्मचारियों की भी हड़ताल होगी. जब निजीकरण का फैसला होता है तो उसे सुधार बताया जाता है, और हफ्तों तारीफ होती है. जब निजीकरण के खिलाफ आंदोलन होता है, तो क्यों होता है इस पर बात नहीं होती है. हड़ताल करने वालों को ये पता है लेकिन आजकल उनका सदमा कुछ और भी है. गोदी मीडिया और मीडिया में कवर न होने का सदमा. छिटपुट तरीके से तो कवर हो जाता है. लेकिन जितना वो अपनी हड़ताल को बड़ा समझते हैं, उस अनुपात में तो नहीं होता है. आप दावे के साथ नहीं कह सकते कि लाखों बैंक कर्मचारियों में लोग गोदी मीडिया के उपभोक्ता नहीं होंगे. उपभोक्ता हैं तभी तो सदमा लगा कि उनकी हड़ताल को कोई दिखा नहीं रहा है. नहीं दिखाने वालों की संख्या इतनी अधिक है, जो दिखा भी रहे हैं वो काफी नहीं है.