चुनावों के वक़्त आचार-संहिता जैसे शोभा की वस्तु बन गई है. रामपुर से सपा उम्मीदवार आजम खान की सफाई चाहे जो हो मगर उनके भाषण को पूरा सुनने पर साफ हो जाता है कि उनकी टिप्पणी जया प्रदा के बारे में ही है. अमर सिंह के बारे में नहीं है. भाषा इतनी खराब है कि जिक्र करना भी मुमकिन है. आजम ख़ान को सफाई देने से पहले अपना भाषण खुद सुनना चाहिए था. उसी तरह हिमाचल प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष सतपाल सिंह सत्ती ने बद्दी में राहुल गांधी के बारे में जो गाली दी है, उसे भी आज़म ख़ान की भाषा के ढांचे से अलग से नहीं किया जा सकता है. जब भी चुनाव आता है भाषा का सवाल आता है. लेकिन जहां गालियां दी जाती हैं, अश्लील बातें कही जाती हैं उसके अलावा भी भाषा अपनी मर्यादा खो रही होती है.
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