मुद्दों की मारामारी में आगरा से एक किसान का फोन आता है कि अक्तूबर के महीने में आलू के जो बीज बोए थे उनका उत्पादन काफी कम हुआ है. वे पहले से बर्बादी का सामना कर रहे थे मगर इस बार मार और पड़ गई है. टीवी का जो चरित्र हो गया है और दर्शकों की पसंद जिस तरह से बन गई है, उसके बीच आलू किसान की हालत पर आप चर्चा करेंगे तो किसकी दिलचस्पी होगी. क्या ऐसा हो सकता है कि अफरीदी और आलू को जोड़ कर चर्चा की जाए ताकि बहुत सारे प्रवक्ता ऑफिस के बाहर लाइन लगाकर खड़े हो जाएं कि हम भी बोलेंगे हम भी बोलेंगे. इस समस्या का समाधान आखिर कब निकलेगा. किसानो को क्यों लगता है कि उनके मुद्दे पर टीवी पर चर्चा होगी तो समाधान हो जाएगा, क्या कभी समाधान हुआ है. 2019 के लिए झूठे वादों की फेहरिस्त हर दल के नेता बना रहे थे. जो किसान आज रो रहे हैं वही सबसे पहले उन वादों के झांसे में आएंगे. बहरहाल किसान ने जो समझाया बताई है वो इस तरह से है.